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जोधपुर, 11 दिसम्बर (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने गौशालाओं को अनुदान देने से जुड़े विवाद में राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन गौशालाओं की जमीन या कार्यकारिणी को लेकर कोर्ट में विवाद चल रहा है, वे सरकारी अनुदान की हकदार नहीं हैं।
जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्रसिंह भाटी और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने चूरू के सरदारशहर की श्री गौशाला समिति की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने गोपालन विभाग की गाइडलाइन के उस नियम को सही ठहराया है, जिसके तहत अदालती विवाद सुलझने तक अनुदान रोकने का प्रावधान है। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक धन की सुरक्षा के लिए यह नियम जरूरी है।
याचिकाकर्ता श्री गौशाला समिति ने गोपालन विभाग द्वारा तीन मार्च 2023 को जारी गाइडलाइन के क्लॉज-19 को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यह नियम मनमाना है। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि कई गौशालाएं विधिवत पंजीकृत हैं, गोपालन विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और सभी पात्रता शर्तों का अनुपालन कर रही हैं, लेकिन उन्हें केवल क्लॉज 19 के कारण अनुदान से वंचित किया गया है। वकील ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है। केवल प्रशासनिक विवाद के कारण अनुदान रोकने से गौशाला में रहने वाली गायों और बछड़ों के चारे, पानी और इलाज पर संकट खड़ा हो गया है, जो पशु क्रूरता के समान है।
सरकार का तर्क- विवादित हाथों में नहीं दे सकते पैसा
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि क्लॉज-19 को सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को रोकने के लिए शामिल किया गया है। क्लॉज 19 को 22 मार्च 2023 को संशोधित किया गया, जिसमें स्वीकृति प्राधिकार को जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली जिला स्तरीय गोपालन समिति में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे अधिक तटस्थता, पारदर्शिता और प्रशासनिक निरीक्षण सुरक्षित हो गया। उन्होंने तर्क दिया कि जब किसी गौशाला की जमीन के मालिकाना हक या उसे चलाने वाली कमेटी को लेकर कोर्ट में केस चल रहा हो, तो यह तय नहीं होता कि असली प्रबंधन किसका है। ऐसी स्थिति में पैसा जारी करने से गबन या विवाद बढऩे का खतरा रहता है। वकील ने स्पष्ट किया कि यह रोक स्थायी नहीं है, जैसे ही विवाद सुलझ जाएगा, गौशाला अनुदान के लिए पात्र हो जाएगी।
कोर्ट ने कहा- सार्वजनिक धन की सुरक्षा जरूरी
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने माना कि विवादित गौशालाओं को अनुदान न देना मनमाना नहीं है, बल्कि एक एहतियाती कदम है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि सार्वजनिक धन केवल उन्हीं हाथों में सौंपा जाना चाहिए जो कानूनी रूप से अधिकृत हों, प्रशासनिक रूप से स्थिर हों और उनके उचित उपयोग के लिए जिम्मेदार हों... क्लॉज-19 एक नियामक और अस्थायी प्रावधान है, जो विवाद सुलझने तक लागू रहता है। फैसले में 22 मार्च 2023 को किए गए संशोधन का भी जिक्र किया गया। कोर्ट ने नोट किया कि अब अनुदान स्वीकृत करने का अधिकार जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी को दिया गया है। चूंकि कलेक्टर जिले का सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी होता है, इसलिए वह निष्पक्षता से यह जांच सकता है कि विवाद की स्थिति क्या है। कोर्ट ने माना कि इससे प्रक्रिया में पारदर्शिता आई है।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश