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वाराणसी, 24 जुलाई (हि.स.)। सावन मास के दूसरे गुरूवार को दशाश्वमेध ड़ेढ़सी के पुल स्थित देव गुरू भगवान बृहस्पति का परम्परागत रूप से जल विहार श्रृंगार और दिव्य झांकी दर्शन कर श्रद्धालु आह्लादित दिखे। दरबार में पीत वस्त्र धारण कर श्रद्धालु अलसुबह से ही दर्शन पूजन के लिए पहुंचते रहे। दरबार में देवगुरू के जयकारे के साथ कतारबद्ध श्रद्धालु अपनी बारी आने पर दिव्य झांकी का दर्शन पूजन करते रहे। मंदिर के प्रधान सेवक अजय गिरी ने बताया कि भोर में देवगुरु बृहस्पति भगवान के विग्रह को पंचामृत स्नान 11 ब्राम्हणों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ किया।
प्रातःकाल 4 बजे बाबा की मंगला आरती पुजारी अजय गिरी की देखरेख में हुई। एक दिन पूर्व पूरे मंदिर परिसर को अशोक की पत्ती, कामिनी पत्ती एवं रंग बिरंगे कपड़े, विद्युत झालरों से सजाया गया। भोर में मंगला आरती के बाद विग्रह को स्वर्ण मुखौटा व चांदी के अष्टधातु के छत्र धारण करने के बाद बाबा को सपरिवार पालना पर विराजमान कराया गया। गुरुदेव के विग्रह पर रजत छत्र और रजत के ही शेषनाग शोभायमान रहे। दरबार में रूद्राभिषेक के बाद भोग प्रसाद वितरण शुरू हो गया। उन्होंने बताया कि देर शाम पुजारी अजय गिरी की देखरेख में विशेष शयन आरती होगी। दर्शन पूजन अनवरत चल रहा है। उल्लेखनीय है कि दशाश्वमेध घाट के पास स्थित देवगुरू बृहस्पति भगवान का मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप ही है। स्कंद पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी