हरियाणा के रेलू राम हत्याकांड के दोषी दामाद व बेटी को हाईकोर्ट से अंतरिम जमानत
-वर्ष 2002 की नीति पर सरकार दो माह में करेगी स्थाई जमानत पर फैसला चंडीगढ़, 11 दिसंबर (हि.स.)। बहुचर्चित पूर्व विधायक रेलूराम पूनिया हत्याकांड में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। काेर्ट ने इस हत्याकांड के दोषी रेलूराम के दामाद संज
हरियाणा के रेलू राम हत्याकांड के दोषी दामाद व बेटी को हाईकोर्ट से अंतरिम जमानत


-वर्ष 2002 की नीति पर सरकार दो माह में करेगी स्थाई जमानत पर फैसला

चंडीगढ़, 11 दिसंबर (हि.स.)। बहुचर्चित पूर्व विधायक रेलूराम पूनिया हत्याकांड में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। काेर्ट ने इस हत्याकांड के दोषी रेलूराम के दामाद संजीव तथा बेटी सोनिया को समय से पहले रिहाई को मंजूरी प्रदान कर दी। दोनों दो दोषी उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।

हाई कोर्ट ने समयपूर्व रिहाई नहीं करने के सरकारी आदेश को रद्द करते हुए उन्हें अंतिम निर्णय होने तक अंतरिम जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार और स्टेट लेवल कमेटी ने सोनिया व उसके पति संजीव के मामले पर निर्णय लेते समय कानूनी सीमाओं का उल्लंघन किया।

काेर्ट ने कहा कि पुराने जेल आचरण रिकार्ड का गलत इस्तेमाल किया गया और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की मनमानी व्याख्या की गई।

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2001 में हिसार के लितानी गांव के पास स्थित फार्म हाउस में पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया (50), उनकी पत्नी कृष्णा देवी (41), बच्चे प्रियंका (14), सुनील (23), बहू शकुंतला (20), पोता लोकेश (4) और दो पोतियों शिवानी (दो) तथा 45 दिन की प्रीति की हत्या कर दी गई थी। 2004 में हिसार की अदालत ने संजीव और सोनिया को फांसी की सजा सुनाई, जिसे 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। बाद में 2014 में दया याचिका में देरी का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

रेलू राम पूनिया हत्याकांड में सोनिया और संजीव कुमार ने हरियाणा सरकार के छह अगस्त 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने पाया कि सरकार ने न केवल अपनी ही 2002 की रिमिशन पॉलिसी का गलत अनुप्रयोग किया, बल्कि कई ऐसे पहलुओं पर टिप्पणी की, जिन पर अधिकार सिर्फ अदालतों का है।

जस्टिस सूर्य प्रताप सिंह ने आदेश देते हुए कहा कि राज्य स्तर की समिति ने कानूनन निषिद्ध क्षेत्रों में दखल दिया है, जिससे पूरा निर्णय अवैध और विकृत हो गया है।

फैसले के अनुसार संजीव कुमार 2004 के हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहा है और उसकी फांसी की सजा बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में विलंब के आधार पर उम्रकैद में बदली थी। उसने वास्तविक 20 वर्ष से अधिक और कुल 25 वर्ष से अधिक (रिमिशन सहित) सजा काट ली है। सोनिया 21 वर्ष से अधिक की वास्तविक सजा और 28 वर्ष से अधिक की कुल सजा (रिमिशन सहित) काट चुकी है जो कि हरियाणा सरकार की 2002 की समयपूर्व रिहाई नीति के अनुसार उसकी पात्रता पूरी करते हैं।

इसलिए समय पूर्व रिहाई के विचार योग्य थे,लेकिन समिति ने 2005 से 2018 तक के पुराने जेल नियम को आधार बना कर रिहाई ठुकरा दी, जिसे कोर्ट ने स्पष्ट त्रुटि करार दिया। समिति ने आरोपित के न्यायिक इकबालिया बयान और कथित सुसाइड नोट की सामग्री का मूल्यांकन किया।

अदालत ने कहा कि यह किसी कार्यकारी निकाय का नहीं बल्कि न्यायालय का क्षेत्राधिकार है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य अपनी बनाई नीति का स्वयं उल्लंघन नहीं कर सकता और रिमिशन को पूरी पारदर्शिता व समानता के आधार पर देखना होगा। इन गंभीर त्रुटियों को देखते हुए हाई कोर्ट ने न केवल आदेश रद्द किया, बल्कि राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह दो महीने के भीतर 2002 नीति के प्रावधानों के तहत मामले पर नए सिरे से फैसला करे। तब तक अदालत ने उनको अंतरिम जमानत पर रिहा करने का भी आदेश दिया है, बशर्ते वह आवश्यक बांड भर दे।

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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव शर्मा