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मंडी, 13 जुलाई (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में संगीत एवं नाटक की जीवंत परंपरा को आगे बढ़ने के उददेश्य से हिमाचल संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की मांग उठने लगी है। हालांकि, हिमाचल गंगीत नाटक अकादकी की स्थापना की इस मांग को शिमला से स्वर मिला है, लेकिन हिमाचल की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में विख्यात मंडी से भी इस तरह के स्वर उठने लगे हैं।
राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त एवं प्रख्यात रंगनिर्देशक केदार ठाकुर ने वित्तीय बोझ से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश में हिमाचल संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की पुरजोर मांग उठाई । उनका कहना है कि राज्य सरकार का यह कदम न सिर्फ सांस्कृतिक उत्थान करेगा बल्कि राज्य पर सांस्कृतिक गतिविधियों से पड़ रहे वित्तीय बोझ को भी लगभग समाप्त ही कर देगा l हिमाचल संगीत नाटक अकादमी भाषा एवं संस्कृति विभाग व गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी के साथ सांस्कृतिक उन्नयन में एक मज़बूत और आर्थिक रूप से सशक्त सांझेदार के रूप में उभरेगा l
केदार ठाकुर ने कहा कि यह थियेटर केवल एक इमारत नहीं बल्कि हिमाचल की सांस्कृतिक चेतना का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने कहा कि हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत में जहां एक ओर करियाला, बांठड़ा, हरण, धाजा, भगत, ठोडा, हारुल, खेल व सवांग आदि प्रचलित लोक नाट्य विधाएं हैं तो दूसरी ओर कुल्लवी नाटी, किन्नौरी लोकनृत्य, पहाड़ी गायन और पारंपरिक नाट्य विधाएं भी समृद्ध रही हैं l अभी तक राष्ट्रीय स्तर की किसी समर्पित संस्था द्वारा हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ है जो दुर्भाग्य पूर्ण है l
हिमाचल संगीत -नाटक अकादमी के उद्देश्यों के बारे में केदार ठाकुर ने बताया इसके माध्यम से हिमाचली प्रदर्शनकारी कलाओं का प्रलेखन और शोध, राज्य स्तरीय रंग महोत्सवों और कार्यशालाओं का निरंतरता से आयोजन, युवा कलाकारों के लिए छात्रवृत्तियां और फैलोशिप, वरिष्ठ एवं युवा अति उत्कृष्ट कलाकारों को राज्य स्तरीय सम्मान और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिमाचल की सांस्कृतिक उपस्थिति रहेगी जो अब तक शून्य हैl
इधर, हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान सतोहल नाट्य अकादमी की सचिव एसवं रंगकर्मी सीमा शर्मा का कहना है कि यह एक सामूहिक प्रयास है, सभी रंगकर्मी, साहित्यकार और कलाकार एक सुर में अपनी बात रखेंं तभी इसका हल निकल पाएगा। वहीं पर आकार थिएटर सोसाइटी के सचिव दीप कुमार का कहना है कि हिमाचल प्रदेश अपनी समृद्ध और विविध लोक-संस्कृति के लिए जाना जाता है। संगीत, नृत्य और नाट्य की यहाँ की परंपराएं सदियों पुरानी हैं। इन अनमोल कलाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए, प्रदेश में संगीत नाटक अकादमी की एक स्थानीय शाखा का होना अत्यंत आवश्यक है। मंडी जैसी किसी केंद्रीय जगह पर एक शाखा होने से कलाकारों को अनुदान, फैलोशिप या अन्य योजनाओं के लिए बार-बार दिल्ली जाने की आवश्यकता नहीं होगी। एक स्थानीय केंद्र कलाकारों और सांस्कृतिक समूहों को वित्तीय सहायता और परियोजनाओं के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया को सरल बना सकता है। इससे उन्हें अपनी कला को जीवित रखने और नई प्रस्तुतियों को तैयार करने में मदद मिलेगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा