ब्रह्मपुत्र हाइड्रो प्रोजेक्ट : चीन को भारत का करारा जवाब
भारत एवं चीन


-डॉ. मयंक चतुर्वेदी

वैश्विक राजनीतिक और रणनीतिक परिदृश्य लगातार बदल रहा है। सीमाएँ सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, वे ऊर्जा, जल और सुरक्षा की दृष्टि से भी अहमियत रखती हैं। ऐसे समय में, जब कोई पड़ोसी देश भारत के लिए दबाव या चुनौती उत्पन्न करता है, जैसे कि चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से पर बड़े बांध बनाने का कार्य हो, तब प्रतिक्रिया केवल कूटनीतिक बयानबाजी या आलोचना तक सीमित नहीं होनी चाहिए। वास्तविक रणनीति वह है जो दीर्घकालिक, ठोस और आत्मनिर्भर हो। अच्‍छी बात है कि यही दृष्टिकोण आज भारतीय नीति निर्माताओं द्वारा अपनाया जाना सामने आ रहा है।

चीन की ओर से तिब्बत क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी (स्थानीय नाम यारलुंग जांगबो) के ऊपरी हिस्से में बड़े बांध विकसित किए जा रहे हैं। इन परियोजनाओं से भारत के लिए जल प्रवाह में कमी, बाढ़ नियंत्रण में मुश्किलें और संभावित सामरिक खतरे पैदा हो सकते हैं। जल बम के रूप में इनका इस्तेमाल युद्ध की स्थिति में संभव है। इन सभी खतरों को ध्यान में रखते हुए, भारत ने ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन पर लगभग 76 गीगावाट की जलविद्युत क्षमता विकसित करने के लिए 6.4 ट्रिलियन रुपये की योजना तैयार की है। यह परियोजना केवल ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है; यह राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय विकास और रणनीतिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की रिपोर्ट के अनुसार, यह योजना 12 उप-बेसिनों में 208 बड़ी पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण करेगी। इन परियोजनाओं में कुल मिलाकर 64.9 गीगावाट विद्युत उत्पादन और 11.1 गीगावाट पंप भंडारण क्षमता शामिल है। पंप भंडारण क्षमता का महत्व इसलिए है क्योंकि यह ऊर्जा की मांग और आपूर्ति में असंतुलन को संतुलित करने में सहायक होती है।

पूर्वोत्तर राज्यों में ब्रह्मपुत्र बेसिन की भौगोलिक स्थिति इस योजना को और अधिक रणनीतिक बनाती है। अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड और पश्चिम बंगाल के हिस्सों में फैला यह बेसिन ऊर्जा उत्पादन के लिए अपार संभावनाएँ रखता है। विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश में उपलब्ध अप्रयुक्त पनबिजली क्षमता लगभग 52 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह है कि यदि इस योजना को सफलतापूर्वक लागू किया जाता है, तो भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए काफी हद तक आत्मनिर्भर बन सकता है।

तकनीकी दृष्टि से परियोजना में जल प्रवाह का नियंत्रण, पंप भंडारण और सतत विद्युत उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया गया है। चीन के बांधों द्वारा पानी की आपूर्ति पर संभावित प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, भारत की योजना उच्च क्षमता वाले पनबिजली संयंत्रों और स्मार्ट ग्रिड नेटवर्क के माध्यम से स्थिर ऊर्जा उत्पादन सुनिश्चित करेगी। इससे पूर्वोत्तर में न केवल ऊर्जा संकट कम होगा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

आर्थिक दृष्टि से इस परियोजना का पहला चरण 2035 तक पूरा होगा, जिसमें लगभग 1.91 ट्रिलियन रुपये का निवेश होगा। दूसरा चरण 4.52 ट्रिलियन रुपये की लागत से पूरा किया जाएगा। यह निवेश केवल ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है। इससे पूर्वोत्तर राज्यों में रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचे का विकास, और स्थानीय आर्थिक समृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा। एनएचपीसी, नीपको और एसजेवीएन जैसी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ इस परियोजना में शामिल हैं, जो इसे सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने में सक्षम हैं।

परियोजना का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि ये भारत के पर्यावरणीय और ऊर्जा लक्ष्य से मेल खाती है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा उत्पादन और 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है। ब्रह्मपुत्र हाइड्रो प्रोजेक्ट इन लक्ष्यों की दिशा में केंद्रीय भूमिका निभा सकता है। पनबिजली परियोजनाओं के माध्यम से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी और सतत ऊर्जा उत्पादन सुनिश्चित होगा।

रणनीतिक दृष्टि से यह परियोजना यह संदेश देती है कि भारत किसी भी बाहरी दबाव या चुनौती के सामने कमजोर नहीं है। चीन के बांधों से उत्पन्न संभावित खतरों का उत्तर केवल विरोध या कूटनीतिक कदम से नहीं, ठोस, दीर्घकालिक और तकनीकी रूप से सक्षम योजना के माध्यम से दिया जा रहा है। यह दृष्टिकोण किसी भी वैश्विक शक्ति संतुलन के परिदृश्य में भारत की स्थिति को मजबूत करता है। इतिहास में इस तरह के अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जब किसी देश ने प्रतिकूल परिस्थितियों या दबाव के सामने ठोस रणनीति अपनाई और दीर्घकालिक रूप से लाभ प्राप्त किया। भारत की यह योजना उसी सिद्धांत को स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि किसी भी चुनौती या खतरे के उत्तर में दीर्घकालिक योजना, आत्मनिर्भरता और ठोस क्रियान्वयन ही वास्तविक समाधान हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों में बिजली की बढ़ती मांग और स्थानीय विकास की आवश्यकता इस परियोजना को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। उच्च क्षमता वाली पनबिजली परियोजनाओं और पंप भंडारण संयंत्रों के निर्माण से न केवल स्थिर ऊर्जा सुनिश्चित होगी, बल्कि ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में बुनियादी ढांचे का विकास भी होगा। इसके अलावा, जल संसाधनों का सतत और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा। सामरिक दृष्टि से, ब्रह्मपुत्र हाइड्रो प्रोजेक्ट यह स्पष्ट संदेश देता है कि भारत किसी भी बाहरी शक्ति द्वारा उत्पन्न संकट का सामना करने में सक्षम है। यह केवल ऊर्जा उत्पादन की दिशा में कदम नहीं है, राष्ट्रीय संकल्प और रणनीतिक स्थिरता का प्रतीक भी है। किसी भी दबाव या धमकी के उत्तर में सिर्फ विरोध करना पर्याप्त नहीं; वास्तविक प्रभावी प्रतिक्रिया वह है जो दीर्घकालिक, रणनीतिक और ठोस हो।

अंततः, ब्रह्मपुत्र हाइड्रो योजना यह प्रमाणित करती है कि किसी भी बाहरी दबाव या खतरे के सामने देश की प्रतिक्रिया केवल संवेगात्मक या तत्कालीन नहीं होनी चाहिए। यह दीर्घकालिक योजना, आत्मनिर्भरता और तकनीकी दक्षता के माध्यम से स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने का उदाहरण है। कहना होगा कि भारत का यह कदम ऊर्जा उत्पादन, बल्कि सामरिक संतुलन, पूर्वोत्तर राज्यों के विकास और जल संसाधनों के सतत उपयोग के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। निश्‍चित ही इस परियोजना के माध्यम से यह संदेश स्पष्ट है कि किसी भी चुनौती या खतरे के समय वास्तविक शक्ति केवल शब्दों में नहीं, बल्कि ठोस योजनाओं, दीर्घकालिक निवेश और रणनीतिक क्रियान्वयन में होती है। चीन जैसे पड़ोसी द्वारा उत्पन्न दबाव के बावजूद भारत ने स्पष्ट रूप से यह दिखाया है कि वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा आवश्यकताओं और सामरिक हितों के लिए सक्षम और आत्मनिर्भर है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी