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- साझी संस्कृति का साक्षी बना योगीराज भर्तृहरि का समाधि स्थल चुनार किला
- कजरी तीज महोत्सव में पूर्वांचल-राजस्थान की परंपराओं का अद्भुत संगम
मीरजापुर, 31 जुलाई (हि.स.)। सावन की पावन बेला में गुलाबी पत्थरों की आभा से दमकते ऐतिहासिक चुनार के किले में आयोजित कजरी तीज महोत्सव सुर, ताल, नृत्य और भक्ति की भावनाओं से सजीव हो उठा। योगीराज भर्तृहरि के समाधि स्थल पर तीन दिनों तक स्वर लहरियों के बीच लोक संस्कृति की रंग-बिरंगी छटा बिखरी। कजरी तीज महोत्सव का मकसद राजस्थानी और पूर्वांचली लोक कलाओं को एक मंच पर लाना था।
महोत्सव में उषा गुप्ता की सुरीली आवाज ने पूर्वांचल की कजरी परंपरा को जीवंत किया। पूर्वांचल की कजरी गायिका उषा गुप्ता ने पिया मेहंदी लियाय द मोतीझील से... जैसे गीतों से श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। वहीं जटाशंकर के चोलर और कजरी नृत्य ने माहौल को भक्तिरस और लोकमंगल में रंग दिया। दूसरी ओर राजस्थान की रागिनी, गुरु परंपरा पर आधारित भजन और लोकनृत्य ने दर्शकों को संस्कृति की विविधता में एकता का अनुभव कराया। सुंदर जोगी, हजारी नाट और यदराम राणा जैसे राजस्थानी कलाकारों की प्रस्तुति ने माहौल को भक्तिरस और लोकमंगल में रंग दिया।
योगीराज भर्तृहरि के जीवन आधारित भजनाें में बही भक्ति की धारा
दिल्ली व अन्य स्थानों से पधारे दिलीप महाराज, महंत ऊधव नाथ, दीपकनाथ, प्रियाशरण और सुखदेव आनंद महाराज जैसे संतों ने इस आयोजन को केवल सांस्कृतिक नहीं, बल्कि साधना का उत्सव बना दिया। इनकी उपस्थिति में जब योगीराज भर्तृहरि के जीवन पर आधारित भजन गूंजे तो हर श्रोता भावविभोर हो उठा। जैसे वह किसी तीर्थ में नहीं, संस्कृति की गंगोत्री में डुबकी लगा रहा हो।
रंग, रस और परंपरा का सुरमयी मिलन
सूर्यगढ़ कलेक्शन के प्रीतम सिंह ने इस आयोजन के पीछे की सोच को साझा करते हुए कहा कि यह मंच लोककलाओं, लोकस्मृतियाें और संत परंपराओं को जोड़ने का एक प्रयास है। राजस्थान और पूर्वांचल दोनों की आत्मा एक दूसरे से गहराई से जुड़ी हैं। कजरी तीज महोत्सव ने न केवल साझेपन की भावना मजबूत हुई, बल्कि नई पीढ़ी को अपने रंग-बिरंगे, आध्यात्मिक और जीवंत अतीत से परिचित कराया।
हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा