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जेरूसलम, 11 जून (हि.स.)। इजराइल की राजनीति में बुधवार को बड़ा मोड़ आया, जब प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार पर गिरने का खतरा मंडराने लगा। विपक्ष ने क्नेसेट (इजराइली संसद) को भंग करने का विधेयक पेश कर दिया है। खास बात यह है कि सरकारी गठबंधन में शामिल अति-रूढ़िवादी दलों ने भी इस विधेयक का समर्थन करने की धमकी दी है, जिससे जल्द आम चुनाव की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।
इस राजनीतिक संकट की जड़ में है सैन्य सेवा से अति-रूढ़िवादी यहूदी समुदाय (हारेदी) को छूट देने वाला कानून, जिसे पारित करने में नेतन्याहू सरकार विफल रही है। वर्तमान में इजराइल में यहूदी युवाओं के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है, लेकिन हारेदी समुदाय के छात्र धार्मिक शिक्षा के आधार पर इससे छूट पाते रहे हैं। युद्ध के चलते अब इस छूट पर सवाल उठ रहे हैं।
प्रधानमंत्री नेतन्याहू की गठबंधन सरकार में दो प्रमुख हारेदी दल शामिल हैं और अगर उन्होंने विपक्ष के साथ खड़े होकर संसद भंग करने के प्रस्ताव को समर्थन दिया, तो सरकार का गिरना तय है।
हालांकि जानकारों का मानना है कि अंतिम क्षणों में समझौता संभव है, लेकिन यह स्थिति नेतन्याहू सरकार के लिए अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के बाद सबसे गंभीर चुनौती है। उस हमले को इजराइल की अब तक की सबसे बड़ी सुरक्षा विफलता माना गया था।
बुधवार को क्नेसेट की कार्यसूची में जानबूझकर कई विधेयक जोड़े गए ताकि समय खरीदा जा सके और बैकडोर वार्ताएं जारी रह सकें। अगर विपक्ष का प्रस्ताव बुधवार देर रात तक वापस नहीं लिया गया, तो इस पर मतदान होना तय है।
हालांकि यह विधेयक पास होने के बाद भी संसद को भंग करने की प्रक्रिया में कई सप्ताह लग सकते हैं। वहीं अगर प्रस्ताव गिर गया, तो विपक्ष अगले छह महीने तक इसे दोबारा पेश नहीं कर सकेगा।
हारेदी समुदाय के शीर्ष धार्मिक नेताओं ने हाल ही में फतवा जारी कर सेना में शामिल न होने की धार्मिक सिफारिश दी, जिससे सरकार के लिए नया संकट खड़ा हो गया है। इस बीच देश 20 महीने से गाजा युद्ध में उलझा है। सेना पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। अब तक इस युद्ध में 866 से अधिक इजराइली सैनिक शहीद हो चुके हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / आकाश कुमार राय