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—उपनिषदों का मानना है कि हमें मूल रूप की उपासना करनी चाहिए:डॉ. अभिजित दीक्षित
वाराणसी,30 जुलाई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में करौंदी स्थित इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के क्षेत्रीय केन्द्र में बुधवार को कला केन्द्र द्वारा संस्कार भारती काशी प्रान्त के संयुक्त तत्वावधान में नादयात्रा शृंखला का आयोजन किया गया। इस संगीतमय कार्यक्रम में मुख्य गायिका उपशास्त्रीय गायिका, एवं संकाय प्रमुख, संगीत एवं मंच कला संकाय बीएचयू डॉ संगीता पण्डित ने सावनी ठुमरी की आकर्षक प्रस्तुति दी। उन्होंने अब के सावन घर आजा, बरसाती दादरा के रूप में- घिर आई काशी बदरिया, सावन झरि लगो धीरे-धीरे, कहनवा मानों ओ राधारानी तथा काहे करेलु गुमान गोरी सावन में जैसी प्रस्तुतियों से महफिल में जान फूंक दिया। उनके साथ गायन में सहयोग में निवेदिता श्याम, अलका कुमारी, शमयिता पांजा ने किया। डॉ. पंडित के साथ तबले पर पं. ललित कुमार, सारंगी पर अनीश मिश्रा,हारमोनियम डॉ. इन्द्रदेव चौधरी ने संगत किया।
कार्यक्रम में प्रथम प्रस्तुति वंशी वादन सुधीर कुमार गौतम ने किया। राग यमन के साथ प्रारम्भ करते हुए उन्होंने कजरी के सुमधुर गीतों को बांसुरी की मधुर तान में पिरोया। कार्यक्रम में मंच कला विभाग के प्रशिक्षु शुभम गोस्वामी ने वर्षा ऋतु तथा संगीत के सम सम्बन्ध को बताया। इसके पहले केन्द्र के निदेशक डॉ. अभिजित दीक्षित ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि'परब्रह्म की उपासना के सम्बन्ध में उपनिषदों का मानना है कि हमें मूल रूप की उपासना करनी चाहिए जो हमें रस के रूप में प्राप्त होता है। काशी के माहात्म्य की चेतना की जागृति के लिये काशी की संगीत परंपरा भी एक अतुलनीय ज्ञान मार्ग है। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता श्याम कृष्ण अग्रवाल शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी और डॉ. रामवीर शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी