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सिरसा, 4 जुलाई (हि.स.)। भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डा. लिवलीन शुक्ला ने कहा कि पराली प्रबंधन को लेकर सरकार की ओर से किसानों के लिए अनेक योजनाएं चलाई गई है। वहीं भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र सिरसा में एमडी बायोकॉल के साथ मिलकर पराली प्रबंधन को लेकर नए-नए प्रयोग कर किसानों की समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत है। डा. लिवलीन शुक्ला शुक्रवार को सिरसा में आयोजित एक कार्यक्रम के बाद मीडिया से रूबरू हो रही थी।
डा. शुक्ला ने कहा किं एक नया केमिकल तैयार किया गया है, जोकि पराली को बहुत कम समय में गलाकर खाद में परिवर्तित करेगा, जिससे किसानों की पराली प्रबंधन की समस्या समाप्त हो जाएगी। डा. शुक्ला ने बताया कि सर्वप्रथम यह दवा हरियाणा व पंजाब के एक-एक हजार किसानों को दी जाएगी। जिसके लिए उन्हें ऑनलाइन एमडी बायोकॉल की साइट पर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा।
यह डी-कंपोजर का छोटा पैक धान की पराली और अन्य जैविक अवशेषों के तीव्र अपघटन में अत्यधिक प्रभावशाली है। इसके प्रयोग से पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे वायु प्रदूषण में कमी आएगी और मृदा की उर्वरता तथा जैविक गुण बेहतर होंगे। डा. शुक्ला ने बताया कि यह उत्पाद बहुत कम मात्रा में उपयोग के बावजूद अधिक प्रभावशाली है।
डा. शुक्ला ने बताया कि यह कदम सतत कृषि, खेतों में जैविक अवशेष प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसमें कोई ऐसा केमिकल नहीं है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़े। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे एक बार इस उत्पाद को अपनाएं, जिससे उनकी समस्या का समाधान हो जाए। इस मौके पर एमडी बायोकॉल के डायरेक्टर राजेश सचदेवा ने बताया कि एमडी बायोकॉल पूर्व में भी किसानों की समस्याओं को लेकर लगातार प्रयास कर रहा है।
गांव फरवाई कलां के किसान राजेंद्र कुमार ने बताया कि उसके पास 20 एकड़ जमीन है, उसने पिछले साल 10 एकड़ में दवा का प्रयोग किया था, जिसका परिणाम बहुत अच्छा रहा। फसल के उत्पादन में भी बढ़ोतरी हुई। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे इस दवा को अपनाकर अपनी पराली प्रबंधन की समस्या के साथ-साथ फसल का उत्पादन भी अधिक ले सकेंगे।
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हिन्दुस्थान समाचार / Dinesh Chand Sharma