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हरिद्वार, 15 जुलाई (हि.स.)। हरिद्वार में श्रावण मास का कांवड़ मेला परवान पर है। मेले के पांचवें दिन भगवामय हो चुकी तीर्थ नगरी में चारों ओर शिव भक्त ही दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में जो नजारा देखने को मिल रहा है, वह मात्र एक धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि अदभुत आध्यात्मिक महोत्सव का रूप है। रात्रि के समय जब रंग-बिरंगी लाइटों से सजी कांवड़ सड़कों पर निकलती हैं, तो पूरा शहर देव स्वरूप लगने लगता है। कोई कहता है यह दृश्य धरती का नहीं, स्वर्ग का है! तो कोई अनजान व अपरिचित शिव भक्तों के साथ नाचने लगता है। रंग-बिरंगी आकर्षक कावड़ रूपी झांकियां लोगों को मनमोहक लग रही हैं।
मंगलवार को उस समय भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा, जब एक विशाल कांवड़ भगवान केदारनाथ मंदिर की आकृति में सजी हुई निकली। दृश्य ऐसा था मानो स्वयं केदारनाथ मंदिर चलकर हरिद्वार की सड़कों से गुजर रहा हो। हजारों भक्तों ने वहीं खड़े होकर हाथ जोड़ दिए। कुछ की आंखें नम थीं, कुछ के चेहरे पर मुस्कान और जयकारे लगने लगे- जय बाबा केदारनाथ की, हर हर महादेव, हर हर गंगे, बोल बम। जहां देखो वहां भगवा रंग, भक्ति से भरे गीतों की धुन, शिवभक्ति में डूबे युवाओं की टोलियां, ऐसा लगता है मानो देवता स्वयं हरिद्वार में आकर अपनी स्तुति सुन रहे हैं।
हरिद्वार निवासी और शिक्षिका पूजा पारीक का कहना है कि यूं तो तीर्थनगरी हरिद्वार का कण-कण शिव शंकर है। यहां आशुतोष भगवान शिव की ससुराल है। श्रावण मास में भगवान अपनी ससुराल में अपने दिए वरदान के मुताबिक निवास करते हैं, किन्तु कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों की भारी भीड़ को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि देवलोक के सभी देवगण कांवड़ियों के रूप में यहां उतर आए हैं। कुछ कांवड़िये तो ऐसा वेशधारण किए होते हैं, जैसे वह साक्षात शिवगण ही हों। कांवड़ में यहां की छटा दिव्य प्रतीत होती है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला