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-राजर्षि टंडन स्मृति व्याख्यानमाला में विद्वानों का जमावड़ा, शिक्षार्थियों को टैबलेट वितरित-मुक्त विश्वविद्यालय तथा नारायणी अस्पताल के मध्य एमओयू
प्रयागराज, 01 अगस्त (हि.स.)। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में शुक्रवार को भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर अष्टादश राजर्षि टंडन स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन, शिक्षार्थियों को टैबलेट का वितरण तथा मुक्त विश्वविद्यालय तथा नारायणी अस्पताल के मध्य एमओयू किया गया।
मुख्य वक्ता भारतीय प्रबंधन संस्थान, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु के निदेशक प्रोफेसर पी.के. सिंह ने वैश्विक कल्याण एवं भारतीय ज्ञान परम्परा पर व्याख्यान देते हुए कहा कि राजर्षि टंडन की पहचान मौलिकता के लिए संघर्ष करना था। राजर्षि टंडन हमेशा मूल्यों एवं हिन्दी भाषा के विकास के लिए संघर्ष करते रहे। वैश्विक स्तर पर समसामयिक और अर्वाचीन समस्याओं के समाधान के लिए भारतीय ज्ञान परम्परा में अनेक उदाहरण विद्यमान हैं। मूल्यों को लेकर मौलिकता के साथ चलने से सफलता का मार्ग निश्चित है।
प्रो. सिंह ने कहा कि भारतीय ग्रंथों वेद पुराणों में भाषा और मूल्यों के प्रति समर्पण के अनेकों उदाहरण हैं। जिनसे पूरे विश्व को सीख लेनी चाहिए। वर्तमान विश्व में अनेकों प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं। परंतु सत्य और सनातन ऐसे केंद्र बिंदु हैं जो वैश्विक कल्याण के लक्ष्य को पूर्ण करने में समर्थ हैं। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा को वर्तमान समय के लिए उपयोगी बताते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को केवल पाठ्यक्रम में ही नहीं बल्कि अपने जीवन में भी उतारना चाहिए। लक्ष्य प्राप्ति, विचार विमर्श एवं सफलता के लिए भारतीय ज्ञान परम्परा विश्व की धरोहर है।मुख्य अतिथि प्रो. नागेश्वर राव, पूर्व कुलपति, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने राजर्षि टंडन के जीवन आदर्शो को वर्तमान समय के लिए काफी उपयोगी बताया। कहा कि मुक्त विवि ने बीते वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। उन्होंने कहा कि आने वाला समय स्वयं, स्वयंप्रभा चैनल तथा ऑनलाइन कोर्सेज का है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि प्रो. सत्यकाम जैसे जुझारू कुलपति के नेतृत्व में विश्वविद्यालय यह मुकाम अवश्य हासिल लेगा। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा 12बी की मान्यता प्राप्त करने पर कुलपति को बधाई दी।
सारस्वत अतिथि डॉ. नरेन्द्र कुमार सिंह गौर, पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि राजर्षि टंडन का जीवन बहुत सादगी पूर्ण था। भारतीय ज्ञान परम्परा में गुरु शिष्य परम्परा का विशेष स्थान है। मुक्त विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से न सिर्फ शिक्षार्थियों की बौद्धिक एवं शैक्षणिक समझ को बढ़ा रहा है, बल्कि भारतीय संस्कृति और विचारों को भी जन-जन तक पहुंचा रहा है। भारतीय ज्ञान परम्परा में अनेक धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सव हैं। जिनमें प्रयागराज में कुंभ मेले में विश्व के कोने-कोने से ज्ञान प्राप्त करने आए लोग इसका प्रमाण हैं।
अध्यक्षता करते हुए मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत्यकाम ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा और राजर्षि टंडन के जीवन आदर्श वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के लिए मार्गदर्शिका का काम कर सकते हैं। जहां एक ओर पूरा विश्व युद्ध, बाजार एवं आतंक में उलझा है वहीं भारतीय ज्ञान परम्परा शांति का मार्ग दिखाती है। उन्होंने कहा कि शिक्षक और शिक्षार्थी के सम्बंध आत्मिक स्तर से होते हैं जो शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास में सहायक होते हैं। प्रो. सत्यकाम ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा पद्धति परम्परागत शिक्षा पद्धति में बदलाव लाई है जो कि छात्रोपयोगी एवं सृजनात्मक है।
विषय प्रवर्तन तथा अतिथियों का स्वागत प्रो. पी.के.पांडेय एवं संचालन डॉ. त्रिविक्रम तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव कर्नल विनय कुमार ने किया। मीडिया प्रभारी डॉ. प्रभात चंद्र मिश्र ने बताया कि इस अवसर पर प्रो. पी.के.साहू, डॉ. एम.एन सिंह, डॉ. एस. एस. बनर्जी, डॉ. एस. पी. सिंह, श्रीमती पूनम मिश्रा, दीपक सिंह आदि उपस्थित रहे। इस दौरान स्वामी विवेकानन्द युवा सशक्तीकरण योजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय में नामांकित शिक्षार्थियों को टैबलेट का वितरण किया गया। विश्वविद्यालय कर्मियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए मुक्त विश्वविद्यालय तथा नारायणी अस्पताल के मध्य समझौता ज्ञापन किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र