बलरामपुर के युवा किसान की कमाल, डेढ़ एकड़ में खीरे की आधुनिक खेती से रचा इतिहास
उत्तर भारत के राज्यों में बढ़ी मांग
खीरे की खेती।


बलरामपुर, 26 नवंबर (हि.स.)। परंपरागत खेती से उकता चुके अधिकांश युवाओं के बीच गम्हरिया ग्राम पंचायत के 26 वर्षीय युवा किसान रिजवान अंसारी ने यह साबित कर दिया है कि, अगर इच्छा शक्ति और ज्ञान दोनों साथ हों तो खेती न केवल लाभदायक बन सकती है, बल्कि रोजगार का मजबूत साधन भी बन सकती है। डेढ़ एकड़ जमीन में वैज्ञानिक तौर-तरीकों के साथ खीरे की खेती कर रिजवान ने क्षेत्र में आधुनिक कृषि की एक मिसाल पेश की है।

रिजवान की खीरे की खेती आज आसपास के गांवों के किसानों के लिए उत्सुकता और प्रेरणा का विषय बनी हुई है। जहां कभी इस इलाके में खीरे की फसल को जोखिम भरा माना जाता था, वहीं अब रिजवान और उनके परिवार ने इसे लाभकारी व्यवसाय में बदल दिया है।

35–45 दिन में तैयार होती फसल, खेत से निकल रहे क्विंटल के क्विंटल खीरे

रिजवान बताते हैं कि, उन्होंने इस खेती की शुरुआत पूरी तरह वैज्ञानिक सलाह और आधुनिक तकनीकों को अपनाकर की। खीरे की फसल पारंपरिक सब्जियों की तुलना में तेजी से विकसित होती है। उन्होंने उन्नत किस्म का बीज, ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग तकनीक का उपयोग किया, जिससे उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

खेती की शुरुआत के 35 से 45 दिन के भीतर जब पहले खेप की तोड़ाई शुरू हुई तो खुद रिजवान भी पैदावार देखकर उत्साहित हो उठे। आज स्थिति यह है कि हर दूसरे दिन उनके खेत से 40 से 50 क्विंटल तक ताजा खीरा निकलता है। इतनी भारी मात्रा में उत्पादन न केवल उनकी आय बढ़ा रहा है, बल्कि क्षेत्र के बाजारों को भी प्रभावित कर रहा है।

खीरे की गुणवत्ता उत्तम होने के कारण इसका भाव थोक बाजार में 25 से 30 रुपये प्रति किलो तक मिल रहा है। रिजवान बताते हैं कि उन्हें बाजार तक जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। आसपास और दूर-दराज के सब्जी व्यापारी स्वयं खेत में आकर खीरा खरीद ले जाते हैं।

उनकी खेती का खीरा सिर्फ स्थानीय बाजार तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी मांग उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और बिहार तक फैली हुई है। बड़े राज्यों में इसे अच्छी कीमत मिलती है और इसकी ताजगी व गुणवत्ता इसकी पहचान बन चुकी है।

लाभ-हानि का पूरा खेल बाजार पर निर्भर, फिर भी हिम्मत नहीं हारी

खेती का असली जोखिम वही जानता है जो खेत में पसीना बहाता है। रिजवान भी मानते हैं कि खीरे की फसल में उत्पादन तो शानदार मिलता है, लेकिन लाभ-हानि पूरी तरह बाजार मूल्य पर निर्भर करती है। यदि फसल तैयार होने के समय कीमतें गिर जाएं तो किसान को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

इसके बावजूद, रिजवान ने कभी हिम्मत नहीं हारी। वे कहते हैं “खेती में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लेकिन अगर तकनीक, परिश्रम और धैर्य साथ हों तो खेती कभी घाटे का सौदा नहीं होती।”

उनके सकारात्मक दृष्टिकोण और मेहनत ने उन्हें उस मुकाम पर पहुंचा दिया है जहां वे न केवल खुद आत्मनिर्भर हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी आधुनिक खेती अपनाने की सलाह दे रहे हैं।

सिर्फ रिजवान नहीं, तीन भाइयों की मेहनत से बढ़ी खेती की रौनक

इस सफलता के पीछे सिर्फ रिजवान की मेहनत नहीं है, बल्कि उनके भाइयों तौहीद अंसारी और आरिफ अंसारी की भी बराबर की भूमिका है। तीनों भाई खेत की तैयारी से लेकर सिंचाई, कटाई और मार्केटिंग तक हर जिम्मेदारी को साझा करते हैं।

सामूहिक प्रयासों ने न सिर्फ लागत कम की, बल्कि उत्पादन और आय में उल्लेखनीय वृद्धि भी की है। यह साझेदारी खेती में पारिवारिक योगदान का एक उत्कृष्ट उदाहरण बन गई है।

आधुनिक तकनीक से कम लागत, ज्यादा उत्पादन का फार्मूला

रिजवान ने अपनी खेती में जिन तकनीकों का उपयोग किया, वे इस क्षेत्र के किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं, ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत और पौधों को समान पोषण, मल्चिंग से खरपतवार कम और नमी बनाए रखने में मदद, उन्नत किस्म के बीज, जिससे पौधे मजबूत और पैदावार अधिक

कीट प्रबंधन के वैज्ञानिक तरीके, जिससे नुकसान कम

इन तकनीकों को अपनाकर उन्होंने कम लागत में ज्यादा उत्पादन हासिल किया है। क्षेत्र के किसानों के लिए बना प्रेरणा स्रोत आज गम्हरिया ही नहीं, आसपास के ग्राम पंचायतों के किसान भी उनके खेत देखने पहुंच रहे हैं। कई युवा खेती छोड़कर शहरों का रुख कर रहे थे, लेकिन रिजवान की सफलता उनसे कह रही है “खेती अवसर है, समस्या नहीं… बस तरीका बदलने की जरूरत है।”

रिजवान की उपलब्धि उन किसानों के लिए उम्मीद की किरण है जो सीमित जमीन और कम संसाधनों के कारण हतोत्साहित रहते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय