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शिमला, 02 अगस्त (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में राज्य सरकार द्वारा 14 मई 2025 को जारी अधिसूचना के माध्यम से पुलिस अधीक्षक (संचार एवं तकनीकी सेवाएं) राजेश वर्मा का स्थानांतरण रद्द कर दिया है। न्यायालय ने इसे हिमाचल प्रदेश पुलिस अधिनियम 2007 तथा संबंधित नियमों के उल्लंघन में पाया।
याचिकाकर्ता राजेश वर्मा वर्तमान में शिमला स्थित संचार एवं तकनीकी सेवाएं विंग में पुलिस अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे। राज्य सरकार ने उन्हें पुलिस मुख्यालय शिमला में अनिवार्य प्रतीक्षा अधिकारी के पद पर स्थानांतरित करने की अधिसूचना जारी की थी। इस स्थानांतरण को राजेश वर्मा ने उच्च न्यायालय में यह चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यह स्थानांतरण उन्हें उनके मूल कैडर से बाहर एक ‘एलियन कैडर’ में किया गया है, जो कि नियमों के अनुरूप नहीं है।
याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि संचार एवं तकनीकी सेवाएं एक पृथक विंग/कैडर है जिसके लिए अलग भर्ती और नियुक्ति नियम अधिसूचित हैं। इस कैडर में पुलिस अधीक्षक का केवल एक पद स्वीकृत है, जिसे स्थानांतरित करना न केवल संरचनात्मक दृष्टि से अव्यवहारिक है, बल्कि कानूनी रूप से भी त्रुटिपूर्ण है।
इसके अतिरिक्त याचिका में यह भी कहा गया कि सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना हिमाचल प्रदेश पुलिस अधिनियम, 2007 की धारा 56 का उल्लंघन करती है। उक्त धारा के अनुसार राज्य पुलिस स्थापना समिति को राजपत्रित अधिकारियों के स्थानांतरण/नियुक्ति की सिफारिश करना आवश्यक है। परंतु इस मामले में समिति की सिफारिश प्राप्त नहीं की गई थी।
न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता का स्थानांतरण राज्य पुलिस स्थापना समिति की विधिसम्मत सिफारिश के बिना किया गया है, जो कि अधिनियम और नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। न्यायालय ने सरकार द्वारा प्रस्तुत उस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि यह स्थानांतरण सक्षम प्राधिकारी की अनुमति से किया गया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह अनुमति किसी अधिकारी को उसके मूल कैडर से अलग कैडर में स्थानांतरित करने की वैधानिक प्रक्रिया को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती।
उच्च न्यायालय ने विवादित अधिसूचना को निरस्त कर दिया और याचिकाकर्ता राजेश वर्मा के स्थानांतरण को अवैध घोषित करते हुए उन्हें पूर्व पद पर बहाल करने का निर्देश दिया।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील शुक्ला