पॉलीडॉक अस्पताल में मायस्थेनिक क्राइसिस की मरीज की बचाई गई जान
रामगढ़, 11 अगस्त (हि.स.)। रामगढ़ का वृंदावन पॉलीडॉक हॉस्पिटल असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए बेहतर संस्थान साबित हो रहा है। इस अस्पताल ने एक बार फिर एक 38 वर्षीया महिला को मौत से खींच निकला। इस महिला की जान मायस्थेनिक क्राइसिस नामक बीमारी से बचाई गई
मरीज के साथ चिकित्सकों की टीम


रामगढ़, 11 अगस्त (हि.स.)। रामगढ़ का वृंदावन पॉलीडॉक हॉस्पिटल असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए बेहतर संस्थान साबित हो रहा है। इस अस्पताल ने एक बार फिर एक 38 वर्षीया महिला को मौत से खींच निकला। इस महिला की जान मायस्थेनिक क्राइसिस नामक बीमारी से बचाई गई। यह जानकारी सोमवार को अस्पताल में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान डॉक्टर कौशल ने दी। उन्होंने बताया कि हजारों में एक व्यक्ति को यह बीमारी होती है। शुरुआती दौर में यह बीमारी बेहद आसानी से ठीक की जा सकती है। लेकिन जब यह क्राइसिस मोड में पहुंच जाता है तो मरीज की जान बचा पाना मुश्किल हो जाता है। रामगढ़ के रांची रोड स्थित इस अस्पताल ने बोकारो जिले से आई महिला सविता देवी की जान बचाई है।

एक पल के लिए रुक गई थी सांस और धड़कन

डॉ कौशल ने बताया कि सविता देवी 30 जुलाई को उनके अस्पताल पहुंची थी। इलाज के दौरान उनकी हालत काफी नाजुक थी। उनकी सांसें तेजी से कमजोर हो रही थी और दिल की धड़कनें भी धीमी पड़ गई थी। जब वह वृंदावन हॉस्पिटल में पहुंची तो उन्हें कार्डीओ पल्मोनरी अरेस्ट भी हो गया था। एक पल के लिए सांस और धड़कनें दोनों ही रुक गई थीं। तत्काल उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया और उनका इलाज हाई डोज एस्टेरॉइड के साथ शुरू किया गया। जब तक उनकी जांच रिपोर्ट आई तब तक हाई डोज एस्टेरॉइड की वजह से उनकी मांसपेशियों में ताकत भी आने लगी थी।

डॉक्टर कौशल ने बताया कि सविता देवी अत्यंत दुर्लभ न्यूरो मस्कुलर बीमारी मायस्थेनिया ग्रेविस से जूझ रही थी। सही समय पर इलाज नहीं होने के कारण मायस्थेनिक क्राइसिस हो गया। एसिटाइलकोलीन रिसेप्टर बाइंडिंग एंटीबॉडी टेस्ट से इसकी पुष्टि हुई। इसके अलावा सिटी स्कैन में छाती के बाएं हिस्से में थायमोमा ट्यूमर भी मिला। संक्रमण को रोकने के लिए बॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स के साथ अन्य दवाइयां चलाई गईं। सविता देवी को निकट भविष्य में थायमोमा की सर्जरी करवाने की भी सलाह दी गई, ताकि वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएं। उन्हें इस बीमारी से पूर्ण रूप से ठीक होने के लिए लंबे वक्त तक दवाइयां खानी होगी। लेकिन फिलहाल अब वे खतरे से बाहर हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / अमितेश प्रकाश