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श्रीनगर, 23 अगस्त (हि.स.)। कश्मीर के राजनीतिक दलों ने शनिवार को जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी से संबद्ध 215 स्कूलों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता इल्तिजा मुफ्ती ने कहा कि सत्ता में रहते हुए जमात-ए-इस्लामी हमेशा एनसी का पहला निशाना रही है।
मुफ्ती ने एक्स पर कहा कि कश्मीर के इतिहास में जब भी नेशनल कॉन्फ्रेंस को भारी बहुमत मिला है उनका पहला निशाना हमेशा जमात ही रही है। चाहे 1977 हो या आज का दिन जहाँ उन्होंने हज़ारों छात्रों के भविष्य को खतरे में डालकर उन्हें संकट में डालकर हद पार कर दी है।
शिक्षा मंत्री सकीना इटू के इस स्पष्टीकरण का ज़िक्र करते हुए कि मूल आदेश में उपायुक्तों द्वारा कार्यभार संभालने का ज़िक्र नहीं था बल्कि कहा गया था कि नज़दीकी उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्य उनकी देखभाल करेंगे, पीडीपी नेता ने कहा कि मंत्री का अस्पष्ट और अतार्किक यू-टर्न संकट को और बढ़ाता है।
उन्होंने पूछा कि यह स्वीकार क्यों नहीं किया जाता कि दशकों से जमात को दंडित करने और उसे गैरकानूनी घोषित करने की उनकी आधिकारिक नीति क्या रही है।
एक अन्य पीडीपी नेता वहीद पारा ने कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद केंद्र की एक बड़ी सफलता जमात-ए-इस्लामी को चुनावी प्रक्रिया में शामिल करना था। उन्होंने कहा कि यह मील का पत्थर जो गिरफ़्तारियों या मुठभेड़ों से हासिल नहीं किया जा सकता था, 2024 के चुनावों के दौरान हासिल हुआ जब जमात के अमीर और जमात-ए-इस्लामी सदस्यों ने सक्रिय रूप से उम्मीदवार खड़े किए।
पुलवामा के विधायक ने एक्स पर कहा कि यह आबादी के उस हिस्से को बदलने और फिर से एकीकृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका 1987 से चली आ रही दशकों पुरानी दुश्मनी के कारण भारत-विरोधी समूहों द्वारा शोषण किया जा रहा था।
उन्होंने कहा कि जो काम ताकत से नहीं हो सका, उसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और भागीदारी ने सफलतापूर्वक पूरा किया गया। हालांकि उन्होंने कहा कि किताबों पर प्रतिबंध और स्कूलों पर कब्ज़ा करने जैसे हालिया कदम सोची-समझी रणनीति के बजाय बिना सोचे-समझे उठाए गए कदम प्रतीत होते हैं।
इसी बीच एक बयान मे बुखारी ने कहा कि हालाँकि जमात-ए-इस्लामी पर 2019 में प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन उपराज्यपाल के अधीन प्रशासन ने जेईआई के संस्थानों का सीधा नियंत्रण लेने से परहेज किया है। उन्होंने कहा कि फिर भी एक मज़बूत जनादेश प्राप्त करने के बावजूद निर्वाचित सरकार ने ऐसा करने का फैसला किया है।
बुखारी ने तर्क दिया कि अधिग्रहण के ज़रिए प्रतिबंध लगाने के बजाय सरकार हज़ारों छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा करते हुए क़ानूनों का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक नियामक तंत्र स्थापित कर सकती थी। उन्होंने कहा कि इन स्कूलों पर प्रतिबंध लगाकर सरकार ने शिक्षा क्षेत्र और जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ अन्याय किया है।
उन्होंने स्वीकार किया कि जमात-ए-इस्लामी के साथ किसी के राजनीतिक या वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन कहा कि एफएटी स्कूलों ने दशकों से शिक्षा क्षेत्र में सराहनीय भूमिका निभाई है। उनके अनुसार यह ताज़ा कदम उन लोगों के प्रति असहिष्णुता को दर्शाता है जिनसे सत्ताधारी दल के राजनीतिक या वैचारिक मतभेद हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / सुमन लता