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रांची, 11 अगस्त (हि.स.)। झारखंड की राजधानी रांची में मारवाड़ी महाविद्यालय और संस्कृत भारती के संयुक्त तत्त्वावधान में सोमवार को संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य में एक समारोह का आयोजन किया गया।
इस समारोह में 'संस्कृत अध्ययन की प्रासंगिकता' विषय पर एक व्याख्यान भी आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, रांची के सहायक प्रोफेसर डॉ. शैलेश कुमार मिश्र ने कहा कि धन का उद्देश्य केवल कल्याण होना चाहिए। हम तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय की छत्रछाया में फले-फूले और बड़े हुए हैं। इसीलिए सा विद्या या विमुक्तये (वह विद्या है जो मुक्ति देती है) यानी विद्या वह है, जो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दे।
उन्होंने कहा कि उपनिषदों पर पड़ी धूल ही हमारे चारित्रिक पतन का सबसे बड़ा कारण है। संस्कृत हजारों वर्षों तक बगैर किसी लिपि के श्रुति परंपरा के माध्यम से जीवित रही और इसी श्रुति परंपरा को वेद कहते हैं। संस्कृत एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसका नामकरण किसी स्थान के नाम पर नहीं है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि संस्कृत पढ़ने वाले स्वयं और अपने विषय पर गर्व करें और इस भाषा का निरंतर प्रयोग करते रहें। जिस अंग का प्रयोग हम कम करते हैं, धीरे-धीरे वह अंग निष्क्रिय हो जाता है। इसी प्रकार संस्कृत यदि हमारे बोलचाल की भाषा बनी रहेगी तभी वह जीवंत रहेगी।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. जगदम्बा प्रसाद ने कहा कि भारत सरकार की ओर से 1969 में एक पत्र जारी कर सभी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को वेदारम्भ दिवस यानी श्रावण पूर्णिमा के दिन को विश्व संस्कृत दिवस के रूप में मनाने के लिए निर्देशित किया था। तब से लेकर आज तक श्रावणी पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस का आयोजन किया जाता है।
उन्होंने कहा कि संस्कृत एकमात्र ऐसी भाषा है, इसमें अर्थोपार्जन तो बताया ही जाता है, अर्थोपार्जन कहां कब और कैसे करना है इस पद्धति का भी बोध कराया जाता है। संपूर्ण पृथ्वी को अपना परिवार मानने की संकल्पना केवल और केवल संस्कृत भाषा में ही है। गणित और विज्ञान, कम्प्यूटर एवं तकनीकी संस्कृत में निहित हैं।
कार्यक्रम की सारस्वत अतिथि डॉ. स्नेह प्रभा महतो ने इस अवसर पर कहा की महान संस्कृत वैयाकरण पाणिनि आज भी दुनिया में व्याकरण की खोज के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं। संस्कृत दिवस मनाते हुए गर्व की अनुभूति होती है, संस्कृत का यह श्लोक विद्या ददाति विनयम् आज भी हर व्यक्ति को विनम्र बने रहने के लिए प्रेरित करता है।
कार्यक्रम का संचालन संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. राहुल कुमार ने किया।
इस अवसर पर विभाग की ओर से आयोजित श्लोक पाठ प्रतियोगिता के विजेता प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह और प्रमाण पत्र देकर पुरस्कृत किया गया। इसमें विकास राम को प्रथम, रेणुका कुमारी को द्वितीय और मनीषा कुमारी को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में आईं मारवाड़ी महाविद्यालय, महिला महाविद्यालय, रांची और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के छात्र-छात्राओं ने वैदिक मंत्रों का एक साथ सस्वर पाठ किया।
समारोह में डॉ. चन्द्रमाधव सिंह, डॉ. लक्ष्मी कुमारी, मनीषा बोदरा, डॉ. रीना माधुरी, डॉ. सरिता कुमारी, डॉ. बहालेन होरो, डॉ. सीमा चौधरी, डॉ. बसन्ती रेनू हेम्ब्रम सहित कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pathak