गोस्वामी तुलसीदास की अलख काे मूर्त रुप देने का कार्य मुंशी प्रेमचंद ने किया: प्रो. मुन्ना तिवारी
तुलसी जयंती पर कार्यक्रम का शुभारंभ कर दीप प्रज्वलित करते अतिथि


--तुलसी जयंती तथा प्रेमचंद जयंती पर हिंदी विभाग में आयोजित हुई एक दिवसीय संगोष्ठी

--मोहम्मद रफी को भी दी गई संगीतमय श्रद्धांजलि

झांसी, 31 जुलाई (हि.स.)। तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से मनुष्य और मनुष्यता की जो अलख जलाई, उसे मूर्त रुप देने का काम प्रेमचंद ने किया। यह बात हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो मुन्ना तिवारी ने कही। वह गोस्वामी तुलसीदास एवं मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में हिंदी विभाग में आयोजित तुलसीदास से प्रेमचन्द तकः मनुष्य और मनुष्यता विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।

प्रो. मुन्ना तिवारी ने कहा कि दुनिया में जितने भी साहित्य सृजित हुए, वह पढ़े जाते हैं। लेकिन, श्रीरामचरितमानस को पूजा जाता है। साहित्य को पूजनीय बनाने वाले तुलसीदास हैं। मनुष्य का किरदार कैसा होना चाहिए, यह बाबा तुलसी ने दुनिया को बताया। इसी प्रकार प्रेमचंद भी अपने समय से 1000 वर्ष के आगे के रचनाकार थे। उनकी कृतियां आज भी प्रासंगिक हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग के आचार्य प्रो. पुनीत बिसारिया ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति जरा भी संवेदनशील है और उसमें मनुष्यता न हो, ये मैं मान ही नहीं सकता हूं। और ये बात प्रेमचंद और तुलसीदास दो के ही विषय में सत्य है। जहां भक्ति की बात आती है, अनपढ़ व्यक्ति भी तुलसी की कुछ चौपाइयां सुना देता है। और जहां समाज की बात आती है वहां प्रेमचंद की रचनाओं के उदाहरण दे दिए जाते हैं। तुलसी रामराज्य में पैदा नहीं हुए, मगर राम राज्य चाहते थे। वो चाहते थे कि सब प्रेम और नीति के साथ जिएं। दोनों ही स्त्री के प्रति संवेदनशील और स्त्री के सम्मान की बात करते हैं। दोनों कहते हैं, मेरी कोई जाति नहीं है, मेरी जाति मनुष्यता है।

डॉ श्रीहरि त्रिपाठी ने कहा कि एक रचनाकार अपने समय को रचाता है। किसी को भी एक बड़ी रचना के लिए एक बड़े सपने की जरूरत होती है। जिसके पास कोई बड़ा सपना नहीं होता वो कुछ भी नहीं रच सकता। तुलसीदास कहते हैं कि रचना का उद्देश्य लोककल्याण होता है। प्रेमचंद और तुलसीदास दोनों का यही उद्देश्य है। तुलसीदास आदर्शवादी रचनाकर के रूप में हमारे सामने आए हैं। जितनी विषम परिस्थितियां तुलसीदास के बचपन की थीं, शायद ही किसी की हो। उनके जीवन का यथार्थ उन्हीं रचना से निकलता है। उनका जीवन भी आदर्श की यात्रा रहा। जहां वे कायाकल्प से चल के कफ़न तक की रचना करते हैं।

डॉ अचला पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद और तुलसीदास दोनों का ही मूल 'त्याग' है। तुलसीदास समाज को त्याग देते हैं और प्रेमचंद अपने स्कूल की नौकरी त्याग देते हैं। उस त्याग के परिणामस्वरूप आज एक भक्ति के सिरमौर है और दूसरा कथा सम्राट के नाम से जाना जाता है।

नवीन चंद्र पटेल ने कहा कि तुलसीदास जो जब तक रहे तब तक कष्ट में रहे। किसी भी समुदाय और समाज के लोगों ने उनका साथ नहीं दिया। दुखी होकर उन्होंने कहा है कि मैं मांग कर खा लूंगा, मस्जिद में सो लूंगा मगर किसी का एहसान नहीं लूंगा। वो जब तक रहे किसी ने उनकी कद्र नहीं की और आज तुलसी और उनकी रचना पूजनीय है। यह ऐसा है जैसे कि साईं बाबा जो अपने पूरे जीवन में एक बूंद तेल को तरसे। उनकी आज मूर्ति बना कर तेल चढ़ाया जाता है। भक्ति काल की रचनाओं में किसी ने प्रमुख भूमिका निभाई है तो वो तुलसी हैं।

इस अवसर पर डॉ प्रेमलता श्रीवास्तव, डॉ सुनीता वर्मा, डॉ. सुधा दीक्षित, डॉ रामनरेश देहुलिया तथा आशुतोष एवं प्रीति ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. बिपिन प्रसाद द्वारा किया गया। इस अवसर पर गीतों के जादूगर मोहम्मद रफी को श्रद्धांजलि देते हुए डॉ. आशीष दीक्षित द्वारा एक गीत प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में कपिल शर्मा, डॉ. रेणु, जोगिंदर, आकांक्षा सिंह, रिचा सेंगर, गरिमा समेत छात्र छात्राएं मौजूद रहे।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया