समस्त विश्व के विद्वान कर रहे हैं संस्कृत का अध्ययन : प्रो. हरिदत्त शर्मा
सम्बोधित करते मुख्य वक्ता


- इविवि के संस्कृत सप्ताह महोत्सव में प्रो. डॉ सत्यकेतु ने कहा, संस्कृत में ही भारतीय संस्कृति निहित

प्रयागराज, 05 अगस्त (हि.स.)। संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं प्राच्यभाषा विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय में संस्कृत सप्ताह महोत्सव के दूसरे दिन मंगलवार काे संस्कृत विभाग, इविवि तथा उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में व्याख्यान गोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर हरिदत्त शर्मा राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित, पूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने कहा कि समस्त विश्व के विद्वान संस्कृत का अध्ययन कर रहे हैं। उसके लिए अंतरराष्ट्रीय संस्कृत अध्ययन केंद्र आदि अनेक संस्थाएं कार्य कर रही हैं। संस्कृत भाषा का विभिन्न भाषाओं के साथ सम्बन्ध प्रतिपादित करते हुए मैक्समूलर, श्लेगल, बर्नार्ड आदि विद्वानों ने अनेक विषयों पर अपनी सुभाशंसा व्यक्त की है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सत्यकेतु ने कहा कि संस्कृत भाषा के अंतर्गत समस्त ज्ञान विज्ञान समाहित है तथा संस्कृत में ही भारतीय संस्कृति निहित है। संस्कृत में प्राचीन एवं आधुनिक दोनों ज्ञान मिश्रित रूप से विद्यमान हैं। संस्कृत हमारे जीवन एवं राष्ट्र उत्थान के लिए कार्य करती है।

संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोफेसर शरदिंदु त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत के प्राचीन शास्त्रकारों ने जिन विषयों को स्थापित किया है उसका आगे चलकर परा एवं अपरा दो विद्याओं के रूप में व्याख्यान द्वारा विस्तार करते हुए ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने का कार्य किया गया है। वात्स्यायन कामसूत्र में दिवस में पांच बार वस्त्र परिवर्तन की बात कही है, जिससे सिद्ध होता है कि स्वच्छता का अत्यन्त महत्व था। आचार्य राजशेखर ने कहा है कि संस्कृत कवियों का गृह कैसा हो? अत्यंत श्रेष्ठ हो। अतः जब तक आध्यात्मिक क्रांति नहीं होगी और संस्कृत का प्रचार न होगा तब तक समस्त विश्व कल्याण के मार्ग पर नहीं चल सकेगा।

संस्कृत विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो.अनिल प्रताप गिरि ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा आध्यात्मिक गुणों से युक्त है, साथ ही अभ्युदय केन्द्रित है। जबकि पाश्चात्य ज्ञान परम्परा के अन्तर्गत पुराने ज्ञान को खण्डित करके नवीन ज्ञान की अवधारणा दिखाई देती है।

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गंगानाथ झा परिसर के निदेशक प्रो. ललित कुमार त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित है तथा यह ज्ञान परम्परा सम्पूर्ण विश्व में कैसे फैली इस विषय पर अध्ययन किया जाना चाहिए। संस्कृत भाषा टीका, व्याख्यान एवं टिप्पणी परम्परा से समन्वित है। भारतीय ज्ञान परम्परा में अठारह विद्याओं एवं चौसठ कलाओं के द्वारा ज्ञान के साथ-साथ कौशल का अध्ययन अत्यंत प्रचलित था। संस्कृत में गणित एवं विज्ञान, आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता, दण्डनीति आदि विद्यायें इसकी वैज्ञानिकता का प्रतिपादन करती हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा के अंतर्गत सभी ज्ञान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

मैक्समूलर ने सम्पूर्ण ऋग्वेद का सायण भाष्य सहित बीस वर्ष तक सम्पादन किया। पेनसिल्वा फिरोजा नामक विद्वान ने संस्कृत व्याकरण पर विशिष्ट कार्य किया। थाईलैंड, बर्मा, जापान आदि विभिन्न देशों में रामायण ग्रन्थ विभिन्न नामों से प्राप्त होते हैं। जिनकी मूल कथा वाल्मीकि रामायण से ही मिलती हुई प्राप्त होती है।

विभागाध्यक्ष प्रो. प्रयाग नारायण मिश्र ने अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए कहा कि प्राचीन काल से गतिमान वेदारंभ, उपाकर्म के विशिष्ट अवसर पर अब संस्कृत दिवस का आयोजन किया जा रहा है। उसी के उपलक्ष्य में भारतीय ज्ञान परम्परा के रूप में विद्यमान संस्कृत भाषा के प्रसार के लिए संस्कृत दिवस का आयोजन होना आवश्यक है। कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी संयोजक सन्त प्रकाश तिवारी एवं स्वागत भाषण एसोसिएट प्रोफेसर डॉ निरूपमा त्रिपाठी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. लेखराम दन्नाना ने किया।

इविवि की पीआरओ प्रो. जया कपूर ने बताया कि इसके पूर्व रंगोली प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें प्रथम स्थान ज्योति, सुमन, गार्गी ने प्राप्त किया। द्वितीय स्थान प्रिया, विवेचना, जया तथा तृतीय स्थान प्रतिष्ठा, प्रीति ने प्राप्त किया। कार्यक्रम के निर्णायक मंडल के रूप में डॉ नंदिनी रघुवंशी, डॉ कल्पना कुमारी, डॉ रेणु कोछड़ शर्मा तथा आयोजिका डॉ रजनी गोस्वामी एवं संयोजिका डॉ रश्मि यादव रही।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र