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जम्मू, 27 अगस्त (हि.स.)। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी) ने केंद्र सरकार द्वारा आईडीबीआई बैंक के निजीकरण के कदम का जोरदार विरोध किया है। संगठन का कहना है कि 1964 में स्थापित यह संस्था भारत के औद्योगिक और वित्तीय ढांचे की नींव रही है और इसे निजी या विदेशी हाथों में सौंपना सामाजिक न्याय, वित्तीय समावेशन और राष्ट्रीय संप्रभुता पर सीधा प्रहार है। एआईबीओसी ने कहा कि आईडीबीआई बैंक किसानों, छोटे व्यवसायों, महिलाओं, ग्रामीण परिवारों और वंचित समुदायों तक साख पहुँचाता रहा है। निजी बैंक केवल मुनाफे को प्राथमिकता देंगे जिससे गरीब और ग्रामीण तबकों का बहिष्कार होगा। साथ ही हजारों कर्मचारियों की नौकरी, आरक्षण नीति और ग्रामीण शाखाएँ भी खतरे में पड़ जाएँगी।
कन्फेडरेशन ने याद दिलाया कि न तो आईडीबीआई अधिनियम (1964) और न ही आईडीबीआई रिपील अधिनियम (2003) में पूर्ण निजीकरण की परिकल्पना थी। संसद में पूर्व वित्त मंत्रियों ने आश्वासन दिया था कि सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम नहीं होगी। इस प्रतिबद्धता को तोड़ना संवैधानिक विश्वास का उल्लंघन है। संगठन ने कहा कि वैश्विक उदाहरण जैसे ग्लोबल ट्रस्ट बैंक (2004), यस बैंक (2020), सिलिकॉन वैली बैंक (2023) और क्रेडिट सुईस (2023) यह साबित करते हैं कि निजी स्वामित्व सुरक्षा की गारंटी नहीं देता, बल्कि सार्वजनिक जवाबदेही ही स्थिरता सुनिश्चित करती है।
एआईबीओसी ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए मजबूत सार्वजनिक बैंक जरूरी हैं, क्योंकि यही बैंक जन-धन खातों से लेकर प्राथमिक क्षेत्र ऋण तक की जिम्मेदारी निभाते हैं। 2008 की वैश्विक मंदी में भी सार्वजनिक बैंकों ने भारत को बचाया था, जबकि निजी बैंक विफल रहे। संगठन ने सरकार से तुरंत निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेने और आईडीबीआई बैंक को सुदृढ़ करने की मांग की। उन्होंने सांसदों, नीति-निर्माताओं, नागरिक समाज और जनता से आह्वान किया कि वे आईडीबीआई को बचाने और भारत की आर्थिक संप्रभुता की रक्षा के लिए एकजुट हों।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा