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नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (हि.स.)। दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों के तीन आरोपितों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को 27 साल बाद चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। जस्टिस प्रतिभा सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ये सही है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों में काफी लोगों की जानें गई थीं और संपत्ति का खासा नुकसान हुआ था। लेकिन अभियोजन को 27 साल बाद चुनौती देने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
दरअसल तीनों आरोपितों को ट्रायल कोर्ट ने 29 जुलाई 1995 में बरी कर दिया था। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया कि दिसंबर 2018 में 1984 के सिख विरोधी हिंसा के मामलों की जांच करने के लिए जस्टिस एस.एन. ढींगरा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया था। ढींगरा कमेटी की रिपोर्ट अप्रैल 2019 में आयी थी, जिसके बाद अभियोजन पक्ष ने मामलों की आंतरिक समीक्षा की और अपील दायर किए गए।
अभियोजन पक्ष ने कोर्ट से मांग की थी कि अपील दायर करने में की गई देरी को माफ किया जाए क्योंकि इस मामले में काफी बड़ी संख्या में सिख समुदाय के लोगों के जान-माल का नुकसान हुआ था। 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में बड़े पैमाने पर सिखों के खिलाफ हिंसा को अंजाम दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि इतने लंबे समय के बाद अपील दाखिल करने के मामले में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जिसमें कहा गया है कि लंबे समय की देरी को माफ नहीं किया जा सकता।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रभात मिश्रा