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सूरजपुर, 2 नवंबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के गौरव और अस्मिता के प्रतीक राज्योत्सव के मंच पर इस बार एक विचित्र नजारा देखने को मिला। सूरजपुर में आयोजित राज्योत्सव कार्यक्रम जहां प्रदेश की 25 साल की उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया गया था, वहीं मंच पर छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर को सम्मानजनक स्थान तक नहीं मिल सका। यह दृश्य कार्यक्रम की गरिमा पर गहरा प्रश्नचिह्न छोड़ गया।
कार्यक्रम के दौरान मंच पर दो-तीन कर्मचारियों को तस्वीर थामे खड़े रहना पड़ा। जैसे-जैसे सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होती रहीं, तस्वीर बार-बार हिलती-डुलती रही, मानो स्वयं महतारी भी अपनी उपेक्षा पर व्यथित हो उठी हो। दर्शकों में इस दृश्य को देखकर हैरानी और असंतोष दोनों झलके। कई लोग मंच पर व्यवस्था की इस अनदेखी को लेकर प्रशासनिक गंभीरता पर सवाल उठाते दिखे।
राज्योत्सव, जो राज्य की पहचान और गौरव का प्रतीक माना जाता है, ऐसे आयोजन में इस तरह की लापरवाही न केवल प्रशासनिक असंवेदनशीलता को उजागर करती है बल्कि यह भी दिखाती है कि प्रोटोकॉल और सम्मान की मर्यादा केवल भाषणों तक सीमित रह गई है।
इतना ही नहीं, कार्यक्रम में भीड़ जुटाने को लेकर भी प्रशासन की नाकामी खुलकर सामने आई। दर्शक दीर्घा का अधिकांश हिस्सा खाली नजर आया। स्थिति ऐसी रही कि आयोजकों को टेंट पंडाल का आकार छोटा करना पड़ा। जहां राज्योत्सव जैसे अवसरों पर जनता का उत्साह उमड़ता है, वहीं इस बार कार्यक्रम की चमक फीकी पड़ गई।
स्थानीय नागरिकों ने इस अव्यवस्था पर नाराजगी जताते हुए कहा कि जब राज्य की महतारी को ही मंच पर सम्मानजनक स्थान नहीं मिला, तो बाकी व्यवस्थाओं की क्या उम्मीद की जा सकती है। सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर लोगों ने प्रशासन पर तंज कसे और इसे व्यवस्था की असफल तस्वीर बताया।
जानकारों का कहना है कि राज्योत्सव जैसी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी घटनाओं में प्रतीकों का आदर और मर्यादा सबसे अहम होती है। यदि आयोजन के मूल प्रतीक को ही उपेक्षा का शिकार होना पड़े, तो यह पूरे कार्यक्रम की भावना पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
राज्योत्सव की इस लापरवाही ने न केवल प्रशासन की तैयारी पर सवाल उठाए हैं बल्कि यह भी संकेत दिया है कि औपचारिकता निभाने की दौड़ में सम्मान और संवेदनशीलता जैसी बातें पीछे छूटती जा रही हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय