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कहा- विपक्ष को ‘मुंबई’ पर राजनीतिक फ़ायदा नहीं उठाना चाहिए : राम नाईक
मुंबई, 27 नवंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम नाईक ने गुरुवार को मुंबई में बताया कि बॉम्बे-मुंबई विवाद पर उन्होंने केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह को पत्र लिखकर इस संबंध की पूरी जानकारी दी है। राम नाईक ने कहा जितेंद्र सिंह को इस संबंध में पूरी जानकारी न होने के कारण उन्होंने मुंबई की बजाय बॉम्बे संबंधी व्यक्तव्य दिया था । लेकिन विपक्ष को मुंबई पर राजनीतिक फायदा नहीं उठाना चाहिए।
पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने गुरुवार को बताया कि केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह, जिन्हें मुंबई के इतिहास की पूरी जानकारी नहीं थी, उन्होंने ‘आईआईटी’ के नाम पर ‘बॉम्बे’ की तारीफ़ की है, लेकिन तथ्यों को समझने के बाद वे अपना बयान ज़रूर वापस ले लेंगे। उन्होंने कहा कि हालांकि, विपक्ष, जो पूरा इतिहास जानता है, उसे ‘मुंबई’ की आलोचना करके उसका श्रेय छीनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
राम नाईक ने कहा कि उनके 30 साल के प्रयास के बाद केंद्र सरकार ने 15 दिसंबर 1995 को एक अध्यादेश जारी कर सभी भाषाओं में ‘बॉम्बे’ की जगह ‘मुंबई’ नाम इस्तेमाल करने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा, मैंने 1989 में पहली बार लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ ली थी। इसका ड्राफ्ट मेरे पास जांच के लिए आया था। हिंदी ड्राफ्ट में मेरा नाम राम नाइक (नॉर्थ बॉम्बे) था, जबकि इंग्लिश में राम नाइक (नॉर्थ बॉम्बे)। मैंने तुरंत लोकसभा स्पीकर को लेटर लिखा और सुझाव दिया कि ऐसा नहीं होना चाहिए, सभी भाषाओं में मेरा नाम राम नाईक (नॉर्थ मुंबई) लिखा जाना चाहिए। मैंने उस समय के लोकसभा स्पीकर रवि राय से इस बारे में बात की थी। मेरा यह कहना कि स्पेशल नाम सभी भाषाओं में एक जैसा होना चाहिए, इसका ट्रांसलेशन नहीं किया जा सकता और लोकसभा स्पीकर ने फैसला किया कि अब से कम से कम लोकसभा की कार्रवाई में, सभी भाषाओं में इसे ‘मुंबई’ लिखा जाएगा।
यहीं से बॉम्बे का नाम बदलकर मुंबई करने की असली कोशिशें शुरू हुईं। सभी संबंधित लोगों को लेटर लिखे गए, लोकसभा में सवाल उठाए गए। आखिर में एक टेक्निकल मुद्दे पर गाड़ी रुक गई। अगर किसी गांव या शहर का नाम बदलना है, तो रेवेन्यू नियमों के मुताबिक इसका अधिकार राज्य सरकार के पास है। इसके लिए राज्य सरकार इस प्रस्ताव को मंज़ूरी देती है और मंज़ूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजती है। इसके बाद जब महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सत्ता में आया, तो मैंने मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को यह जानकारी दी। उनकी कैबिनेट ने एकमत से यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा, लेकिन फिर से गाड़ी रुक गई। उस समय की कांग्रेस सरकार ने बिना कोई कार्रवाई किए इस प्रस्ताव को रोके रखा।
फिर केंद्र सरकार के साथ लगातार इस पर बात करने के बाद आखिरकार 15 दिसंबर, 1995 को केंद्र ने बॉम्बे की जगह मुंबई नाम इस्तेमाल करने का ऑर्डिनेंस भी जारी कर दिया। बेशक, इसमें भी एक छोटी सी गलती थी। हिंदी में 'मुंबई' शब्द को 'मुंम्बई' लिखा गया। बाद में, 1999 में, जब मैं खुद केंद्र में रा’य मंत्री था और मुझे गृह मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया था, तो इस बारे में आखिरी बदलाव हुआ आदेश 28 मई, 1999 को जारी किया गया और सभी भाषाओं में 'मुंम्बई' नाम बदलकर 'मुंबई' कर दिया गया। बॉम्बे के बाद बॉम्बे मुंबई हो गया, मद्रास चेन्नई हो गया, कई असली नाम जैसे कलकत्ता के लिए कोलकाता, बैंगलोर के लिए बंगलुरू, त्रिवेंद्रम के लिए तिरुवनंतपुरम, वगैरह, सरकार ने मान लिए और हर जगह इस्तेमाल होने लगे। बाद में, जब राम नाइक उत्तर प्रदेश के गवर्नर थे, तो उनके आदेश पर ‘इलाहाबाद’ ‘प्रयागराज’ और ‘फैजाबाद’ ‘अयोध्या’ हो गया।
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हिन्दुस्थान समाचार / राजबहादुर यादव