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दयानंद कॉलेज में हीरक जयंती समारोह का वैदिक संस्कृति की गूंज के साथ समापनहिसार, 22 जून (हि.स.)। ‘संस्कृति की जड़ें जितनी गहरी होती हैं, विकास उतना ही स्थायी होता है।’ इसी को सार्थक करते हुए दयानंद कॉलेज में आयोजित बहुप्रतीक्षित हीरक जयंती समारोह का दूसरा दिन रविवार को पारंपरिक गरिमा और वैदिक उल्लास के साथ संपन्न हुआ। यह भव्य आयोजन दयानंद महाविद्यालय की न केवल शैक्षणिक उपलब्धियों का उत्सव रहा बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं की जीवंत प्रस्तुति भी रहा। दयानंद महाविद्यालय के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में मनाई जा रही हीरक जयंती समारोह के दूसरे दिन की शुरुआत मुख्य अतिथि पद्मश्री आर्य रत्न पूनम सूरी और श्रीमती मणि सूरी का महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. विक्रमजीत सिंह ने स्वागत से हुई। पद्मश्री आर्य रतन पूनम सूरी ने अपने संबोधन में महाविद्यालय के गौरवशाली इतिहास, अनुशासन और शैक्षणिक उपलब्धियों की सराहना की। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन न केवल विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं बल्कि उनके व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और ‘संस्कार और शिक्षा जब साथ मिलते हैं, तो युवा सिर्फ डिग्रीधारी नहीं, चरित्रवान भी बनते हैं।’
तदोपंरात संस्कृति, परंपरा और वेदों के नैतिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए एक विशेष भजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें देश के प्रमुख वैदिक भजन प्रस्तोता महाशय कैलाश कर्मथ जी (कोलकाता) और आचार्या अमृता जी (दिल्ली) ने अपनी टीम सहित श्रोताओं को भाव-विभोर किया। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. विक्रमजीत सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि वैदिक संस्कृति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी प्राचीन काल में थी। उन्होनें सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि यह आयोजन संस्थान के सामूहिक प्रयासों की भावना का प्रतिफल है। उन्होंने संयोजक डॉ. विवेक श्रीवास्तव व सह-संयोजक मंजीत सिंह, सभी शिक्षकों, कर्मचारियों, विद्यार्थियों और सहयोगियों का सफल आयोजन के लिए आभार प्रकट किया। कार्यक्रम के अंत में डाॅ. विवेक श्रीवास्तव ने सभी का धन्यवाद किया। मंच संचालन डॉ. छवि मंगला ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर