धर्म में प्रवेश करने के क्षमा, संतोष, सरलता व नम्रता चार द्वार: साध्वी अर्चितगुणा
जोधपुर, 15 जुलाई (हि.स.)। भैरू बाग तीर्थ में तीसरे आगम ठाणांग सूत्र का वाचन करते हुए साध्वी अर्चितगुणा ने धर्म में प्रवेश पाने के चार द्वार बतलाए। प्रथम क्षमा, दूसरा संतोष, तीसरा सरलता एवं चौथा नम्रता। उन्होंने कहा कि इसमें भी क्षमा को महत्वपूर्ण मा
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जोधपुर, 15 जुलाई (हि.स.)। भैरू बाग तीर्थ में तीसरे आगम ठाणांग सूत्र का वाचन करते हुए साध्वी अर्चितगुणा ने धर्म में प्रवेश पाने के चार द्वार बतलाए। प्रथम क्षमा, दूसरा संतोष, तीसरा सरलता एवं चौथा नम्रता।

उन्होंने कहा कि इसमें भी क्षमा को महत्वपूर्ण माना गया है। क्येंकि क्षमा है जहां, मैत्री है वहां। उन्होंने कहा, जो है उसी में संतोष रखना चाहिए। गुरुवर्या ने कहा क्षमा एवं संतोष का गुण जहां होगा वहां सरलता आए बिना नहीं रह सकेगी और जहां सरलता आ गई तो विनम्रता विकसित हुए बिना नहीं रह सकेगी। तीर्थ के प्रवक्ता दिलीप जैन एवं सचिव जगदीश गांधी ने बताया कि गुरुवर्या ने किसी से भी कॉम्पिटिशन न करने तथा जीवन में कैल्क्युलेशन न करने सलाह देते हुए अंदर की परिणीति को साफ रखते हुए सदा प्रसन्न रहने एवं किसी की भी निंदा न करने की प्रेरणा दी। गुरुवर्या ने कठोर और कोमलतम खजूर, बादाम अंगूर एवं सुपारी जैसे श्रावकों के चार रूप बतलाते हुए उसकी व्याख्या करते हुए कहा कि आप किस श्रेणी में आते है। उसका आभास करवाते हुए कहा आप अपनी सोच के अनुरूप अपने जीवन का निर्माण कर सकते है। उन्होंने जीवन की बगियां में सद्गुणों के रंग किस तरह से भरे जाए उस पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। धर्म सभा को साध्वी रत्नगुणा ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर गणेश भंडारी, प्रदीप खिंवसरा, आदेश्वर कोचर, भूरमल मीडिया, कैलाश मोहनोत, मुकेश गोदावत, कैलाश मेहता एवं महिपाल जैन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

सत्य से उत्पन्न होता है धर्म: सुमति मुनि

जोधपुर। चौरडिया भवन में विराजित सुमति मुनि महाराज ने जिनवाणी फरमाते हुए कहा कि जो आपके पास परिग्रह है उसको छोडऩे से संसार से पार हो सकते हैं। श्रद्धा परम दुर्लभ है। श्रद्धा यानि सत्य को धारण कर जीवन जीना है। सत्य से धर्म उत्पन्न होता है। धन को पुण्य नहीं कहा गया है, इसका त्याग करोगे। यह मिथ्या धारणा है कि पैसों से सब कार्य होता है। आप किसी की सहायता करते हो तो वह आप पर उपकार कर रहा है। जो मार्गानुसारी हैं वे प्रतिक्रमण के अधिकारी हैं। बीज बोने से पहले भूमि की सफाई, खाद, पानी आदि जरूरी है तब फसल अच्छी मिलती है।

प्रतिक्रमण के पहले तीन आवश्यक यह कहते हैं कि आपको पाप करना नहीं है लेकिन जो पाप-दोष, गलत व्यवहार किया, उससे वापस अपने निजस्थान आत्मा में लौट आओ। अगले दो आवश्यक से हम हमारे आत्म भाव में रहते हैं। इससे पूर्व महासती नगीना श्रीजी ने कहा कि समकित प्राप्त होने से संसार परिमित होता है, हमारे जन्म मरण चक्र का अंत होगा। पुण्यवाणी से हमारे जन्म मरण समाप्त नहीं होते हैं।

परमात्मा की पूर्ण बात मानने से श्रद्धा आती है परमात्मा ने जो कहा उसको मानना है। देवराज बोहरा ने बताया कि सुबह 6.15 से 7.15 तक ज्ञान शिविर, 8.30 से 9.45 तक प्रवचन, दोपहर एक से सायं चार बजे तक आगम-वाचन, सांयकाल 7.25 पर प्रतिक्रमण एवं रात नौ से दस बजे तक धर्म चर्चा का कार्यक्रम होता है।

हिन्दुस्थान समाचार / सतीश