ब्रिक्स और अमेरिका : भारत ने बदल दिया वैश्विक शक्ति समीकरण
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी दुनिया के शक्ति समीकरण अब तेजी से बदलते जा रहे हैं। जहां एक ओर अमेरिका दशकों से अपने वैश्विक प्रभुत्व के बल पर खुद को नीति निर्धारण का एकमात्र केंद्र समझता रहा है, वहीं दूसरी ओर अब भारत जैसे देश बिना टकराव के इस वर्चस्व को चुनौ
लेखक फाेटाे -डॉ. मयंक चतुर्वेदी


- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

दुनिया के शक्ति समीकरण अब तेजी से बदलते जा रहे हैं। जहां एक ओर अमेरिका दशकों से अपने वैश्विक प्रभुत्व के बल पर खुद को नीति निर्धारण का एकमात्र केंद्र समझता रहा है, वहीं दूसरी ओर अब भारत जैसे देश बिना टकराव के इस वर्चस्व को चुनौती दे रहे हैं। खासतौर से ब्रिक्स के मंच पर भारत की जो नई रणनीति सामने आई है, उसने न केवल अमेरिका की चिंता बढ़ा दी है, बल्कि उसे अपने कई फैसलों पर खुलकर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर भी कर दिया है। इससे साफ समझ आता है कि भारत अब केवल एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं है, बल्कि वह एक वैश्विक नीति निर्माता के रूप में भी अपनी अहम भूमिका निभाता हुआ दिखता है। जिसमें स्वतंत्र विदेश नीति, वित्तीय संप्रभुता और बहुपक्षीय साझेदारी है।

एक नजर देखा जाए तो अमेरिका ने बीते वर्षों में बार-बार यह प्रदर्शित करता रहा है कि वह केवल अपने हितों की पूर्ति के लिए गठबंधन बनाता है और जैसे ही कोई देश उसके हितों से अलग राह पकड़ता है, तो वह आर्थिक दबाव, प्रतिबंध या कूटनीतिक अलगाव का रास्ता अपनाता है। भारत के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ जब ट्रंप प्रशासन ने भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (जीएसपी) से बाहर कर दिया और एकतरफा 50% टैरिफ लगा दिया। यह कदम न केवल अनुचित है बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अमेरिका अपनी व्यापार नीति में अब सहयोग नहीं, दबाव को प्राथमिकता दे रहा है। भारत ने इस चुनौती को स्वीकार किया और प्रतिक्रिया में जो रणनीति अपनाई, वह आज वैश्विक चर्चा का विषय बन चुकी है।

भारत ने न केवल अमेरिका को आर्थिक स्तर पर बल्‍कि आज कहना होगा कि कूटनीतिक स्तर पर भी जवाब दे दिया है, जिसमें स्‍पष्‍ट कहा गया है कि वह किसी भी दबाव में नहीं आएगा, उसके लिए अपने देशवासियों का हित सर्वोपरि है। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना जारी रखा है। भारत ने बार-बार यह रेखांकित किया कि ऊर्जा सुरक्षा उसके लिए प्राथमिकता है और वह किसी के कहने पर अपनी आवश्यकताओं से समझौता नहीं करेगा। यही नहीं, भारत ने वोस्ट्रो अकाउंट की नीति को बढ़ावा देकर स्थानीय मुद्राओं में व्यापार का जो मार्ग खोला है, उसे आप डॉलर की वैश्विक पकड़ को चुनौती देने की दिशा में एक गंभीर और व्यावहारिक कदम कह सकते हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी बैंकों को वोस्ट्रो खाता खोलने की अनुमति देना, जहां भारतीय रुपये में व्यापार संभव होता है, यह संकेत है कि भारत अब डॉलर पर निर्भरता से मुक्त होने की प्रक्रिया में गंभीरता से जुट गया है। यहां समझ लें कि वोस्ट्रो खाता एक प्रकार का बैंक खाता है जो एक घरेलू बैंक द्वारा किसी विदेशी बैंक की ओर से स्थानीय मुद्रा में रखा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी अमेरिकी बैंक का भारतीय बैंक में वोस्ट्रो खाता है, तो इसका मतलब है कि भारतीय बैंक अमेरिकी बैंक की ओर से रुपये रखता है। वस्‍तुत: यह नीतिगत बदलाव अकेले भारत के लिए नहीं, बल्कि उन सभी विकासशील देशों के लिए प्रेरणा है जो अमेरिका और पश्चिमी वित्तीय संस्थानों की शर्तों पर मजबूरी में व्यापार करते आए हैं। जब भारत ने रूस, श्रीलंका और यूएई के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार प्रारंभ किया तो अमेरिका को इस बात का एहसास हुआ कि भारत अब केवल व्यापार नहीं, बल्कि नई आर्थिक सोच का नेतृत्व कर रहा है।

2024 में ब्रिक्स का विस्तार हुआ और नए सदस्य देश इस मंच से जुड़े। ईरान, अर्जेंटीना, मिस्र, यूएई जैसे देशों का ब्रिक्स में शामिल होना यह बताता है कि अब यह संगठन केवल पांच देशों का आर्थिक समूह नहीं रह गया है, बल्कि यह वैश्विक दक्षिण की राजनीतिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बन चुका है। भारत, ब्रिक्स का सह-संस्थापक होने के नाते इसमें केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। नई वैश्विक वित्तीय प्रणाली, ब्रिक्स पे (BRICS Pay), साझा डिजिटल मुद्रा और ऊर्जा सुरक्षा जैसे विषयों पर भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट, व्यावहारिक और सहयोगात्मक रहा है।

यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत ब्रिक्स के मंच का उपयोग अमेरिका विरोधी मुहिम चलाने के लिए नहीं कर रहा, बल्कि वह इसे एक सकारात्मक विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। यह भारत की परिपक्वता है कि वह टकराव की भाषा की बजाय संवाद और समावेशिता के माध्यम से अमेरिका को यह समझा रहा है कि अब विश्व व्यवस्था एकध्रुवीय नहीं, बल्कि बहुध्रुवीय हो चुकी है। ब्रिक्स की नई मुद्रा, स्थानीय भुगतान प्रणाली और वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के विकल्प के निर्माण की दिशा में भारत का योगदान इस बदलाव का गवाह है। यही कारण कि आज अमेरिका के कई अधिकारी सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार चुके हैं कि भारत के साथ अब रिश्तों को नई दृष्टि से देखने की आवश्यकता है।

भारत ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि वह न तो किसी के खिलाफ है और न ही किसी के पक्ष में, वह केवल अपने राष्ट्रहित में खड़ा है। यही संदेश भारत ने ब्रिक्स मंच के माध्यम से भी दिया है। आज जब ब्रिक्स वैश्विक अर्थव्यवस्था के 25 ट्रिलियन डॉलर और लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, तो उसकी नीति और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से भारत 1980 के दशक से बहुत ज्यादा पीड़ित है। पाकिस्तान के इस छद्म युद्ध की वजह से 1999 में कारगिल में पूर्ण युद्ध की नौबत आ चुकी है और पहलगाम हमले के जवाब में भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी युद्ध जैसी ही स्थिति पैदा हो गई। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत 6 और 7 मई, 2025 की दरमियानी रात की। उसकी अगली ही रात से लगातार तीन दिनों तक पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले शुरू कर दिए। रिहायशी इलाकों और धर्म स्थलों को चुन-चुन कर निशाना बनाने की कोशिशें कीं। लेकिन, इन चारों दिनों में भारत ने जिस तरह से पाकिस्तान और उसकी जमीन पर पल और बढ़ रहे आतंकी संगठनों को संतुलित और समुचित सजा दी है, उसे पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तानी फौज, आतंकी संगठनों के लिए भुला पाना आसान नहीं होगा। यही नहीं, इन दिनों में भारतीय सशस्त्र सेना ने जिस शौर्य और धैर्य का परिचय दिया है; और भारत सरकार ने जो कूटनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता दिखाई है, उससे पूरे विश्व को यह संदेश गया कि नया भारत न सिर्फ सक्षम है, बल्कि उसकी एकता और अखंडता की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि उसकी संप्रुभता की ओर आंख उठाकर देखना भी तबाही का मंजर ला सकता है।

भारतीय रणनीति पर सभी की नजरें हैं। भारत इस मंच पर स्थिरता, विकास और सहयोग का संदेश लेकर उपस्थित है, जो अमेरिका जैसी एकतरफा नीतियों से भिन्न है। भारत की रणनीति केवल अर्थनीति या विदेश नीति तक सीमित नहीं है, बल्कि वह भू-राजनीतिक दृष्टिकोण को भी नई दिशा दे रही है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया में भारत की बढ़ती कूटनीतिक और निवेश उपस्थिति ने उसे वैश्विक दक्षिण का एक नैतिक नेता बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक मंचों पर सक्रियता, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कूटनीतिक स्पष्टता और वैश्विक मंचों पर भारत के दृष्टिकोण की आत्मनिर्भरता, यह सब दर्शाता है कि भारत अब किसी का पिछलग्गू नहीं रहा। यह भारत की कूटनीतिक परिपक्वता है कि वह अमेरिका, रूस, चीन और यूरोप सभी के साथ अपने हितों के अनुसार संतुलन बना रहा है।

अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत अब नीतियों का क्रियान्वयन करने वाला देश नहीं, बल्कि नीति निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाला देश बन चुका है। यदि अमेरिका भारत के साथ दीर्घकालिक साझेदारी चाहता है, तो उसे परस्पर सम्मान, समानता और सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित नई रणनीति तैयार करनी होगी। भारत को बार-बार परखना, दबाव बनाना और प्रतिबंधों की धमकी देना अब काम नहीं करेगा। भारत अब उस स्थिति में है, जहां वह अपनी शर्तों पर वैश्विक निर्णयों का भागीदार बन रहा है।

वस्‍तुत: आज कहना यही होगा कि भारत की नीतियों ने केवल अमेरिका को जवाब नहीं दिया है, बल्कि वैश्विक रणनीति को एक नई भाषा दी है, वह है आत्मसम्मान, संतुलन और संप्रभुता की भाषा। यह भारत की सोच की परिपक्वता ही है कि वह दुनिया को बिना लड़े, बिना धमकाए और बिना अस्थिरता फैलाए एक नई दिशा दिखा रहा है। निश्‍चित ही वह युग बीत गया जब नीतियाँ वाशिंगटन से बनती थीं और दिल्ली में लागू होती थीं। आज भारत नीति निर्माता के रूप में दिखता है, ब्रिक्स इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें वह न केवल अपने लिए, बल्कि उन तमाम देशों के लिए जो वैकल्पिक, न्यायसंगत और बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था का सपना देख रहे हैं उनके लिए भारत आज एक उम्‍मीद बनकर विश्‍व के सामने आया है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी