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श्रीनगर, 06 सितंबर (हि.स.)। प्रतिष्ठित हजरतबल दरगाह में हाल ही में राष्ट्रीय प्रतीक की स्थापना को लेकर बढ़ती जन चिंता और विवाद के मद्देनजर, आदिवासी नेता और वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री जावेद अहमद राणा ने एक कड़ा और सैद्धांतिक बयान जारी किया है, जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत आस्था के मामलों पर गहरा चिंताजनक अतिक्रमण और धर्मनिरपेक्षता एवं समावेशिता के संवैधानिक मूल्यों से एक खतरनाक विचलन की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
एक्स पर एक पोस्ट में राणा ने लिखा कि जब राज्य, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की आस्था के व्यक्तिगत मामलों पर अतिक्रमण करना शुरू कर देता है, तो यह हमारे धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर दुस्साहसी अधिनायकवादी आवेगों के चिंताजनक उदय का संकेत देता है। इसका कड़ा प्रतिकार और खंडन किया जाना चाहिए। मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि सभी नागरिकों को राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए तथा उन्हें बनाए रखना चाहिए, लेकिन अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अत्यधिक धार्मिक और भावनात्मक महत्व रखने वाले स्थानों पर ऐसे प्रतीकों को एकतरफा रूप से थोपने से एकता नहीं, बल्कि गहरे विभाजन का खतरा पैदा होता है।
हजरतबल दरगाह महज एक विरासत की संरचना नहीं है, बल्कि लाखों लोगों के लिए गहन आध्यात्मिक महत्व का एक पवित्र स्थल है, और इसकी पवित्रता को प्रभावित करने वाले कार्यों को संवेदनशीलता, व्यापक परामर्श और आपसी सम्मान के साथ किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे लोकतंत्र की मजबूती उसके समायोजन की क्षमता में निहित है, न कि दबाव डालने की। राष्ट्रीय एकीकरण समावेशन से सर्वोत्तम रूप से प्राप्त होता है, न कि थोपने से। राणा ने सभी सरकारी और नागरिक संस्थाओं से संयम बरतने, संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने और एकतरफा फैसलों पर बातचीत को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। उन्होंने शांति और एकता का आह्वान किया और नागरिकों से विभाजनकारी आख्यानों का शिकार न होने, बल्कि धर्म, अभिव्यक्ति और विवेक की स्वतंत्रता के लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा में दृढ़ रहने का आग्रह किया।
हिन्दुस्थान समाचार / सचिन खजूरिया