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जलपाईगुड़ी, 19 जून (हि. स.)। मानसूनी बरसात के मौसम में जलपाईगुड़ी जिले के कृषि बागान इलाके में श्मशान घाट की दुर्दशा की मार झेल रहा है। कंटीले तारों से रहित यह श्मशान घाट एक नदी के किनारे स्थित है, जहां हर बरसात में नदी का पानी श्मशान घाट में भर जाता है, जिससे दाह संस्कार के लिए इस श्मशान घाट पर निर्भर रहने वाले परिवारों को भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है।
इस श्मशान घाट का इस्तेमाल बामनपाड़ा, कृषि बागान और खट्टर ब्रिज समेत आसपास के कम से कम पांच गांवों के लोग करते हैं। लेकिन यह इलाका लंबे समय से विकास की रोशनी से वंचित है। यहां न तो पक्की छत है और न ही बैठने की कोई स्थायी व्यवस्था है। मानसून के दौरान पूरा श्मशान घाट जलमग्न हो जाता है, जिससे शवों को अंतिम संस्कार के लिए काफी मुश्किल हो जाता है।
एक स्थानीय निवासी ने बताया कि जब रात में कोई मरता है, तो हमें शव को स्ट्रेचर पर या कीचड़ भरी सड़कों पर बांस के डंडों से बांधकर ले जाने के लिए अंधेरे कीचड़ से गुजरना पड़ता है। श्मशान घाट पर सोलर लाइट लगाई गई थी, लेकिन यह अक्सर खराब हो जाती है या पानी में चली जाती है। नतीजतन, रात के समय दाह संस्कार के दौरान रोशनी की भारी कमी होती है। महिलाओं और बुजुर्गों के लिए यह स्थिति और भी मुश्किल हो जाती है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मामले की शिकायत कई बार पंचायत और स्थानीय प्रशासन से की जा चुकी है। वादों के बावजूद हकीकत में कुछ नहीं हुआ। कुछ लोगों ने अपने खर्च पर थोड़ी मिट्टी डालकर सड़क की मरम्मत करने की कोशिश की, लेकिन वह भी बरसात में बह गई।
गांव वालों का मानना है कि अंतिम संस्कार गरिमापूर्ण और सम्मानजनक होना चाहिए। यह श्मशान घाट सिर्फ श्मशान घाट नहीं है, यह इलाके के लोगों की आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है। इसलिए उन्हें लगता है कि यह उपेक्षा उनका अपमान है।
हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय