36 साल पुराने बेनामी सौदे में अपील खारिज, 16 बिस्वा जमीन-मकान सरकार के कब्जे में जाएंगे
शिमला, 13 जुलाई (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में बेनामी जमीन सौदे के एक मामले में बड़ी कार्रवाई हुई है। मंडलीय आयुक्त शिमला संदीप कदम ने जिला कलेक्टर सोलन के 2011 के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी है। इसके बाद सोलन जिला के कसौली तहसील के बुरानवाल
36 साल पुराने बेनामी सौदे में अपील खारिज, 16 बिस्वा जमीन-मकान सरकार के कब्जे में जाएंगे


शिमला, 13 जुलाई (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में बेनामी जमीन सौदे के एक मामले में बड़ी कार्रवाई हुई है। मंडलीय आयुक्त शिमला संदीप कदम ने जिला कलेक्टर सोलन के 2011 के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी है। इसके बाद सोलन जिला के कसौली तहसील के बुरानवाला गांव की 16 बिस्वा जमीन और उस पर बने दो मंजिला मकान को सरकार अपने कब्जे में लेगी।

मामले की शुरुआत वर्ष 1989 में हुई, जब गैर-कृषक जगमोहन सिंह ने यह जमीन ईश्वर दास के नाम पर खरीदी, लेकिन असल में इसकी कीमत खुद जगमोहन सिंह ने चुकाई थी। जांच में पता चला कि जगमोहन सिंह ने इस जमीन पर दो सेट वाला मकान बनाया, जिसमें से एक किराए पर चढ़ाकर लाखों रुपये की सालाना आय अर्जित करता रहा और दूसरे में खुद रहता था।

2006 में तहसीलदार कसौली और थाना बरोटीवाला के एसएचओ की रिपोर्ट के आधार पर हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की धारा 118 के उल्लंघन का मामला जिला कलेक्टर सोलन के सामने आया। 21 मार्च, 2011 को जिला कलेक्टर ने जमीन और मकान को सरकार के कब्जे में लेने का आदेश दिया। हालांकि जगमोहन सिंह ने इस आदेश को चुनौती देते हुए डिवीजनल कमिश्नर के पास अपील दायर की जो 14 साल तक लंबित रही। अपील में जगमोहन सिंह का तर्क था कि ज़मीन की रजिस्ट्री 1989 में हुई, जबकि 1995 में कानून में संशोधन कर बेनामी लेन-देन पर रोक लगाई गई, इसलिए उस पर यह नियम लागू नहीं होता। साथ ही उसने दावा किया कि वह जन्म से हिमाचल में रह रहा है, इसलिए उस पर कोई पाबंदी नहीं थी।

लेकिन मंडलीय आयुक्त शिमला ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता ने खुद माना कि जमीन की असली कीमत उसी ने दी थी और मकान के पानी-बिजली के कनेक्शन भी उसी के नाम पर थे। यानी उसने पूरी तरह से कानून की जानकारी होते हुए भी बेनामी सौदा किया। हिमाचल का गैर-कृषक होने के बावजूद बिना सरकारी अनुमति के ज़मीन खरीद कर उसने धारा 118 का उल्लंघन किया। फैसले में कहा गया कि अब जमीन और उस पर बने मकान को सरकार के कब्जे में लिया जाएगा और जिला प्रशासन इसके लिए प्रक्रिया शुरू करेगा।

गौरतलब है कि उक्त जमीन को उपायुक्त सोलन की अदालत ने 21 मार्च, 2011 को हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की धारा 118 की उल्लंघना मानते हुए बेदखली के आदेश दिए थे। हालांकि उक्त भूमि का 23 जुलाई, 2013 को इंतकाल प्रदेश सरकार के नाम हो गया था लेकिन उक्त करोड़ों की भूमि पर अवैध तौर पर मालिकाना हक जमा कर अधिकांश क्षेत्र में बनाए भवन को किराया पर चढ़ा जगमोहन लाखों रुपए की सालाना आय लगातार अर्जित करता रहा और डिवीजनल कमीशनर शिमला के समक्ष उपायुक्त सोलन के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी।

अपील में जगमोहन सिंह ने तर्क दिया कि ज़मीन की रजिस्ट्री 1989 में हुई थी, जबकि 1995 में कानून में बेनामी लेन-देन को लेकर संशोधन हुआ, इसलिए उस पर यह नियम लागू नहीं होता। साथ ही दावा किया कि वह जन्म से हिमाचल का निवासी है। मगर डिवीजनल कमिश्नर शिमला ने सभी दलीलों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता ने खुद माना कि जमीन की असली कीमत उसी ने चुकाई और मकान के बिजली-पानी के कनेक्शन भी उसी के नाम पर हैं। यानी उसने जानबूझकर कानून का उल्लंघन किया और गैर-कृषक होने के बावजूद बिना अनुमति के जमीन खरीदी जो धारा 118 का सीधा उल्लंघन है।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा