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- हरीश शिवनानी
अपने सनक भरे टैरिफ वार के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले दिनों जब भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ बताकर अतिरिक्त व्यापार कर थोप दिया तो भारत सहित दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों ने उनकी बात पर बहुत हैरानी ज़ाहिर की। वज़ह कि, इस समय दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत ही है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था 6.4 से 6.7 फीसदी की दर से बढ़ रही है जबकि अमेरिका की 1.9 की दर से, यानी दो से भी कम। भारत की इस बढ़ती अर्थव्यवस्था में समाज के एक ऐसे वर्ग का हाथ है, जिसे अब तक ‘अनुत्पादक’ माना जाता रहा है। आज का 60 प्लस आयु वर्ग भारत में एक आर्थिक शक्ति बन कर उभर रहा है। यह समूह धन और उपभोक्ता खर्च के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित कर रहा है।
हाल के वर्षों में बुजुर्ग पीढ़ी में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है, जो मितव्ययिता और पोते-पोतियों की देखभाल पर केंद्रित घर-केंद्रित जीवनशैली की अपनी पारंपरिक छवि से हटकर नई छवि गढ़ रही है। यह पीढ़ी भारत की ‘सिल्वर इकोनॉमी’ को चमका रही है। 'सिल्वर इकोनॉमी' शब्द बुजुर्ग आबादी से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों को समाहित कर उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को बताती है।
वित्त वर्ष 2023-24 में बुजुर्गों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में करीब 68 अरब डॉलर का योगदान दिया है जो भारत के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का तीन प्रतिशत है। गैर सरकारी संगठन ‘रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज’ की हाल ही जारी रिपोर्ट 'लोंगेविटी: ए न्यू वे आफ अंडरस्टेंडिंग ऐजिंग' में कहा गया है कि वृद्धजनों की ज़रूरतों में आर्थिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण, भागीदारी की स्वतंत्रता और सामाजिक जुड़ाव प्रमुख हैं। भारत में आर्थिक सुधारों और छठा और बाद के वेतन आयोग लागू होने के बाद औसत वास्तविक आय में वृद्धि हुई है।
‘सिल्वर इकोनॉमी’ को बढ़ाने में बुजुर्गों का योगदान दो तरह से है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष योगदान के तहत बुजुर्गों की आय विभिन्न स्रोतों से आती है, जो उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में 35 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग खेती, कुटीर उद्योगों या छोटे व्यवसाय, दुकानदारी में संलग्न हैं तो नगरीय बुजुर्ग
कौशल आधारित कार्यों पर। इनमें सेवानिवृत्त शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, वित्त-कर, शैक्षणिक या तकनीकी सलाहकार की भूमिका में आय अर्जित कर रहे हैं। इनके अलावा पेंशन, सामाजिक सुरक्षा राशि, सावधि जमा राशि, प्रॉपर्टी किराया छोटी बचत के अलावा स्टॉक मार्केट, निवेश, अन्य अंशकालिक कार्य से भी उनकी आय होती है।
इनसे अलग बुजुर्गों का अर्थव्यवस्था में अप्रत्यक्ष योगदान भी बढ़ रहा है। मसलन, पारिवारिक देखभाल की श्रेणी में वे प्रति वर्ष लगभग 14 अरब घंटे बच्चों की देखभाल में समय देते हैं, जिससे उनके परिवार की युवा पीढ़ी निश्चिंत होकर व्यवसाय, नौकरी, प्रोफेशनल गतिविधियों में भाग ले पाती है। इसी तरह बुजुर्ग प्रति वर्ष 2.6 अरब घंटे वे सामुदायिक कार्यों (जैसे धार्मिक-सामाजिक-सामुदायिक आयोजन, स्थानीय प्रशासन) में योगदान देकर उनका व्यय बचाकर अपना योगदान देते हैं। आय प्राप्ति के बाद बुजुर्ग अपनी आय को अनेक क्षेत्रों में खर्च करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
पहला और महत्वपूर्ण बिंदु है स्वास्थ्य। रिटायरमेंट और कमजोर होते शरीर से भी बुजुर्ग योगदान देकर अर्थव्यवस्था की चाल बदल रहे हैं। हेल्थ और फार्मा उद्योग तो अधिकतम बुजुर्गों पर ही निर्भर है। बुजुर्ग परिवार स्वास्थ्य पर औसतन 12 प्रतिशत खर्च करता है। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अनुसार, उम्र-संबंधी बीमारियाँ आम हैं, जिससे दवाओं, अस्पतालों, स्वास्थ्य-बीमा, हैल्थ सप्लीमेंट्स,और सहायक चिकित्सा उपकरणों की मांग बढ़ती है। भारत में साल 2027 तक स्वास्थ्य सेवाओं के 1.74 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
आवास एवं यात्राः अमीर बुजुर्ग ‘सीनियर लिविंग कम्युनिटीज’ में निवेश करते हैं, जबकि मध्यम वर्ग धार्मिक पर्यटन (जैसे तीर्थयात्रा) पर खर्च करता है। इस सेक्टर में यह वर्ग तेजी से प्रमुख उपभोक्ता शक्ति बनता जा रहा है। इसके अलावा, यह पीढ़ी अब अपने व्यक्तित्व को निखारने पर भी ध्यान दे रही है। यह समूह पहले से अधिक अधिक सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र और आभूषण भी खरीद रहा है, जिससे घरेलू और विदेशी, दोनों ही लक्ज़री ब्रांडों को लाभ हो रहा है।
वित्तीय सेवाएँ: बुजुर्ग अपनी बचत को सावधि जमा, म्यूचुअल फंड, या अन्य निवेश में लगाते हैं, जिससे वित्तीय क्षेत्र में पूंजी प्रवाह बढ़ता है। पके हुए चांदी जैसे बालों वाली आधुनिक बुजुर्ग पीढ़ी की बढ़ी हुई संपत्ति ने धन प्रबंधन, वित्तीय नियोजन और बीमा क्षेत्रों में वृद्धि को प्रोत्साहित किया है।
वृद्धाश्रम और देखभाल सेवाएँ: आधुनिक दौर में वृद्धाश्रमों और डे-केयर केंद्रों की मांग बढ़ रही है, जो रोजगार सृजन और सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देता है। विशेष डिज़ाइन वाले ये घर रियल एस्टेट कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं जो बुजुर्ग उपभोक्ताओं को सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये तथ्य इस बात के संकेतक हैं कि भारत में बुजुर्गों पर आधारित बाजार तेजी से बढ़ रहा है।
आर्थिक विश्लेषकों के मुताबिक सालाना 6.2 प्रतिशत की गति से बढ़ती ‘सिल्वर इकोनॉमी’ 2030 तक 12 बिलियन डॉलर तक हो सकती है और मौजूदा स्थिति बनी रहती है, तो 2050 तक करीब 35 करोड़ की बुजुर्ग जनसंख्या और उनकी खर्च करने की क्षमता एक ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी जो जीडीपी में 4-5 प्रतिशत अतिरिक्त योगदान देगी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश