वंशानुगत बीमारियों पर भारी बिगड़ती जीवनशैली
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा अब वंशानुगत बीमारियों से ज्यादा जानलेवा बीमारियां हमारी बदलती जीवनशैली के कारण होती जा रही है। खान-पान, रहन-सहन, प्रकृति से दूरी, बदलती जीवनचर्या यह सब वंशानुगत बीमारियों से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। वंशानुगत बीमारियो
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा


डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

अब वंशानुगत बीमारियों से ज्यादा जानलेवा बीमारियां हमारी बदलती जीवनशैली के कारण होती जा रही है। खान-पान, रहन-सहन, प्रकृति से दूरी, बदलती जीवनचर्या यह सब वंशानुगत बीमारियों से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। वंशानुगत बीमारियों से तो राहत प्राप्त की जा सकती है पर पल-पल बदलती जीवनशैली के कारण होने वाली बीमारियां साइलेंट अटैक का काम करती हैं। पता ही नहीं चलता कि कब जानलेवा बन जाती हैं। जानी मानी पत्रिका नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट से साफ हो गया है कि अब जीन से ज्यादा जीवन पर खतरा खराब या अव्यवस्थित जीवनशैली के कारण हो गया है।

अब तक यह माना जाता रहा है कि कुछ बीमारियां वंशानुगत या यूं कहें कि आनुवांशिकी के कारण जन्मजात होती हैं। वह उम्र के साथ अपना असर दिखाना आरंभ कर देती हैं। नए शोध के अनुसार, बदलती जीवनशैली, रहन-सहन, आहार-विहार उससे भी गंभीर असर दिखाने लगा है। विशेषज्ञों के अनुसार, जीन प्रभावित लोग बेहतर और संतुलित जीवनशैली से अपनी जीवन रेखा को बड़ा कर सकते हैं। चिंतजानक यह है कि बदलती जीवनशैली के कारण असामयिक मौत की संभावना 78 फीसदी तक अधिक हो गई है। नेचर मेडिसिन पत्रिका में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के आलेख में यह दावा किया गया है। शोधार्थियों ने यूके बॉयोबैंक से 5 लाख लोगों का आंकड़ा प्राप्त कर यह निष्कर्ष निकाला है।

शोधार्थियों ने 164 फैक्टर और जेनेटिक जोखिमों का विस्तृत अध्ययन किया है। भारत भी इससे अछूता नहीं हैं। जीवनशैली और आहार-विहार में बदलाव के कारण ही आज हार्ट संबंधी रोग, कैंसर, डाइबिटिज, ब्लड प्रेशर, अनिद्रा, डिप्रेशन और इसी तरह की कई बीमारियां आम होती जा रही हैं। इससे हर उम्र के लोग प्रभावित हैं। कल तक रईसों और उम्र के पड़ाव के अवसर पर होने वाली बीमारियां पूरी साम्यवादी सोच के साथ किसी को भी अपने दायरे में लेने लगी हैं।

एक समय था जब सूर्योदय से पहले उठने और रात नौ-साढ़े नौ बजे तक सो जाने की सामान्य परंपरा रही है तो प्रातःकाल भ्रमण, दिन में भोजन के बाद कुछ समय के लिए आराम और रात को खाना खाने के बाद थोड़ी चहल कदमी अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी मानी जाती थी। स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य सामग्री और खान-पान में संयम के साथ ही शुद्धता पर जोर दिया जाता था, जिससे शरीर को तदनुरूप पौष्टिक तत्व मिल सकें। आज हालात में तेजी से बदलाव आया है। रसोई और रसोई सामग्री की शुद्धता और गुणवत्ता की बात तो करना ही बेमानी होगा। मिलावट या फिर रासायनिक खाद-कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण वस्तुओं की गुणवत्ता में कमी आना तो स्वाभाविक ही है इसके साथ ही चंद लाभ के लिए खाद्य सामग्री में मिलावट आम होती जा रही है। इसके साथ ही प्रदूषित वातावरण बीमारियों का कारक तो बन ही रहा है इसके साथ ही दवाएं भी बेअसर होती जा रही हैं।

एक शोध के अनुसार केवल धूम्रपान के कारण ही 21 तरह की बीमारियां जकड़ सकती हैं तो पारिवारिक व रोजगारपरक तनाव के चलते 17 तरह की बीमारियां सीधे सीधे प्रभावित करती हैं। खान-पान का बदलाव तो इसी से समझा जा सकता है कि जंक फूड या बाहर खाना खाना हमारी प्राथमिकता बनता जा रहा है। घर का खाना अब बच्चों की पंसद से दूर होता जा रहा है। रही सही कसर ऑनलाइन प्लेटफार्म ने पूरी कर दी है। आधी रात को भी गली मोहल्लों में स्वीगी या इसी तरह की संस्था से जुड़े कार्मिक को आसपास ही खाद्य सामग्री सप्लाई करते हुए आसानी से देखा जा सकता है।

जहां तक शुद्ध हवा और शुद्ध पानी का प्रश्न है तो आज आरओ और बोतलबंद पानी की गुणवत्ता पर प्रश्न उठाये जाने लगे हैं। प्रदूषण के कारण शुद्ध हवा की बात करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। भले ही पार्कों में कितने ही घूम आओ या जिम में जाकर वर्कआउट कर आओ पर सवाल यही है कि आपके आसपास शुद्ध हवा तो अब रही ही नहीं। वाहनों का प्रदूषित धुआं, एसी सहित इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के कारण वातावरण का बढ़ता तापमान भी खतरनाक है।

रही सही कसर मोबाइल फोन और सोशल मीडिया ने पूरी कर दी है। पिता एक तरफ अपने मोबाइल में मशगूल है तो मां अलग। बेटा-बहू अलग व बच्चों को भी इसी तरह से एक ही कमरे में बैठे होने के बावजूद एक दूसरे से अंजान की जैसी हालात में देखना आम है। सबसे खास यह कि सोशल मीडिया पर किस पोस्ट पर किसने लाइक किया या किसने इग्नोर किया यह तक तनाव का कारण बनता जा रहा है। सौ टके का सवाल यही है कि यदि हमें अपनी जीवन डोर लंबी करनी है तो समय रहते जीवनशैली और खान-पान में बदलाव करना होगा।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद