हॉकी कोचों के लिए ‘एडवांस स्पोर्ट्स साइंस वर्कशॉप’ की शुरुआत, श्रीजेश, हरेंद्र सिंह सहित कई दिग्गजों की मौजूदगी
एडवांस स्पोर्ट्स साइंस वर्कशॉप’ में मौजूद श्रीजेश व अन्य


- हॉकी इंडिया और एनसीएसएसआर की पहली संयुक्त पहल

नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (हि.स.)। हॉकी इंडिया और भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित ‘हॉकी इंडिया–एनसीएसएसआर एडवांस स्पोर्ट्स साइंस वर्कशॉप फॉर हॉकी कोचेस’ का शुभारंभ शुक्रवार को इंदिरा गांधी खेल परिसर स्थित नेशनल सेंटर फॉर स्पोर्ट्स साइंसेज एंड रिसर्च में हुआ। यह कार्यशाला 2 नवंबर तक चलेगी।

इस तीन दिवसीय कार्यशाला का उद्देश्य खेल विज्ञान के नवीनतम आयामों को हॉकी कोचिंग में समाहित करना है, ताकि कोच खिलाड़ियों के प्रदर्शन और समग्र फिटनेस को वैज्ञानिक तरीकों से बेहतर बना सकें। इसमें देशभर से चयनित 25 एफआईएच लेवल-3 प्रमाणित कोच भाग ले रहे हैं।

कार्यक्रम में भारतीय हॉकी के दिग्गज पी.आर. श्रीजेश, हरेंद्र सिंह, गेविन फरेरा, लाजरुस बारला और हॉकी इंडिया के कई अधिकारी विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। उद्घाटन सत्र में एनसीएसएसआर के निदेशक ब्रिगेडियर डॉ. बिभु कल्याण नायक ने कहा, “जब हम भारतीय हॉकी के 100 वर्ष मना रहे हैं, तो यह सही समय है कि खेल विज्ञान को हमारी दैनिक कोचिंग प्रणाली में शामिल किया जाए। हमने 25 श्रेष्ठ कोचों का चयन इसलिए किया ताकि वे विशेषज्ञों से निकट संवाद के माध्यम से अधिक गहराई से सीख सकें।”

उन्होंने आगे कहा, “इस कार्यशाला में विश्व स्तर पर उपयोग किए जाने वाले हॉकी परीक्षण, उनके डाटा विश्लेषण और खिलाड़ियों की अधिकतम क्षमता निकालने के तरीकों पर चर्चा की जाएगी।”

कार्यशाला में प्रदर्शन प्रोफाइलिंग, एथलीट मॉनिटरिंग, बायोमैकेनिक्स, कंडीशनिंग, पोषण, रिकवरी और खेल मनोविज्ञान जैसे विषयों पर विशेषज्ञ सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। कोचों को प्रयोगशालाओं और मैदान पर प्रायोगिक प्रशिक्षण जैसे यो-यो, स्प्रिंट और एगिलिटी टेस्ट भी करवाए जा रहे हैं।

प्रख्यात भारतीय कोच हरेंद्र सिंह ने कहा, “मैं खेल मंत्रालय और हॉकी इंडिया का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने यह पहल की। दस–पंद्रह साल पहले हमारे पास खेल विज्ञान की ऐसी सुविधाएं नहीं थीं। यह भारत में पहला ऐसा कदम है जो भविष्य की पीढ़ी के खिलाड़ियों को वैज्ञानिक प्रशिक्षण देने में मदद करेगा।”

ओलंपियन और पूर्व भारतीय कप्तान पी.आर. श्रीजेश ने कहा, “अगर हमें 2036 ओलंपिक को लक्ष्य बनाना है, तो हमें अब से ही वैज्ञानिक पद्धतियों को जमीनी स्तर पर लागू करना होगा। जब कोच वैज्ञानिक समझ के साथ काम करेगा, तो वह खिलाड़ियों से प्रदर्शन की सटीक अपेक्षा रख सकेगा — यह खिलाड़ियों और कोच दोनों के लिए लाभदायक होगा।”

कार्यशाला के दौरान कोचों को डेटा-आधारित निर्णय, वास्तविक समय में एथलीट मॉनिटरिंग, मानसिक दृढ़ता, विजुअलाइजेशन और सामरिक तैयारी जैसे आधुनिक तरीकों का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य भारतीय हॉकी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में कोचों को वैज्ञानिक दृष्टि से सशक्त करना है।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे