दो देशों को ही नहीं, दो दिलों को भी जोड़ता है नेपाल का वराह क्षेत्र,कार्तिक पूर्णिमा पर पहुंचते हैं हजारों भारतीय श्रद्धालु
अररिया फोटो:वराह क्षेत्र मंदिर


अररिया फोटो:वराह क्षेत्र गेट


अररिया 02 नवम्बर(हि.स.)। भगवान विष्णु के दस अवतारों मीन,कच्छप,शुकर(वराह ),नरसिंह,वामन,परशुराम,राम, बलराम,बुद्ध औऱ कल्कि में तीसरा अवतार अर्थात शुकर नेपाल के वराह क्षेत्र में विराजमान है। नेपाल का वराह क्षेत्र दो देशों को हीं बल्कि दो दिलों को भी जोड़ता है। रोटी बेटी का संबंध रखने वाला पड़ोसी देश नेपाल भौगोलिक दृष्टि के जरिए एक दूसरे के करीब है साथ ही अध्यात्म के माध्यम से भी एक दूसरे से जुड़ा है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, आदिकाल में हिरण्याक्ष नामक दैत्य के अत्याचार से सारे जीव त्राहिमाम कर रहे थे।यहां तक कि वह पृथ्वी को भी पाताल लोक में छिपा रखा था।सारे देवी -देवताओं ने भगवान विष्णु से पृथ्वी को बचाने की याचना की। देवताओं की विनती पर भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का संहार किया और पृथ्वी को बाहर निकाला। वराह रूप होने के कारण उस स्थान का नाम वराह क्षेत्र पड़ा । मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो भी कोशी नदी का जल भरकर भगवान वराह को अर्पित करता है वह पुण्य का भागी बनता है ।

भारत नेपाल जोगबनी से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर रहे वराह क्षेत्र कोशी नदी के तलहटी में स्थित भगवान विष्णु का वराह मंदिर है।इस क्षेत्र के लोग नेपाल के बॉर्डर क्षेत्र विराटनगर होते हुए चतरागद्दी पहुंचते हैं।चतरागद्दी में 10-12 बजे तक लोगों का जमावड़ा होता है।मध्य रात्रि के बाद से लोग मंदिर जाने के लिए प्रस्थान करते है वहां से छह किमी दूर पहाड़ियों का रास्ता तय कर पहुंचना होता है।रास्ते भर वराह क्षेत्र कि प्राकृतिक छटा लोगों का रहन सहन,बोलचाल आदि को नजदीक से जानने का मौका मिलता है।

नेपाल भारत सामाजिक सांस्कृतिक मंच के सलाहकार महेश साह स्वर्णकार ने बताया कि वराह क्षेत्र जाने वाली रास्ते रविवार संध्या से खुली है। उन्होने पूर्णिमा में वराह क्षेत्र जाने वाले श्रद्धालु से आग्रह किया है कि किसी भी प्रकार के जानकारी सहयोग के लिए वराह क्षेत्र मंदिर जाने से पूर्व कोशी पूल पर अवस्थित पुलिस कैंप से जानकारी ले ले।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल कुमार ठाकुर