हृदयनारायण दीक्षित
अस्तित्व की अभिव्यक्ति है प्रकृति। अस्तित्व है अंतहीन। सृजन प्रकृति का धर्म है। प्रतिपल नई कोंपल, नई कली, नव पराग, नव मकरंद। कीट-पतिंग भी नवसृजन हैं। नन्हीं गौरैया के मुंह में दाना डालती गौरैया माता या अपने बच्चे को पेट में चिपकाए
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