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अंग्रेजाें ने बहियों के इतिहास के स्राेतों को अप्रमाणिक घोषित किया था: डॉ कुलदीप चंद अग्निहोत्री
चंडीगढ़, 9 जुलाई (हि.स.)। नगर के सेक्टर-14 हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के महाराजा दाहिर सेन सभागार में भाई लक्खी शाह बंजारा व भाई मक्खन शाह लुबाना की जयंती के उपलक्ष्य में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें दस गुरु पंरपरा में बंजारा समाज का योगदान विषय पर चर्चा हुई।
बुधवार काे हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष डॉ कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने अन्य प्रमुख लाेगाें के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। कार्यक्रम की शुरुआत गुरदास सिंह दास ने गुरुवाणी के शब्द होऊं कुर्बाने जाऊं मेहरबाना, होऊं कुर्बाने जीऊं,होऊं कुर्बाने जाऊं तिनाके, लैण जो तेरा नाओं से की।
अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष डॉ अग्निहोत्री ने अपने संबोधन में कहा कि भाटों की बहियों में पूरा इतिहास दर्ज था, लेकिन अब यह परंपरा समाप्त हो गई है। अंग्रेजों ने सोची समझी रणनीति के अंतर्गत बहियों जैसे इतिहास के स्राेतों को अप्रमाणिक घोषित कर दिया गया। उन्हाेंने कहा कि लगभग एक हजार ई. के आसपास तुर्कों के आक्रमण शुरू हुए थे। इन आक्रमणों में पराजित होने के पश्चात पश्तूनों एवं कुछ अन्य समाजों ने धर्म परिवर्तन कर लिया, लेकिन क्षत्रियों ने धर्म परिवर्तन नहीं किया। इसके फलस्वरूप उनका आन्तरिक एवं बाहरी माईग्रेशन शुरु हुआ। उन्हाेंने कहा कि घुमन्तू होने के कारण उन्होंने व्यापार का धंधा अपनाया। क्षत्रिय मन से मुगलों के विरूद्ध थे इसलिए महाराष्ट्र में महाराज शिवाजी के साथ मिलकर मुगलों का सामना किया तथा इसी तरह देश के अन्य भागों में वे मुगलों के खिलाफ लड़े।
मक्खन शाह लुबाना ने गुरु तेगबहादुर की पहचान की। यह भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण मोड़ था।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रसिद्ध इतिहासकार एवं कपूरथला एनजेएसए राजकीय कॉलेज के पूर्व प्राचार्य जसवंत सिंह ने अपने वक्तव्य में दस गुरु परंपरा में बंजारा समाज के योगदान की परम्परा का विस्तार से उल्लेख करते हुए बताया कि बंजारे काफिले के साथ गुरु नानक देवजी के साथ भी चलते थे। बाबा मक्खन शाह लबाना अंतरराष्ट्रीय व्यापारी थे। बाबा मक्खन शाह लबाना का गुरु परम्परा को जीवंत रखने में बहुत बड़ा योगदान रहा।
बाबा मक्खन शाह लुबाना फाउंडेशन चंडीगढ़ के अध्यक्ष भगवान सिंह लुबाना ने कहा कि वह ऐसा दौर था, जब सिख समाज दुविधा में था, बड़े चमत्कारिक ढंग से उन्होंने नौवें गुरुजी को प्रकट किया। जसमेर सिंह ने बताया कि कैसे श्रीलंका के राजा सिख समाज से प्रभावित होकर सिख बन गए थे। कैथल से आए पुरोहित हुकम सिंह ने बंजारा एवं लुबाना समाज के इतिहास पर वंश परंपरा के अनुसार अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम में सदस्य सचिव अकादमी मनजीत सिंह व संस्कृत प्रकोष्ठ निदेशक ने चितरंजन दयाल सिंह कौशल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव शर्मा