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चित्तौड़गढ़, 4 जुलाई (हि.स.)। मेवाड़ के महामंडलेश्वर सांवलिया धाम आश्रम मुंगाना के महन्त चेतनदास महाराज का शुक्रवार को ह्दयघात के चलते देवलोक हो गए। सुबह भी उन्होंने उनसे मिलने आए श्रद्धालुओं से बातचीत की थी, लेकिन करीब 10.15 बजे अचानक ह्दयघात से उनका निधन हो गया। महन्त चेतनदास महाराज की डोल यात्रा शनिवार सुबह 8 बजे निकलेगी। आश्रम में ही उनका 11 बजे अंतिम संस्कार किया जायेगा। महाराज का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए आश्रम में रखा गया है। महन्त के निधन की खबर सुन कर मेवाड़ और मालवा में शोक की लहर दौड़ गई। मुंगाना धाम के महामंडलेश्वर संत चेतनदास के हजारों की संख्या में अनुयायी और भक्त है। उनके निधन की खबर सुनने के साथ ही मुंगाना के सांवलिया धाम आश्रम में भीड़ उमड़ना शुरु हो गई और बड़ी संख्या में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे हैं। महन्त के निधन को धर्मप्रेमियों और लोगों ने अपूरणीय क्षति बताया है।
700 से ज्यादा मंदिरों का करवाया जीर्णोद्धार
मेवाड़ की शक्ति-भक्ति और त्याग की धरती पर कपासन क्षेत्र के मुंगाना के सांवलिया धाम आश्रम के महन्त शुरु से ही धर्म को लेकर समर्पित रहे हैं। धर्म और संस्कृति की स्थापना के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया।महामंडलेश्वर चेतनदास शुरु से ही उपेक्षित और जर्जर धर्म स्थलों के जीर्णाेद्धार का काम कराते रहे और उन्होंने अपने जीवन काल में 700 से ज्यादा मंदिरों का काया कल्प कराया। 90 वर्ष की आयु तक वे सदैव सक्रिय रहे। उनकी कथाएं सुनने और उपदेश व भजन सुनने के लिए दूर-दराज से लोग उनके पास पहुंचते रहे है। यही कारण है कि सांवलिया धाम मुंगाना के महन्त चेतनदास पूरे संभाग में पूजनीय रहे है।
कुंभ मेले में लगाते खालसा, गुरु पूर्णिमा पर 1 लाख भक्त
महामंडलेश्वर चेतनदास महाराज कुंभ के मेले में मीरा मेवाड़ खालसे का आयोजन करते रहे है। 33 साल पहले शुरु की गई इस परम्परा को जीवन्त रखा और हाल ही में प्रयागराज मेंं भी मेवाड़ खालसा लगा कर हजारों श्रद्धालुओं को सुविधाएं दी है। महाराज के सरस, सरल और भक्तिमय व्यवहार के कारण मेवाड़ क्षेत्र के हर गांव-गांव में उनके शिष्य मौजूद है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर एक लाख से अधिक शिष्य मुंगाना धाम पहुंचते है, जहां 35 से 40 बोरी शक्कर से निर्मित मिठाइयों के प्रसाद का वितरण होता है।
गुरु से ली प्रेरणा, बाल्यकाल में चुना वैराग्य
चेतनदास का जन्म गंगरार क्षेत्र के करेड़िया में हुआ। उनके बचपन का नाम गणेश था। बाल्यकाल में ही इसी क्षेत्र के संत बिहारी दास से वे प्रभावित हुए थे और वे उन्हीं की शरण में चले गये। उनके गुरु बिहारी दास मुंगाना के नृर्सिंहद्वारा में रहने लगे। 1961 में संत बिहारीदास का देहावसान होगा और तभी से वे गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाने लगे। बताते है कि मात्र 3 साल की आयु में ही धर्म के पथ पर बढ़े और उनकी माता ने गुरु बिहारी दास के चरणों में समर्पित कर दिया। उनके गुरु ने मालवा स्थित खोर गांव में मोक्ष की प्राप्ति की थी। तब से वहां चरण पादुका मुक्तिधाम की स्थापना की। करीब 70 साल पहले से ही मुंगाना रह कर महन्त चेतनदास ने विद्यार्थियों को पढ़ाना, कथा वाचन, भजन के साथ-साथ भक्तिमति मां मीरा बाई के नाम को आगे बढ़ाया और देश ही नहीं विदेशों तक मां मीरा की अलग पहचान करवाई।
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हिन्दुस्थान समाचार / अखिल