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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
किसी भी देश के लिए लोक कल्याणकारी राज्य होने का अर्थ है, उसके द्वारा इस तरह की योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाए ताकि वहां निवासरत लोगों के बीच किसी भी तरह की असामनता और अव्यवस्था है, वह दूर हो सके। आर्थिक स्तर पर रोजगार के अवसर इतने सुलभ हों कि वहां से पलायन न होकर प्रत्येक नागरिक एक खुशहाल जीवन जी सके। भारत के संदर्भ में यदि इस बात को देखें तो एक तरफ देश पर लगातार जनसंख्यात्मक दबाव बढ़ा है तो दूसरी तरफ यहां की केंद्र व राज्य सरकारों ने इस तरह का प्रबंधन बैठाया कि जिस जनसंख्या का बढ़ना राज्य के लिए संकट हो सकता था, वह जनसंख्या इस देश की ताकत बनकर उभरी है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करनेवालों की संख्या में जो कमी आई है, वह आज भारत की समृद्धि की गाथा कह रही है।
इस संदर्भ में कहना होगा कि भारत में अत्यधिक गरीबी की दर में काफी ज्यादा कमी आ गई है। अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 344.47 मिलियन से घटकर 75.24 मिलियन हो गई है। यह संकेत है भारत के सतत शक्तिशाली देश के रूप में वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का। निश्चित ही विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में किए जा रहे तेज आर्थिक सुधारों, चलाई जा रही सरकारी पहलों का यह परिणाम है जो यह बड़ा परिवर्तन हर व्यक्ति के जीवन स्तर में देखने को मिला है। आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जन-धन योजना, डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी), डिजिटल समावेश और मजबूत ग्रामीण बुनियादी ढांचे समेत केंद्र व राज्य की आवासीय एवं अन्य योजनाओं ने आज आम आदमी की हर उस जरूरत को पूरा किया है, जिससे कि वह संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन के अधिकार को सहजता से पूरा कर सके।
वस्तुत: हमारे लिए यह बहुत खुशी की बात है कि देश में अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 34.44 करोड़ से घटकर 7.52 करोड़ रह गई है। इस तरह देश ने करीब 27 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला गया है। विश्व बैंक के आंकड़े कह रहे हैं कि 2011-12 में 27.1 प्रतिशत की अत्यधिक गरीबी दर 2022-23 में घटकर मात्र 5.3 प्रतिशत रह गई है। विश्व बैंक की सामने आई रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में तेजी के साथ रोजगार में वृद्धि हुई है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में व्यापक तौर पर सुधार हुआ है। सरकारी योजनाओं का अधिकतर लोगों तक पहुंचने से भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में भी जबरदस्त प्रगति की है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) 2005-06 में 53.8 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 16.4 प्रतिशत और 2022-23 में 15.5 प्रतिशत पर आ पहुंचा है। यदि यही प्रगति का प्रयास जारी रहा तो वह दिन बहुत दूर नहीं जब भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करनेवाला कोई एक व्यक्ति शेष नहीं होगा।
इस रिपोर्ट के आंकड़ों का गहराई से अध्ययन करें तो सामने आता है कि भारत में शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र का अंतर विशेषकर आर्थिक स्तर पर बहुत कम होता जा रहा है। यही वह वजह भी है कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या में तेजी से कमी आई है। ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी दर आज 18.4 फीसदी से घटकर 2.8 प्रतिशत रह गई है। इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी दर जो 10.7 फीसदी के करीब थी,वह घटकर सिर्फ 1.1 पर आ गई है। इसी तरह का एक व्यापक अंतर ग्रामीण-शहरी जीवन के आर्थिक व्यवहार में दूर हुआ है, यह अंतर 7.7 फीसदी से घटकर सिर्फ 1.7 प्रतिशत पर आ पहुंचा है। विश्व बैंक के अनुसार, 2021-22 के बाद से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। खासकर महिलाओं के बीच रोजगार दरों में वृद्धि हुई है। कृषि में ग्रामीण महिला रोजगार में वृद्धि हुई है। शहरी बेरोजगारी वित्त वर्ष 24-25 की पहली तिमाही में 6.6 प्रतिशत तक गिर गई, जो 2017-18 के बाद सबसे कम है।
यहां जो सबसे सुकून की बात है, वह यह है कि हर राज्य अपने स्तर पर और केंद्र के सहयोग से गरीबी दूर करने के लिए बराबर से प्रयास करता हुआ नजर आ रहा है। जिसमें कि सबसे अच्छा कार्य भाजपा शासित राज्यों में हुआ है। जिसमें कि मध्य प्रदेश में पहले शिवराज सिंह चौहान और अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के द्वारा इस दिशा में किए जा रहे सार्थक प्रयासों का जिक्र किया जाना आवश्यक है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक जनसंख्या है, वहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने शासनकाल में जो प्रयोग किए हैं, उसने आज एक बड़ी आबादी के बीच की आर्थिक असमानता को बहुत हद तक दूर कर दिया है। यही कारण है कि यहां भी सबसे अधिक गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या में व्यापक कमी आई है। महाराष्ट्र और बिहार में भी भाजपा की गठबंधन सरकारें हैं, यहां भी बहुत अच्छा कार्य पिछले कुछ वर्षों में हुआ है। इस तरह इन चार राज्यों का दो-तिहाई योगदान 50 प्रतिशत से अधिक अत्यंत गरीब लोगों को सामान्य जीवन जीनेवालों की श्रेणी में लाने के स्तर पर देखा जा सकता है।
यहां यह भी जिक्र करना आवश्यक लगता है कि विश्व बैंक ने अपनी यह रिपोर्ट 100 से अधिक विकासशील देशों में गरीबी, साझा समृद्धि और असमानता के रुझानों के बारे में दुनिया को बताने के लिए प्रस्तुत की है, ताकि विश्व में सभी समान रूप से यह जान सके कि कहां कैसी असमानता आर्थिक स्तर पर मौजूद है, जिसके कारण से अनेक देशों में मनुष्यता संकट में है। वास्तव में जिसे दूर किया जाना मानवीयता के लिए अति आवश्यक है। वस्तुत: इन दिनों दुनिया के तमाम देशों के बीच भारत जिस तरह से चहुंओर प्रगति करता दिखता है, इसे लेकर आज यही कहना होगा कि वह दिन दूर नहीं जब न सिर्फ आर्थिक शक्ति के स्तर पर भारत दुनिया के प्रमुख तीन देशों में होगा बल्कि अर्थिक वितरण के हिसाब से भी परस्पर सहभागिता के स्तर पर भी भारत के अधिकांश परिवारों में खुशहाली मौजूद होगी। फिलहाल आप इस उपलब्धि के लिए केंद्र की भाजपा-मोदी सरकार की सराहना जरूर कर सकते हैं!
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी