चुनावी हिंसा मामला: वकील कल्याण बनर्जी की दलीलों से नाराज़ होकर न्यायाधीश ने सुनवाई से खुद को किया अलग
चुनावी हिंसा मामला: वकील कल्याण बनर्जी की दलीलों से नाराज़ होकर न्यायाधीश ने सुनवाई से खुद को किया अलग


कोलकाता, 25 जुलाई (हि.स.)। पश्चिम बंगाल में वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान कलकत्ता उच्च न्यायालय की न्यायाधीश सुव्रा घोष ने शुक्रवार को खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया। उन्होंने यह फैसला तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद और अधिवक्ता कल्याण बनर्जी की दलीलों के तरीके पर नाराज़गी जताते हुए लिया।

यह मामला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ता अभिजीत सरकार की कथित हत्या से जुड़ा है, जिसमें कोलकाता पुलिस के दो अधिकारियों और एक होमगार्ड को साजिशकर्ता बताया गया है। इस केस में सेवानिवृत्त सहायक आयुक्त शुभोजीत सेन, नारकेलडांगा थाने की तत्कालीन महिला सब-इंस्पेक्टर रत्ना सरकार और होमगार्ड दीपांकर देबनाथ को सीबीआई की पूरक आरोपपत्र में आरोपित बनाया गया था। 18 जुलाई को सीबीआई की विशेष अदालत ने तीनों को 31 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

इस आदेश के खिलाफ रत्ना सरकार और दीपांकर देबनाथ ने जमानत के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति सुव्रा घोष की एकल पीठ का दरवाजा खटखटाया। शुक्रवार को जब मामला सुनवाई में आया, तब कल्याण बनर्जी ने अपने मुवक्किलों के लिए उसी दिन जमानत दिए जाने की मांग की।

हालांकि, न्यायमूर्ति घोष ने स्पष्ट किया कि मामले में विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है, जो फिलहाल संभव नहीं क्योंकि सोमवार से अगले 15 दिनों तक वे उच्च न्यायालय की सर्किट ब्रांच से जुड़ी रहेंगी। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि अगर वकील को जल्दी है, तो वे किसी अन्य पीठ से संपर्क करें।

इसके बाद बनर्जी ने बहस के दौरान कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश का संदर्भ देते हुए कहा कि वह भी ऐसे ही मामलों में न्यायमूर्ति घोष की तरह ही कार्य करते हैं। उन्होंने यह टिप्पणी भी की कि वकीलों को न्यायाधीशों की दया पर इंतज़ार करना पड़ता है, जिसे लेकर न्यायमूर्ति घोष ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि वह अदालत के बारे में इस तरह की टिप्पणियों को बर्दाश्त नहीं करेंगी और बनर्जी की भाषा की मर्यादा पर भी सवाल उठाया।

विवाद की स्थिति बनने के बाद न्यायमूर्ति घोष ने स्वयं को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया और सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता किसी वैकल्पिक पीठ के समक्ष इस मामले को रखें।

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हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर