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-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपना पुराना स्वर अलापा है, वही बहाना, पहले की तरह रूस-यूक्रेन युद्ध। ट्रंप ने कहा, भारत न केवल भारी मात्रा में रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि खरीदे गए अधिकांश तेल को खुले बाजार में भारी मुनाफे पर बेच भी रहा है। उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि रूसी युद्ध मशीन द्वारा यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं। इस कारण से, मैं भारत की ओर से अमेरिका को दिए जाने वाले टैरिफ में भारी वृद्धि करूंगा।
अब कहने वाले कहेंगे कि रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने और उसका वैश्विक श्रेय लेने के लिए ट्रंप ने भारत के खिलाफ तीखा रुख अपना लिया है। पर क्या यह वाकई सच है? क्योंकि यदि ऐसा होता तो सबसे पहले वे स्वयं अपने यहां रूस से आयातित सभी सामानों पर ब्रेक लगाते और उन्हें प्रतिबंधित करते, लेकिन यह नहीं हो रहा है। पाकिस्तान पर भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप आए दिन भारत को लेकर कोई न कोई टिप्पणी कर रहे हैं। जिसमें उनकी एक गंभीर टिप्पणी हाल ही में ब्रिक्स समूह में भारत की सक्रिय भूमिका और रूस से दोस्ती की आलोचना के रूप में भी देखने को मिली, जिसमें वह यहां तक गिर गए कि वह भारत के लिए कह बैठे, वे अपनी मरी हुई अर्थव्यवस्थाओं को साथ लेकर डूब सकते हैं।
भारत की शुल्क नीति को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देखा कि उनकी बातों का भारत पर कोई असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने अपनी पूरी टीम ही विदेश सचिव मार्को रूबियो, वित्त सचिव स्कॉट बेसेंट और अब व्हाइट हाउस में डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ स्टीफन मिलर को भी भारत के विरोध और उस पर दबाव बनाने के लिए मैदान में उतार दिया है। ये सभी अलग-अलग तरीके से आज रूस से भारत की ऊर्जा खरीद को लेकर भारत की नीति की न सिर्फ भर्त्सना कर रहे हैं, बल्कि (भारत-रूस) संबंधों को अमेरिका और भारत के बीच के संबंधों के लिए एक कांटे के तौर पर चिन्हित कर रहे हैं। इधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेतृत्व में भारतीय टीम है कि अमेरिका के किसी भी अनावश्यक दबाव के सामने नहीं झुकते हुए अपने रणनीतिक हितों के मुद्दे पर अंत-अत तक अडिग है। भारत आज अमेरिका की आंख में आंख डालकर पूछ रहा है कि तुम कैसे आतंकवाद का पोषण करने वाले पाकिस्तान के साथ डील कर सकते हो?
भारत आज पूछ रहा है कि रूस से भारत क्या लेगा या नहीं, यह तय करने के पहले अपने यहां अमेरिका तुम तो रूस के सामान खरीदना और उस पर निर्भर रहना पहले बंद करो। वस्तुत: इस मामले में गंभीर पड़ताल करने पर बहुत से तथ्य सामने आ जाते हैं। जो अमेरिका आज भारत को ज्ञान दे रहा है, वह स्वयं क्या कर रहा है? वह रूस से हर रोज करोड़ों डॉलर का व्यापार कर रहा है। जिसमें कि यह आंकड़े उसके अपने ट्रेड के हैं, किसी ने छद्म रूप से नहीं गढ़े हैं। संयुक्त राष्ट्र के COMTRADE डेटाबेस के अनुसार, 2024 में अमेरिका ने रूस से कुल 3.27 अरब डॉलर (लगभग ₹24,000 करोड़) का सामान आयात किया। उर्वरक (Fertilizers) $1.30 बिलियन के जोकि कृषि उद्योग के लिए आवश्यक हैं। रत्न, कीमती धातुओं में पैलैडियम, प्लेटिनम, हीरे आदि $878.1 मिलियन के खरीदें। अकार्बनिक रसायन, कीमती धातु यौगिक जोकि अमेरिका में रासायनिक उद्योग के लिए आवश्यक हैं वह $695.7 मिलियन के आयात किए।
लकड़ी और लकड़ी उत्पाद जिसका उपयोग अमेरिका में निर्माण और फर्नीचर उद्योग के लिए हेाता है वह $89.4 मिलियन। परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी, जिन्हें ऊर्जा क्षेत्र के लिए आवश्यक माना गया है, वह $80.8 मिलियन। खाद्य उद्योग के अवशेष, पशु आहार पशुपालन और कृषि उद्योग के लिए$39.9 मिलियन। अन्य धातुएं, सेरामिक्स विभिन्न उद्योगों के लिए $37.3 मिलियन । विमान और अंतरिक्ष यान, रक्षा और परिवहन उद्योग के लिए $34.9 मिलियन। लोहा और इस्पात जोकि अमेरिका में निर्माण और औद्योगिक उपयोग के लिए जरूरी है वह $13.2 मिलियन एवं अन्य विविध वस्त्र विभिन्न उद्योगों के लिए अति आवश्यक हैं, वह $10.9 मिलियन डॉलर में आयात मूल्य देकर अमेरिका द्वारा रूस से समय-समय पर मंगवाया गया है।
साल 2025 के पहले पांच महीनों में यूएस ने 2.1 अरब डॉलर का सामान आयात किया
इसी प्रकार से इस साल भी रूस से अनेक सामान आयात किए जा रहे हैं। 2025 के पहले पांच महीनों में, अमेरिका ने रूस से लगभग 2.1 अरब डॉलर का सामान आयात किया, जिसमें प्रमुख रूप से समृद्ध यूरेनियम (लगभग $596 मिलियन) और बिना परिष्कृत पैलैडियम (लगभग $502 मिलियन) शामिल हैं। अभी भी अमेरिका का रूस से आयात मुख्य रूप से कृषि, रसायन, धातुएं और ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित है। कुछ विशेष वस्तुओं की आपूर्ति आज भी अमेरिकी उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है। अमेरिका की तरह कुछ अन्य देशों की भी तुलना की जा सकती है, हालांकि इसका वर्तमान में बहुत औचित्य नहीं लेकिन भविष्य में बहुत है, क्योंकि हो सकता है अमेरिका अन्य देशों से भी भारत पर दबाव बनाने को कहे। ऐसे में यह तथ्य भी जानना जरूरी है।
अमेरिका की तरह यूरोप भी कई सामानों के लिए है रूस पर निर्भर
यूरोपीय संघ, रूस से गैस (पाइपलाइन)- 2024 की स्थिति में लगभग 49.5 bcm, और LNG (तरल गैस) के रूप में अतिरिक्त 24.2 bcm आयात हुए, जिससे रूस अब यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा LNG आपूर्तिकर्ता बन गया है (क़तर के बाद)। वहीं, 2025 Q2 (अप्रैल–जून) में, EU ने रूस से LNG का लगभग 51% आयात किया और पाइपलाइन गैस का लगभग 37% हिस्सा रूस से था। 2025 की पहली पाँच महीनों में EU ने 2.57 मिलियन टन रुसी मेटल उत्पाद (semi‑finished metals, pig iron, steel) आयात किए, जिसकी कुल कीमत €1.06 B रही, वह रूस को अदा की। जनवरी 2025 में Pig Iron की आयात मात्रा 474,540 टन तक पहुँच गई थी, इसमें प्रमुख देश थे; इटली (347,730 टन), लातविया, स्पेन, बेल्जियम, पोलैंड ।
वस्तुत: आज जो देश रूस पर सार्वजनिक रूप से प्रतिबंध (Sanctions) लगाने की बात करते हैं, विशेषकर G-7 देशों और यूरोपीय संघ- वे अब भी रूस से कुछ महत्वपूर्ण वस्तुओं का आयात कर रहे हैं। यह स्थिति आर्थिक विवशता, ऊर्जा की निर्भरता, और कुछ हद तक strategic ambiguity का नतीजा है। अमेरिका के अलावा जर्मनी, इटली, फ्रांस, नीदरलैंड्स, स्पेन, बेल्जियम, जापान, दक्षिण कोरिया और तुर्की शामिल हैं, जिसमें कि तुर्की तो औपचारिक रूप से NATO सदस्य पर रूस के साथ अति सक्रिय व्यापार करता नजर आता है।
आज यह सर्वविदित है कि एलएनजी (Liquefied Natural Gas) और गैस का यूरोप में रूस से होनेवाला आयात 2024 और 2025 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है। फ्रास, स्पेन, और बेल्जियम 2025 की पहली छमाही में रूस से सबसे ज़्यादा LNG आयात करने वाले देश हैं। EU की कुल LNG का 51% हिस्सा 2025 में रूस से आया।अपने फायदे के लिए यूरोपीय देश रूसी LNG को प्रत्यक्ष प्रतिबंध में शामिल नहीं करते क्योंकि इसे ऊर्जा सुरक्षा का मामला बताया जाता है। इस तरह से देखें तो युरोप का कोई देश नहीं जो कम या अधिक आज रूस पर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्भर नहीं हो। यानी सभी रूस पर निर्भर नजर आते हैं।
अमेरिका की दोहरी नीति, इन देशों पर है चुप्पी, विदेश मंत्रालय का पलटवार
वस्तुत: अमेरिका इन देशों से कुछ नहीं कहता कि वे अपना व्यापार रूस के साथ बंद करें लेकिन भारत पर तमाम प्रकार से दबाव बना रहा है। ऐसे में भारत सरकार ने भी फिर एक बार ऑकड़ों के साथ स्पष्ट कर दिया है कि दो तरह की नीति अमेरिका की नहीं चलेगी और वह किसी भी दबाव में आना वाला नहीं है। विदेश मंत्रालय (MEA) ने जोरदार पलटवार किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत को निशाना बनाना अनुचित और अविवेकपूर्ण है। भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा। भारत के आयात का उद्देश्य भारतीय उपभोक्ताओं के लिए अनुमानित और किफायती ऊर्जा लागत सुनिश्चित करना है। वैश्विक बाज़ार की स्थिति के कारण ये एक अनिवार्य आवश्यकता है।
विदेश मंत्रालय स्पष्ट बोल रहा है कि यह उजागर होता है कि भारत की आलोचना करने वाले देश स्वयं रूस के साथ व्यापार में लिप्त हैं। हमारे मामले के विपरीत, ऐसा व्यापार कोई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बाध्यता भी नहीं है। यूरोप-रूस व्यापार में न केवल ऊर्जा, बल्कि उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा और इस्पात तथा मशीनरी और परिवहन उपकरण भी शामिल हैं। जहां तक संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रश्न है, वह अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, अपने ईवी उद्योग के लिए पैलेडियम, उर्वरकों के साथ-साथ रसायनों का आयात जारी रखे हुए है।
भारत ने आंकड़े जारी कर दिखाया है अमेरिका को आईना
विदेश मंत्रालय ने आंकड़े जारी कर आज अमेरिका को आईना दिखाया है। भारत सरकार ने अमेरिका और यूरोपीय यूनियन (EU) के रूस के साथ व्यापारिक आंकड़े पेश करते हुए कहा है कि भारत को टारगेट करना अनुचित और तर्कहीन है। भारत की आलोचना करने वाले अमेरिका ने 2024 में रूस से 3 अरब डॉलर का सामान आयात किया। सिर्फ इस साल के पहले पांच महीनों में ही यह आंकड़ा 2.09 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल की तुलना में 24% ज्यादा है। उधर, यूरोपीय यूनियन ने 2024 में रूस से करीब 73 अरब डॉलर का व्यापार किया है, जिसमें 1.65 करोड़ टन तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) भी शामिल है।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया में कही गई ये 7 अहम बातें:
1. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका ने खुद भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था, ताकि वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता बनी रहे।
2. भारत का मकसद अपने उपभोक्ताओं को किफायती ऊर्जा देना है, न कि युद्ध को समर्थन देना।
3. जिन देशों ने भारत की आलोचना की है, वे खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं।
4. 2024 में यूरोपीय यूनियन ने रूस के साथ 67.5 बिलियन यूरो का द्विपक्षीय व्यापार किया। यह भारत-रूस व्यापार से कहीं ज्यादा है।
5. EU और अमेरिका तेल के अलावा यूरिया, रसायन, लोहा, स्टील और मशीनरी जैसे उत्पाद भी रूस से खरीदते रहे हैं।
6. अमेरिका ने भी अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए पैलेडियम आयात किया है।
7. चीन पर चुप्पी क्यों?
यहां भारत ने यह सवाल प्रमुखता से उठाया है कि ट्रंप ने चीन का जिक्र क्यों नहीं किया, जो रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीद रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर 2022 से जून 2025 तक रूस के कुल कच्चे तेल निर्यात का 47% हिस्सा चीन को गया, जबकि भारत ने 38% ही खरीदा है। कुल मिलाकर कहना यही है कि भारत ने अमेरिका को स्पष्ट संदेश दिया है कि वो सिर्फ अपने हितों की रक्षा कर रहा है और राजनीतिक बयानबाजी से प्रभावित नहीं होगा। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, रूस के साथ भारत का व्यापार कोई नई बात नहीं है और वह अमेरिका या किसी भी अन्य देश का अपने हित को प्रभावित करने वाले दोहरे मापदंड कभी स्वीकार नहीं करेगा। भारत आगे भी अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाता रहेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी