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- मुख्यमंत्री द्वारा रखा गया नाम परिवर्तन का प्रस्ताव विधानसभा में पारित, अब राज्यपाल की मुहर लगना शेष
उज्जैन, 5 अगस्त (हि.स.)। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली उज्जयिनी के आचार्य महर्षि सांदीपनि के गुरूकुल स्थान उज्जैन में स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय की वास्तविक पहचान को सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय नामकरण करके पूरी कर दी। विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद जैसे ही राज्यपाल मंगुभाई पटेल की मुहर लगेगी, वैसे ही इसकी पहचान वैश्विक हो जाएगी। इसके लिए भी मुख्यमंत्री ने योजनाओं पर कार्य शुरू कर दिया है। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कार्यपरिषद सदस्य राजेश सिंह कुशवाह और कुलगुरू प्रो अर्पण भारद्वाज ने मंगलवार को इस उल्लेखनीय कार्य को ऐतिहासिक बताते हुए मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल, समस्त विधायकों और विश्वविद्यालय के समस्त विद्यार्थियों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री डॉ यादव का आभार व्यक्त किया है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने 30 मार्च 2025 को विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के 29वें दीक्षांत समारोह में जब उन्हें अपनी ही शिक्षा स्थली में मानद डी लिट् उपाधि से सम्मानित किया जा रहा था, उन्होंने घोषणा की थी कि यह विश्वविद्यालय, सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन के नाम से पहचाना जाएगा और इसके बाद तत्काल विक्रम विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य राजेश सिंह कुशवाह ने पहल करके आपातकालीन बैठक बुलवाकर कुलगुरू प्रो अर्पण भारद्वाज की अध्यक्षता में विक्रम विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय करने का प्रस्ताव पारित करके राज्य शासन को प्रेषित कर दिया। इसके पश्चात मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव को पारित किया। गत दिवस यानी 04 अगस्त को मध्य प्रदेश विधानसभा में विधेयक पारित हो गया। इसके बाद अब विधेयक पर राज्यपाल की मुहर लगते ही विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन पहचान बन जाएगा।
उज्जैन अपनी प्राचीनता और समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। यह शिक्षा का एक प्राचीन केंद्र भी रहा है। इसलिए स्वतंत्रता के बाद कई हस्तियों ने केंद्र सरकार से उज्जैन में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने का आग्रह किया। उनका प्रस्ताव था कि विश्वविद्यालय का नाम प्रसिद्ध शासक विक्रमादित्य के नाम पर रखा जाए। जब मध्यभारत राज्य अस्तित्व में आया, तो प्रस्तावित विक्रम विश्वविद्यालय के लिए उज्जैन को चुना गया। विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना 01 मार्च 1957 को उज्जैन में हुई थी। विक्रम विश्वविद्यालय की आधारशिला भारत के तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत द्वारा मंगलवार, कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्थी, विक्रमाब्द 2013 अर्थात 23 अक्टूबर 1956 को रखी गई थी। समारोह की अध्यक्षता मध्यभारत राज्य के राजप्रमुख स्वर्गीय जीवाजीराव सिंधिया ने की थी।
1956 में मध्य प्रदेश देश का नया राज्य बना और मध्यभारत को इसमें मिला दिया गया। इस प्रकार, विश्वविद्यालय से संबंधित अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता महसूस की गई। परिणामस्वरूप विक्रम विश्वविद्यालय का संशोधित अधिनियम क्रमांक 13, 1957, 16 अगस्त 1957 को मध्य प्रदेश राजपत्र में प्रकाशित किया गया। समय-समय पर अधिनियम में कई परिवर्तन और संशोधन किए गए। 1964-65 और 1969-70 के दौरान क्रमशः इंदौर, ग्वालियर और भोपाल विश्वविद्यालयों के गठन के कारण विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में काफी कमी आई।
20 अप्रैल, 1973 को राज्यपाल ने मध्य प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के संगठन और प्रशासन में एकरूपता लाने की अनुमति दी। यह अनुमति सर्वप्रथम मध्य प्रदेश राजपत्र (असाधारण) में 23 अप्रैल, 1973 को प्रकाशित हुई। शिक्षा विभाग की अधिसूचना 940/20/8/71 दिनांक 3 मई, 1973 द्वारा मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम के उपनियम क्रमांक 1 से 19 दिनांक 25.9.73 से, जबकि क्रमांक 20 से 26 और क्रमांक 27 से 31 क्रमशः 1.12.73 और 4.5.74 से मध्यप्रदेश के समस्त विश्वविद्यालयों (विक्रम विश्वविद्यालय सहित) के लिए लागू किए गए।28 जून 1985 को मध्य प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन करके उसे मध्य प्रदेश राजपत्र में प्रकाशित किया गया। उपरोक्त संशोधन के अनुसार, विश्वविद्यालय क्षेत्राधिकार को पुनः परिभाषित किया गया तथा उज्जैन संभाग के राजस्व जिलों अर्थात उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, नीमच, शाजापुर और देवास के अनुसार सीमांकित किया गया। नए क्षेत्राधिकार के कारण सम्बद्ध महाविद्यालयों की संख्या में कमी आई तथा कुछ नए महाविद्यालयों को सम्बद्धता प्रदान की गई।
पिछले वर्षों में विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दीक्षांत समारोहों को महान विद्वानों ने संबोधित किया था। जवाहरलाल नेहरू, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सर सीपी रामास्वामी अय्यर, डॉ. कालूलाल श्रीमाली, पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र, पं. कुंजीलाल दुबे, बाबू जगजीवनराम, डॉ. गोविंद नारायण सिंह, महादेवी वर्मा, इंदिरा गांधी, डॉ. सरोजिनी महिषी, डॉ. गोपाल स्वरूप पाठक, प्रो. नुरुल हसन, डॉ. हरगोविंद खुराना और डॉ. सतीश चंद्रा, एपीजे अब्दुल कलाम।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर