बरेली में सपा नेता के विवाह हॉल गिराने पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश
--बीडीए को कंपाउंडिंग पर निर्णय लेने का निर्देश प्रयागराज, 11 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बरेली में “ऐवाने-ए-फरहत “ नामक बैंक्वेट हॉल के मालिक समाजवादी पार्टी के नेता को फिलहाल राहत दी है। गुरुवार को कोर्ट ने मैरिज हॉल के ढांचा क
इलाहाबाद हाईकाेर्ट


--बीडीए को कंपाउंडिंग पर निर्णय लेने का निर्देश

प्रयागराज, 11 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बरेली में “ऐवाने-ए-फरहत “ नामक बैंक्वेट हॉल के मालिक समाजवादी पार्टी के नेता को फिलहाल राहत दी है। गुरुवार को कोर्ट ने मैरिज हॉल के ढांचा को गिराने वाली बरेली विकास प्राधिकरण की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति कुणाल रवि सिंह की पीठ ने पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया और याचिकाकर्ताओं को अनधिकृत निर्माण के नियमितीकरण और कंपाउंडिंग के लिए आवेदन के साथ बीडीए के उपाध्यक्ष से सम्पर्क करने की स्वतंत्रता दी है।

यह आदेश उच्चतम न्यायालय से मालिक व सपा नेता सरफराज वली खान और उनकी पत्नी फरहत जहां की अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करने के लगभग एक सप्ताह बाद उच्च न्यायालय ने दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता दी गई थी। 4 दिसम्बर को उच्चतम न्यायालय ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि “गिराने की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है“ और आंशिक विध्वंस किया जा चुका है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने एक सप्ताह के लिए अंतरिम सुरक्षा प्रदान करते हुए निर्देश दिया था कि 10 दिसम्बर, 2025 तक यथास्थिति बनाए रखी जाए। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता शशि नंदन ने तर्क दिया कि विध्वंस की कार्रवाई एक कथित आदेश (12 अक्टूबर, 2011) की ’आड़’ में की जा रही है, जो याचिकाकर्ताओं को कभी तामील नहीं कराया गया था।

याचिकाकर्ताओं फरहत जहां व अन्य की ओर से कहा गया कि अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना सीधे गिराने की कार्यवाही शुरू कर दी। याचिकाकर्ताओं ने 1973 के अधिनियम के तहत उपलब्ध प्रावधानों का सहारा लेते हुए कहा कि निर्माण का विवादित एरिया कम्पाउंडेबल है।

दूसरी ओर, बीडीए का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया है। उन्होंने कहा कि स्वीकृत मानचित्र के बिना विवाह हॉल (बारात घर) के निर्माण के संबंध में 1973 अधिनियम की धारा 27(1) के तहत 2011 में ही नोटिस जारी किए गए थे। यह बताया गया कि मई और अक्टूबर 2011 के बीच कई अवसर दिए जाने के बावजूद, याचिकाकर्ता न तो उपस्थित हुए और न ही साक्ष्य प्रस्तुत किए। परिणामस्वरूप, 12 अक्टूबर 2011 को गिराने का आदेश पारित किया गया।

बीडीए ने कहा कि 2011 का आदेश अधिनियम की धारा 27(2) के तहत अपील योग्य था, जो एक वैधानिक उपाय है जिसका याचिकाकर्ता उपयोग करने में विफल रहे।

न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर बरेली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के समक्ष ऐसे आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया है तथा बीडीए के उपाध्यक्ष को आवेदन तय करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि आवेदनों पर विचार करने और उनका निपटान करने की पूरी प्रक्रिया विकास प्राधिकरण द्वारा स्वतंत्र रूप से और निष्पक्ष रूप से की जाएगी।

कोर्ट ने कहा कि इस अंतरिम अवधि के दौरान सम्बंधित सम्पत्ति की रक्षा के लिए सम्पत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखेंगे और आवेदनों के निपटारे तक कुछ और नहीं ढहाया जाएगा। कोर्ट ने साथ ही, याचिकाकर्ताओं को उस स्थल पर किसी भी प्रकार का आगे का विकास, निर्माण या परिवर्तन करने से रोक दिया है।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे