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जम्मू, 3 सितंबर (हि.स.)। पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए किया जाने वाला श्राद्ध इस बार 7 सितम्बर से आरंभ होकर 21 सितम्बर तक चलेगा। ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री, अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट ने जानकारी दी कि भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन अमावस्या तक चलने वाले पितृपक्ष में श्रद्धालु अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्राद्ध, तर्पण और दान–पुण्य करें।
उन्होंने बताया कि जिस तिथि को किसी परिजन का देहांत हुआ हो, उसी तिथि पर उनका श्राद्ध किया जाता है। अकाल मृत्यु (दुर्घटना या आत्महत्या) वालों का श्राद्ध चतुर्दशी को, साधु–संतों का द्वादशी को और जिनकी तिथि ज्ञात न हो, उनका अमावस्या को श्राद्ध किया जाता है, जिसे सर्वपितृ श्राद्ध कहते हैं।
श्राद्ध की प्रमुख तिथियां (2025):
पूर्णिमा – 7 सितम्बर,
प्रतिपदा – 8 सितम्बर,
द्वितीया – 9 सितम्बर,
तृतीया एवं चतुर्थी – 10 सितम्बर,
पंचमी – 11 सितम्बर,
षष्ठी – 12 सितम्बर,
सप्तमी – 13 सितम्बर,
अष्टमी – 14 सितम्बर,
नवमी – 15 सितम्बर,
दशमी – 16 सितम्बर,
एकादशी – 17 सितम्बर,
द्वादशी – 18 सितम्बर,
त्रयोदशी – 19 सितम्बर,
चतुर्दशी – 20 सितम्बर,
अमावस्या (सर्वपितृ श्राद्ध) – 21 सितम्बर।
महंत शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष तिथियों के संयोग के चलते 10 सितम्बर को तृतीया और चतुर्थी दोनों का श्राद्ध होगा। श्राद्ध सामग्री में पलाश के पत्ते, कुशा, फल, मिष्ठान्न, तिल, जौ, वस्त्र, पुष्प, दही, खीर, पान, सुपारी, दक्षिणा आदि का विशेष महत्व माना गया है। उन्होंने कहा कि यदि किसी कारणवश श्राद्ध कर्म संपन्न न हो सके तो श्रद्धालु ब्राह्मणों एवं गरीबों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा अर्पित कर सकते हैं। श्रद्धा–भावपूर्वक तिलजल या जलांजलि अर्पित करने से भी पितृगण प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा