विंध्यधाम में आस्था की धनवर्षा, चार दानपात्रों से मिले 36.92 लाख रुपये
- भक्तों की आस्था से खजाना भरपूर, अभी बाकी है 14 दानपात्रमीरजापुर, 15 जुलाई (हि.स.)। आदिशक्ति जगत जननी मां विन्ध्यवासिनी धाम में भक्तों की अटूट आस्था एक बार फिर धनवर्षा बनकर बरसी है। विन्ध्य विकास परिषद की ओर से तीन प्रमुख शक्तिपीठों- विन्ध्यवासिनी,
दानपात्रों की गिनती करते राजस्वकर्मी।


- भक्तों की आस्था से खजाना भरपूर, अभी बाकी है 14 दानपात्रमीरजापुर, 15 जुलाई (हि.स.)। आदिशक्ति जगत जननी मां विन्ध्यवासिनी धाम में भक्तों की अटूट आस्था एक बार फिर धनवर्षा बनकर बरसी है। विन्ध्य विकास परिषद की ओर से तीन प्रमुख शक्तिपीठों- विन्ध्यवासिनी, कालीखोह व अष्टभुजा धाम में लगाए गए कुल 18 दानपात्रों में से अब तक सिर्फ चार की ही गिनती हो सकी है। इनसे 36 लाख 92 हजार 720 रुपये की राशि प्राप्त हुई है।

मंगलवार को हुई गणना में तीन दानपात्र खोले गए, जिनसे कुल 29 लाख 9 हजार 190 रुपये निकले। इससे पहले सोमवार को एक दानपात्र से 14 लाख 83 हजार 530 रुपये मिले थे। यह पूरी राशि विन्ध्य विकास परिषद के बैंक खाते में जमा करा दी गई है। धनगणना की प्रक्रिया प्रशासनिक निगरानी में सम्पन्न हो रही है। मंगलवार को हुई गणना के समय तहसीलदार सदर विशाल शर्मा, अमीन विजयशंकर दुबे, ईश्वरदत्त त्रिपाठी समेत परिषद के अन्य कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी मौजूद रहे। प्रक्रिया को पारदर्शिता और विधि व्यवस्था के तहत पूरा किया जा रहा है।

हर वर्ष विन्ध्यधाम में करोड़ों रुपये होते हैं एकत्र जगविख्यात धार्मिक नगरी विन्ध्याचल में श्रद्धालु सालभर दर्शन के लिए आते हैं। खासकर नवरात्र, सावन और छुट्टियों के दौरान यहां बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। मंदिरों में भक्तों द्वारा डाले गए चढ़ावे की गिनती समय-समय पर परिषद की ओर से कराई जाती है। अब तक केवल चार दानपात्रों की गणना हुई है। जबकि 14 और पेटियों को खोलना बाकी है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार कुल दानराशि करोड़ों में पहुंच सकती है। परिषद के अधिकारियों ने बताया कि गिनती का काम चरणबद्ध तरीके से जारी रहेगा और पूरी प्रक्रिया पूर्ण होते ही समस्त आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे। श्रद्धालुओं की आस्था और भरोसे से हर वर्ष विन्ध्यधाम में करोड़ों रुपये एकत्र होते हैं, जो मंदिर प्रबंधन, सुविधाओं के विस्तार और विकास कार्यों में खर्च किए जाते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा