कैंसर रोगियों की अंतरंगता पर बीएचयू में शोध, विकसित की गई 47 आइटम वाली ‘मनोयौन इन्वेंट्री’
बीएचयू की रिसर्च टीम


वाराणसी व तिरुवनंतपुरम के शोधकर्ताओं का संयुक्त प्रयास, प्रकाशित हुआ अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘साइको-ऑन्कोलॉजी’ में

वाराणसी, 25 अक्टूबर (हि.स.)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में एक महत्वपूर्ण शोध किया गया है, जो कैंसर रोगियों की अंतरंगता (दो या दो से अधिक लोगों के बीच घनिष्ठता) और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों पर केंद्रित है। विभाग के प्रो. मनोज पांडेय और उनकी पीएचडी शोधार्थी आश्रुती पठानिया ने तिरुवनंतपुरम के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर यह अध्ययन पूरा किया है। इस शोध के तहत एक 47 आइटम वाला ‘मनोयौन इन्वेंट्री’ विकसित किया गया है, जो कैंसर रोगियों में जीवनसाथी/साथी, मनोवैज्ञानिक, यौन, आध्यात्मिकता और दर्द जैसे पांच प्रमुख आयामों में आने वाली समस्याओं का आकलन करता है।

शोध टीम ने इस उपकरण को प्रारंभ में 100 कैंसर रोगियों के साक्षात्कार के आधार पर तैयार किया और बाद में 250 रोगियों तथा उनके जीवनसाथियों के साक्षात्कार के बाद इसे परिष्कृत किया। अध्ययन में कैंसर रोगियों द्वारा झेली जाने वाली शीर्ष 10 मनोयौन समस्याओं की पहचान की गई, जिनमें नपुंसकता (इरेक्टाइल डिस्फंक्शन), शारीरिक असुविधा के कारण यौन असंतोष, अवसाद, थकान, उपचार के बाद यौन रुचि में कमी, पुनरावृत्ति का डर, शरीर की छवि से जुड़ी असहजता, उत्तेजना प्राप्त करने में कठिनाई, साथी का संभोग को लेकर भय, शीघ्र स्खलन और पहले की तरह चरमोत्कर्ष न प्राप्त कर पाना शामिल हैं। शोध में पाया गया कि जीवनसाथी/साथी उपस्केल संबंधों की गतिशीलता को रेखांकित करता है, जो कैंसर उपचार के दौरान बढ़ते भावनात्मक और देखभाल संबंधी दबाव को उजागर करता है। मनोवैज्ञानिक उपस्केल अवसाद और चिंता जैसी भावनात्मक बाधाओं को मापता है, जो यौन क्रियाशीलता को प्रभावित करती हैं। वहीं यौन उपस्केल उपचार से जुड़ी शारीरिक और मानसिक शिथिलताओं जैसे योनि शुष्कता या नपुंसकता को सामने लाता है।

इस अध्ययन का आध्यात्मिकता उपस्केल विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो दर्शाता है कि धर्म और अध्यात्म की ओर झुकाव कैसे कैंसर रोगियों में भावनात्मक स्थिरता और यौन समायोजन में सहायक हो सकता है। वहीं दर्द उपस्केल यह बताता है कि शारीरिक पीड़ा कैसे भावनात्मक और शारीरिक अंतरंगता दोनों को सीमित करती है।

प्रो. मनोज पांडेय ने बताया कि यह इन्वेंट्री क्लिनिकल तौर पर अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती है। इसके माध्यम से चिकित्सक यह पहचान सकते हैं कि रोगी किन विशेष डोमेन में मनोयौन चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिससे लक्षित हस्तक्षेप किए जा सकते हैं — जैसे संबंध तनाव के लिए युगल थेरेपी या अवसाद-चिंता के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी। उन्होंने बताया कि आध्यात्मिकता और दर्द को शामिल करना समग्र चिकित्सा दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो केवल शारीरिक नहीं बल्कि भावनात्मक और अस्तित्वगत आवश्यकताओं को भी संबोधित करता है।

प्रो. पांडेय के अनुसार सांस्कृतिक मान्यताएं, विशेष रूप से आध्यात्मिकता और यौनता से जुड़ी धारणाएं, प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकती हैं। भारत जैसे देश में जहां इन विषयों पर खुली चर्चा सीमित है, यह शोध नई दिशा दिखाता है। उन्होंने बताया कि कैंसर के उपचार - जैसे सर्जरी, रेडिएशन, कीमोथेरेपी या लक्षित दवाएं - जीवन रक्षक तो हैं, परंतु वे शरीर और मन दोनों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याएं रोगियों की जीवन गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। पश्चिमी देशों में इन विषयों पर खुलकर चर्चा होती है, जबकि भारत में यह क्षेत्र अभी भी शोध के शुरुआती चरण में है। इस अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है और यह प्रतिष्ठित शोध पत्रिका ‘साइको-ऑन्कोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी