संविधान की हत्या कर 1975 में देश पर थोपी गई तानाशाही
रामबहादुर राय इमरजेंसी का दिन कौन सा था? यह प्रश्न सालों से उलझा हुआ था। भारत सरकार के गृह मंत्रालय की अधिसूचना (11 जुलाई, 2024) ने उस भ्रम को दूर किया है। अब यह सुनिश्चित हो गया है कि 25 जून 1975 को संविधान की हत्या कर देश पर तानाशाही थोपी गई। जो प
रामबहादुर राय


रामबहादुर राय

इमरजेंसी का दिन कौन सा था? यह प्रश्न सालों से उलझा हुआ था। भारत सरकार के गृह मंत्रालय की अधिसूचना (11 जुलाई, 2024) ने उस भ्रम को दूर किया है। अब यह सुनिश्चित हो गया है कि 25 जून 1975 को संविधान की हत्या कर देश पर तानाशाही थोपी गई। जो प्रश्न आज भी बहस में है, वह यह है कि क्या इमरजेंसी आवश्यक थी? इमरजेंसी क्यों लगाई गई?

कुछ लोग मानते हैं कि कांग्रेस के आंतरिक विद्रोह से बचने के लिए इमरजेंसी लगाई गई थी। दूसरे लोग कहते हैं, जेपी आंदोलन के कारण देश में अशांति का खतरा पैदा हो गया था। इसलिए इमरजेंसी लगाई गई थी।

देश में इमरजेंसी लगाए जाने के कारणों की इतिहासकार, पत्रकार, विश्लेषक और विद्वान खोज करते आ रहे हैं। वास्तव में इमरजेंसी लगाने का सिर्फ एक ही कारण था। वह यह था कि 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट से इंदिरा गांधी को अपने मामले में कोई राहत नहीं मिली। उनका चुनाव अवैध ही बना रहा। उस फैसले के बाद इंदिरा के सामने दो रास्ते थे। पहला, वह लोकतांत्रिक मार्ग अपनातीं। उस पर चलकर कांग्रेस संसदीय दल की बैठक बुलातीं। जिसमें वह कहतीं कि जब तक सुप्रीम कोर्ट से मेरे मुकदमे का फैसला नहीं हो जाता, तब तक पार्टी अपना नया नेता चुन ले। यदि ऐसा होता, तो लोकतांत्रिक होता और इमरजेंसी नहीं लगता, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चूना।

इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय में उस समय संयुक्त सचिव रहे बिशन टंडन ने अपनी डायरी में लिखा है कि जितना मैं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जानता हूं, यदि वे मुकदमा हार जाएंगी तो अपनी कुर्सी बचाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकती हैं। और यही हुआ।

12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सिन्हा के फैसले के दिन से ही इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाने की तैयारी शुरू कर दीं थीं। जस्टिस शाह की अध्यक्षता में इमरजेंसी पर बने जांच आयोग ने 12 जून 1975 से लेकर इमरजेंसी लगाए जाने की तारीख (25 जून) तक की हर घटनाक्रम की जांच की है। उन्होंने पाया है कि प्रधानमंत्री निवास से सरकार चलाई जा रही थी। सरकार कुछ लोग चला रहे थे, जिन्हें जनता ने 'चंडाल चौकड़ी' कहा है। पीएम निवास से ही मनमानी गिरफ्तारी की लिस्ट बनी और इमरजेंसी की घोषणा से पहले ही गिरफ्तारियां शुरू हो गईं।

एक और तथ्य सामने आया है। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के पास इमरजेंसी लगाने का जो पत्र भेजा गया था, वह राष्ट्रपति के साथ छल था। यदि राष्ट्रपति उस पत्र पर हस्ताक्षर कर देते, तो यह समझा जाता कि इमरजेंसी लगाने का निर्णय राष्ट्रपति का है। इंदिरा गांधी का नहीं। संविधान में यह व्यवस्था है कि यदि देश में इमरजेंसी जैसी कोई स्थिति पैदा होती है, तो उस पर मंत्रिमंडल विचार करेगा। मंत्रिमंडल की ओर से एक सिफारिश राष्ट्रपति को जाएगी और राष्ट्रपति उस पर सिफारिश या प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करेंगे। 25 जून 1975 को जब इमरजेंसी लगाई गई, वह इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर से लगी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस संवैधानिक प्रावधान को पूरा नहीं किया। इंदिरा मंत्रिमंडल को इमरजेंसी लगने की जानकारी ही नहीं थी।

तत्कालीन कैबिनेट सचिव बीडी पांडेय ने अपनी गवाही में कहा है कि 26 जून की सुबह 4 बजे पीएम आवास से फोन आया कि सुबह छह बजे मंत्रिमंडल की बैठक है। उसी समय पीएम निवास से ही मंत्रियों को फोन किया गया था, जबकि मंत्रिमंडल बैठक की जानकारी और एजेंडा कैबिनेट सचिव, मंत्रियों को देते हैं।

इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाली सरकार और उनके मंत्रिमंडल ने इसे संविधान हत्या दिवस कहा है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के समूह संपादक और आईजीएनसीए के अध्यक्ष हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / पवन कुमार