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जोधपुर, 11 दिसम्बर (हि.स.)। राजस्थान उच्च न्यायालय ने आयुर्वेद कंपाउंडर-नर्स के सेवा समाप्ति के मामले पर सुनवाई करते हुए याचिककर्ताओं राहत प्रदान करते हुए उन्हें पद पर सेवा बनाए रखने के अहम आदेश जारी किए है। हाईकोर्ट की एकलपीठ की तरफ से यह आदेश जारी किए गए।
गत आठ वर्षों से आयुर्वेद विभाग में नियमित सेवा में होने के बावजूद आयुर्वेद विभाग द्वारा सेवा से पृथक कर देने को लेकर दायर हुई रिट याचिका को एकलपीठ द्वारा पूर्व में ख़ारिज देने पर खण्डपीठ की विशेष अपील पेश हुई। अपील की प्रारंभिक सुनवाई पर हाइकोर्ट खण्डपीठ ने अंतरिम राहत देते हुए राज्य सरकार के आयुर्वेद विभाग प्रमुख शासन सचिव, निदेशक सहित अन्यों को जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 23 जनवरी 2026 को होगी। अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने अपीलकर्ताओं की ओर से पैरवी की। राजस्थान हाइकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा व जस्टिस बलजिंदर सिंह संधू की खण्डपीठ से राहत मिली है।
याचिकाकर्ता रामकुंवार मीणा और मोहम्मद सादाब कुरैशी की ओर से अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने हाइकोर्ट खण्डपीठ में विशेष रिट अपील पेश कर बताया कि याचिकाकर्ताओ की नर्स/कम्पाउण्डर जूनियर ग्रेड पद पर नियमित नियुक्ति दिनांक 25 सितंबर 2017 को हुई थी। उक्त भर्ती प्रक्रिया में राज्य सरकार के उपक्रमों एवं राज्य के राजकीय चिकित्सालयों में कार्यरत संविदा कार्मिकों को बोनस अंक दिए जाने का प्रावधान रखा गया था, लेकिन याचीगण तत्समय राज्य सरकार के अधीन विश्वविद्यालय के राजकीय होमियोपैथी/आयुर्वेद डिस्पेंसरी में प्लेसमेंट एजेंसी के मार्फ़त कार्यरत होने से उन्हें कार्य अनुभव के आधार पर बोनस अंक नही दिए जाने को लेकर वर्ष 2013 में रिट याचिका दायर की थीं। याचीगण की उक्त रिट याचिका पूर्व में निर्णीत अन्य प्रकरण (यादवेन्द्र शांडिल्य प्रकरण) में हुए राज्य के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता को शासन उपसचिव द्वारा दिये गए पत्र को आधार बनाकर हुए निर्णय की रोशनी के निर्णीत कर स्वीकार की गई थीं। याचीगण की रिट याचिका के निर्णय के विरुद्ध सरकार की ओर से पेश रिव्यु याचिका को भी हाइकोर्ट खण्डपीठ ने वर्ष 2017 में ख़ारिज कर दिया था।
तत्पश्चात याचिकाकर्ताओ को 25 सितंबर 2017 को नियमित नियुक्ति दी गई और तब से लगातार आयुर्वेद विभाग में सेवाएं दे रहे हैं और दो वर्ष का प्रोबेशन भी वर्ष 2019 में सफलतापूर्वक पूर्ण कर चुके हैं। याचीगण के निर्णय के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा सुप्रीमकोर्ट में कोई भी एसएलपी तक दायर नहीं की गई।
अधिवक्ता ख़िलेरी ने बताया कि यादवेन्द्र शांडिल्य प्रकरण में सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के पालना में रिमांड होने पर यादवेन्द्र शांडिल्य की याचिका में पुन: सुनवाई होकर 12 दिसम्बर 2023 को याचिकायें ख़ारिज कर दी गई लेकिन उक्त सुनवाई में याचिकाकर्ता न तो पक्षकार थे और न ही उन्हें सुनवाई का उचित अवसर दिया गया।
यादवेन्द्र शांडिल्य प्रकरण के साथ निर्णीत रिट याचिकाओ में विवाद-बिन्दु केंद्रीय सरकार के उपक्रमों व एजेंसी में कार्यरत सविंदा कार्मिकों को बोनस अंक मिलने से संबंधित था, जबकि याचिकाकर्ताओ का मामला राज्य सरकार के अधीन राज्य विश्वविद्यालयो में अवस्थित सरकारी चिकित्सालयों में सविंदा कार्मिक, जो प्लेसमेंट एजेंसी के मार्फ़त कार्यरत रहें, को बोनस अंक दिए जाने से संबंधित था। याचिकाकर्ताओ का पक्ष सुने बिना केवल मात्र अन्य प्रकरण के निर्णय को आधार बनाकर सरकारी नोकरी से बर्खास्त कर देना सरासर गैर कानूनी और असवैधानिक है।
मामले की प्रारम्भिक सुनवाई पश्चात हाइकोर्ट कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस बलजिंदर सिंह संधु की खण्डपीठ ने याचिकाकर्ताओ को कम्पाउण्डर/नर्स पद पर लगातार बनाये रखने का अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार सहित आयुर्वेद विभाग के निदेशक को जवाब तलब किया।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश