राजौरी में सेना ने किया गुज्जर-बकरवाल समुदाय से संवाद, समस्याएँ सुनीं और समाधान का आश्वासन दिया
राजौरी , 31 अगस्त (हि.स.)। गुज्जर और बकरवाल समुदाय, जो हिमालय की सबसे प्राचीन एवं समृद्ध परंपराओं वाले जनजातीय समूहों में से एक माने जाते हैं, जम्मू-कश्मीर की कुल जनसंख्या का लगभग 11 प्रतिशत हैं। इनकी बड़ी संख्या आज भी पारंपरिक मौसमी प्रवास की प्रथा
राजौरी में सेना ने किया गुज्जर-बकरवाल समुदाय से संवाद, समस्याएँ सुनीं और समाधान का आश्वासन दिया


राजौरी , 31 अगस्त (हि.स.)। गुज्जर और बकरवाल समुदाय, जो हिमालय की सबसे प्राचीन एवं समृद्ध परंपराओं वाले जनजातीय समूहों में से एक माने जाते हैं, जम्मू-कश्मीर की कुल जनसंख्या का लगभग 11 प्रतिशत हैं। इनकी बड़ी संख्या आज भी पारंपरिक मौसमी प्रवास की प्रथा का पालन करते हुए हर वर्ष पीर पंजाल की ऊँचाई वाली पहाड़ियों की ओर पलायन करती है। इसी कड़ी में भारतीय सेना ने राजौरी ज़िले के केसरी हिल गाँव में गुज्जर और बकरवाल समुदाय के लोगों से विशेष संवाद कार्यक्रम आयोजित किया। इस अवसर पर लगभग 70 लोग उपस्थित रहे।

सेना अधिकारियों ने प्रवास के दौरान समुदाय को आने वाली कठिनाइयों, दस्तावेज़ी आवश्यकताओं, वन अधिकार अधिनियम 2006 के बारे में जागरूकता और बच्चों की शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं पर चर्चा की। स्थानीय लोगों ने सेना के इस प्रयास की सराहना की और कहा कि इससे न केवल उनकी समस्याओं का समाधान होगा बल्कि समुदाय और सेना के बीच आपसी विश्वास और संबंध और मजबूत होंगे।

गुज्जर और बकरवाल समुदाय ने सेना को आश्वस्त किया कि वे हमेशा देश की एकता और अखंडता के साथ खड़े हैं। वहीं सेना ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि इस तरह के नियमित संवाद और सहयोग से समुदाय के जीवन स्तर में सुधार होगा और उनकी पारंपरिक संस्कृति को भी संरक्षित करने में मदद मिलेगी। सेना का यह कदम जन-जवान भाईचारे को और गहरा करने वाला साबित होगा तथा गुज्जर-बकरवाल समुदाय को वास्तविक लाभ पहुँचाएगा।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा