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कोलकाता, 16 जुलाई (हि.स.) ।
कलकत्ता हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने बुधवार को केंद्र सरकार से स्पष्ट करने को कहा है कि आखिर देशभर में एक साथ अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान की प्रक्रिया क्यों शुरू की गई और इसके लिए जून का महीना ही क्यों चुना गया?
न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति ऋतव्रत कुमार मित्रा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि क्या इस प्रक्रिया के तहत बंगालियों को निशाना बनाया जा रहा है? अदालत ने यह टिप्पणी दो समान याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए की। इन याचिकाओं में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल से बाहर अन्य राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान के नाम पर बांग्ला भाषी लोगों को मनमाने तरीके से टारगेट किया जा रहा है।
इनमें से एक याचिका दिल्ली में हुए कथित उत्पीड़न से जुड़ी है, जबकि दूसरी याचिका ओडिशा से संबंधित है। इन मामलों में केंद्र की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल धीरज त्रिवेदी ने अदालत को बताया कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उन लोगों की जांच शुरू की गई है, जिनकी गतिविधियां या आवाजाही संदिग्ध पाई गई हैं।
उन्होंने बांग्ला भाषियों को टारगेट किए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि कुल 125 लोगों को पहचान सत्यापन के लिए हिरासत में लिया गया था, जिनमें से 5 लोगों ने खुद को बांग्लादेशी नागरिक स्वीकार किया और उन्हें वापस भेज दिया गया। बाकी सभी को रिहा कर दिया गया।
एक अन्य मामले में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने यह सवाल उठाया कि क्या कलकत्ता हाई कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर सकता है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने पहले यही मामला दिल्ली हाई कोर्ट में दायर किया था। उन्होंने कहा कि एक ही मामला दो अलग-अलग हाई कोर्ट में दायर कर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की गई है।
खंडपीठ ने इस पर नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह इस पूरी प्रक्रिया पर विस्तृत हलफनामा 28 जुलाई तक दाखिल करे। मामले की अगली सुनवाई चार अगस्त को होगी।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर