पितृपक्ष 2025 : जम्मूवासी कब करें श्राद्ध, तर्पण और दान, जानें पूरी जानकारी
जम्मू, 6 सितंबर (हि.स.)। पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किया गया अर्पण श्राद्ध कहलाता है। ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि पितृपक्ष में अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्राद्ध, तर्पण और दान–पुण्य करना चाहिए। यह अवधि भाद्रपद पूर्ण
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जम्मू, 6 सितंबर (हि.स.)। पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किया गया अर्पण श्राद्ध कहलाता है। ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि पितृपक्ष में अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्राद्ध, तर्पण और दान–पुण्य करना चाहिए। यह अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन अमावस्या तक चलती है। इन दिनों पितरों की मृत्यु तिथि पर पिण्डदान, तर्पण, ब्राह्मणों को भोजन व वस्त्र दान और गरीबों को अन्नदान अनिवार्य माना गया है। मान्यता है कि श्राद्ध से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होकर मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है और पितर प्रसन्न होकर आरोग्य, धन–सम्पदा और सुख का आशीर्वाद देते हैं।

महंत रोहित शास्त्री के अनुसार, परिजन की मृत्यु जिस तिथि को हुई हो, उसी दिन श्राद्ध किया जाता है। जिनकी अकाल मृत्यु (दुर्घटना या आत्महत्या) हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है। साधु–संतों का श्राद्ध द्वादशी और जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है, जिसे सर्वपितृ श्राद्ध कहा जाता है।

पितृपक्ष श्राद्ध की प्रमुख तिथियां 2025:

पूर्णिमा श्राद्ध – 07 सितम्बर, प्रतिपदा – 08 सितम्बर, द्वितीया – 09 सितम्बर, तृतीया व चतुर्थी – 10 सितम्बर, पंचमी – 11 सितम्बर, षष्ठी – 12 सितम्बर, सप्तमी – 13 सितम्बर, अष्टमी – 14 सितम्बर, नवमी – 15 सितम्बर, दशमी – 16 सितम्बर, एकादशी – 17 सितम्बर, द्वादशी – 18 सितम्बर, त्रयोदशी – 19 सितम्बर, चतुर्दशी – 20 सितम्बर और अमावस्या (सर्वपितृ श्राद्ध एवं विसर्जन) – 21 सितम्बर को मनाई जाएगी।

श्राद्ध सामग्री में पलाश के पत्ते, कुशा, चावल, जनेऊ, कपूर, घी, फल, मिठाई, वस्त्र, तुलसी पत्ता, तिल, दूध, खीर, दही, पुष्प और दक्षिणा शामिल हैं। यदि किसी कारणवश श्राद्ध विधि संभव न हो, तो तिथि के दिन अन्न, वस्त्र या दक्षिणा ब्राह्मणों एवं गरीबों को दान करने से भी पितर प्रसन्न होते हैं। श्रद्धाभाव से जलांजलि अर्पित करने से भी पितृगण संतुष्ट हो जाते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा