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जम्मू, 25 अगस्त (हि.स.)। सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। किसी भी शुभ काम या पूजा की शुरुआत इनकी अराधना से की जाती है। गणेश चतुर्थी के विषय में जानकारी देते हुए डॉ यशपाल शास्त्री जी ने बताया कि भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता कहा जाता है। इनका जन्मोत्सव देश भर में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस बर्ष 2025 में गणेश चतुर्थी उत्सव की शुरुआत 27 अगस्त बुधवार से होने जा रही है।
10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव का समापन 06 सितंबर शनिवार को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा। इसे विनायक चतुर्थी, कलंक चतुर्थी और डण्डा चतुर्थी आदि नामों से भी जाना जाता है। दस दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार पर गणेश जी की मूर्ति घर में स्थापित की जाती है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में भगवान गणेश का जन्म हुआ था।
श्री गणेश जी की स्थापना का शुभ मुहूर्त भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 26 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 54 मिनट से आरंभ हो रही है, जो 27 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 44 मिनट तक है। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार गणेश उत्सव 27 अगस्त, बुधवार से आरंभ होगा और इसी दिन गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना और व्रत की शुरुआत होगी। इसके साथ ही 27 अगस्त बुधवार को गणेश चतुर्थी की पूजा सुबह 11 बजकर 05 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 40 मिनट के बीच होगी। अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा को विदा किया जाता है। गणेश चतुर्थी पर्व का समापन इस वर्ष 06 सितंबर 2025, शनिवार के दिन होगा और इसी दिन देश भर में गणेश विसर्जन किया जाएगा।
गणेश चतुर्थी व्रत व पूजन विधि व्रती को चाहिए कि प्रातः स्नान करने के बाद सोने, तांबे, मिट्टी की गणेश प्रतिमा लें। एक कोरे कलश में जल भरकर उसके मुंह पर कोरा वस्त्र बांधकर उसके ऊपर गणेश जी को विराजमान करें। गणेश जी को सिंदूर व दूर्वा अर्पित करके 21 लडडुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी को अर्पित करके शेष लड्डू गरीबों या ब्राह्मणों को बाँट दें। सांयकाल के समय गणेश जी का पूजन करना चाहिए। गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा व आरती पढ़ने के बाद अपनी दृष्टि को नीचे रखते हुए चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।
इस दिन गणेश जी के सिद्धिविनायक रूप की पूजा व व्रत किया जाता है।
विशेष मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वरना कलंक का भागी होना पड़ता है। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए नीचे लिखे मन्त्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें। श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है।
चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र: सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।। ध्यान रहे कि तुलसी के पत्ते (तुलसी पत्र) गणेश पूजा में इस्तेमाल नहीं हों। तुलसी को छोड़कर बाकी सब पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय हैं। गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। मतान्तर से गणेश जी की तीन परिक्रमा भी की जाती है।
गणेश चतुर्थी का महत्व, माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि चोरी करने का झूठा कलंक लगा था और वे अपमानित हुए थे। नारद जी ने उनकी यह दुर्दशा देखकर उन्हें बताया कि उन्होंने भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गलती से चंद्र दर्शन किया था। इसलिए वे तिरस्कृत हुए हैं। नारद मुनि ने उन्हें यह भी बताया कि इस दिन चंद्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था। इसलिए जो इस दिन चंद्र दर्शन करता है उसपर मिथ्या कलंक लगता है। नारद मुनि की सलाह पर श्रीकृष्ण जी ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और दोष मुक्त हुए। इसलिए इस दिन पूजा व व्रत करने से व्यक्ति को झूठे आरोपों से मुक्ति मिलती है।
हिन्दुस्थान समाचार / रमेश गुप्ता