मेवाड़ की चित्रकला से ही राजस्थान की अन्य शैलियों का हुआ जन्म — प्रो. बीपी शर्मा
सात दिवसीय मेवाड़ लघु चित्र शैली व पुरालिपि कार्यशाला का शुभारंभ
मेवाड़ की चित्रकला से ही राजस्थान की अन्य शैलियों का हुआ जन्म — प्रो. बीपी शर्मा


मेवाड़ की चित्रकला से ही राजस्थान की अन्य शैलियों का हुआ जन्म — प्रो. बीपी शर्मा


उदयपुर, 19 जून (हि.स.)। प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ के तत्वावधान में हल्दीघाटी की धरा पर राष्ट्र चेतना यज्ञ से शुरू हुए हल्दीघाटी विजय सार्द्ध चतु: शती समारोह के प्रथम सोपान 18 जून से 25 जून के तहत दूसरे दिन गुरुवार को दो कार्यशालाओं का उद्घाटन संयुक्त रूप से हुआ। 25 जून तक चलने वाली मेवाड़ लघु चित्रशैली कार्यशाला व पुरालेख—पुराभाषा—भाषा विज्ञान कार्यशाला में उदयपुर सहित अन्य शहरों से भी प्रतिभागी पहुंचे हैं।

प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने बताया कि उद्घाटन समारोह में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ कार्यशालाओं का उद्घाटन हुआ। उद्घाटन में वीर​ शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा, हल्दीघाटी विजय सार्द्ध चतु: शती समारोह के संयोजक सीए महावीर चपलोत, वरिष्ठ चित्रकार आनंदी लाल शर्मा, राजस्थान विद्यापीठ के साहित्य संस्थान के निदेशक जीवन सिंह खरकवाल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवानिवृत्त निदेशक डॉ. धर्मवीर शर्मा अतिथि थे।

प्रोफेसर भगवती प्रसाद शर्मा ने उद्घाटन समारोह में कहा कि मेवाड़ चित्र शैली के चटक रंग और उसकी मौलिकता विश्व में प्रसिद्ध है। यहां के चित्रों में मेवाड़ की सभ्यता एवं संस्कृति की झलक के साथ-साथ भारतीय आत्मा का दर्शन है। मेवाड़ की चित्रकला से ही राजस्थान की अन्य शैलियों का जन्म हुआ है इसीलिए मेवाड़ शैली का विशेष महत्व है।

संस्कार भारती व पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सहयोग से हो रही चित्रकला कार्यशाला के संयोजक प्रो. राम सिंह भाटी ने कार्यशाला का संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कहा कि 25 जून तक उदयपुर के लघु चित्र शैली के 23 चित्रकार कलाकृतियों का सृजन करेंगे। साथ ही प्रतिदिन कला चर्चा भी होगी जिससे लघु चित्र शैली की बारीकियां समझने का मिलेगा।

आईसीएचआर व साहित्य संस्थान राजस्थान विद्यापीठ के सहयोग से हो रही पुरालेख—पुराभाषा—भाषा विज्ञान कार्यशाला के संयोजक डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि कार्यशाला मुख्यतः ब्राह्मी लिपि एवं इसकी विकसित रूपों पर केंद्रित होगी। कार्यशाला की शुरुआत प्रतिभागियों को अशोककालीन ब्राह्मी लिपि से परिचित कराने एवं उसका शिक्षण देने से होगी। इस प्रशिक्षण के अंतर्गत प्रतिभागी अशोक के अभिलेखों का पठन करना भी सीखेंगे। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को पुरा लिपि विशेषज्ञ डॉ. टी एस रविशंकर (सेवानिवृत्ति निदेशक, पुरातत्व सर्वेक्षण), सिंधु लिपि विशेषज्ञ डॉ. धर्मवीर शर्मा (सेवानिवृत्ति निदेशक, पुरातत्व सर्वेक्षण), खरोष्टी विशेषज्ञ डॉ. अभिजीत दांडेकर (सह आचार्य, डेक्कन कॉलेज पुणे), भाषा विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. अजीत कुमार बेस्य (प्रोफेसर, सिलचर कॉलेज), राजस्थानी भाषा विशेषज्ञडॉ. सूरज राव (सह पंजीयक, महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर) आदि विषय विशेषज्ञों का मार्गदर्शन मिलेगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनीता